राज्य था | यूँ तो राजा चंद्रसेन शैव था पर उसके राज्य में शैव व् वैष्णव दोनों
सम्प्रदाय के लोग रहते थे | राजा भी सभी का समान रूप से सम्मान करता था | फिर भी
उसके राज्य में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय में बहुत झगडे हुआ करते थे | दोनों एक
दूसरे की सम्पत्ति व् पूजा स्थलों को नुकसान पहुँचाया करते थे | राजा इसे रोकने
का हर संभव प्रयास करता | लोगों को समझाता पर अन्तत : कोई परिणाम न निकलता | ऐसे
लोग बहुधा भीड़ में छुपे रहते जो दूसरों को बरगलाते थे | इस कारण उनको पकड़ना मुश्किल
हो जाता | इससे राजा को बहुत दुःख लगता |
ईश्वर का घर भक्त के ह्रदय में है |
अक्सर राजा इसी बारे में सोंचता रहता | उसे ये भी लगता की भगवान् उन लोगों को स्वयं दंड क्यों नहीं देता | भगवान् को तो सब पता है वो उन्हें आसानी से दंड दे सकता है | फिर मौन क्यों साध लेता है | इस तरह से मंदिरों को टूटते हुए कैसे देख सकता है | एक दिन राजा यही सोंचते – सोंचते सो गया | उसने स्वप्न में देखा की भगवान् आये हैं | उसने भगवान् को प्रणाम कर उनका स्वागत सत्कार किया व् उनसे यही प्रश्न पूंछा |
गुस्से में उन दोनों ने एक दूसरे के घरौंदे तोड़ डाले | व् राजा – रानी के पास आकर बैठ गए | राजा – रानी ने दोनों को प्यार किया की अरे घरौदे तो रेत के थे | टूट गए तो क्या हुआ | बच्चे खुश हो कर फिर से खेलने लगे |
दोस्तों , इस प्रेरक कथा में हमारी आज की समस्याओं का भी हल छुपा हुआ है |हम आज भी धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं | इसके पीछे इश्वर के प्रति प्रेम नहीं मेरा ईश्वर तेरे ईश्वर से महांन है का भाव छिपा हुआ है | क्योंकि अगर हमारा ईश्वर महान है तो उसे मानने वाले हम अपने आप दूसरे से श्रेष्ठ हो गए | यह केवल अहंकार का तुष्टिकरण है |
बाबू लाल
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