लुटन की मेहरारु

लुटन की मेहरारु

घर में
खुशी
की
लहर
दौड़
चली| लुटन
की
माँ
तो
डीजे
की
धुन
पर
ठुमकेपरठुमके
लगाए
जा
रही
थी| एकसेबढ़कर
एक
अंदाज
में
नृत्य
भी
परोस
रही
थी| वर्षों
बाद
जीवन
के
दायित्व
जो
निभाने
का
मौका
मिला| घर
वालों
के
काफी
जद्दोजहद
के
बाद
लुटन
ने
शादी
के
लिए
तैयार
हुआ
था| घर
के
देवीदेवताओं
के
साथसाथ
चौधरी
जी
के
दलान
पर
ब्राह्मणी
स्थान
में
भी
कवूलती
कर
चुकी
थी
किमाय,
लुटना
के
बियाह
होए
जाए
तो
एगारह
गो
बूढ़ापुरान
ब्राह्मण
जमैयबौ, आर
साथ
में
एगो
चबूतरा
भी
बनाए
देबौ….!”


तनिक भी
शोरशराबा
कानों
तक
सुनाई
पड़ती
कि
लुटन
की
माँ
रामवती
छलाँग
लगा
वहाँ
तक
पहुँच
जाती
थी, ताकि
शादी
में
अड़चन

आवे
और
सहीसलामत
बियाह
हो
जाए| ऊपर
वालों
की
कृपा
से
तनीमनी
झिझक
के
बाद
शादी
संपन्न
हो
गया|


बीचबीच
में
किसी
भी
बात
को
लेकर
लुटन
और
नववधू
कजरी
में
तानातानी
स्वाभाविक
हो
चला| रामवती
मौका
देख
वधू
को
समझाती
थी
बेटी, तू
ही
इस
घर
को
संभाल
पाएगी| ससुर
जी
जो
हैं, वे
भी
ऐसे
ही
थे| इस
घर
को
सजाने
में
मैं
क्या
नहीं
भोगी| फिर
बालबच्चा
को
संभालना….
गाँवदेहात
में
भी
पढ़ानालिखाना, बड़ा
मुश्किल
काम
था| लुटना
तो
कमसेकम
चिट्टीपतरी
भी
लिखपढ़
लेता
Ss लेकिन
उसका
बाप…. पूछना
मत! किसी
कागज
को
उठाकर
फेंकने
भी
जाती
थी
तो
झपटा
मार
छीन
लेते
थे
और
किसी
से
पढ़वाते ….^ कहीं
मायके
से
लैला
बनकर
तो
नहीं
आई?* फिर
भी
संभाल
ली
और
आज…. देख
ही
रही
हो…. तीनतीन
बेटे, दो
बेटी
से
भरापूरा
बगान
है| घर
की
लक्ष्मी
बेटी
ही
होती
है| तुम
चाहो
तो
सब
ठीक
हो
जाएगा| बगिया
लहलहाती
नजर
आएगी|”
नई नवेली
दुल्हन
कजरी
माँ
की
बात
सुन
गंभीर
हो
जाती
थी| घर
की
यादें
में
गुम
हो
जाती


आँखों
के
सामने
पड़ोसी
डोमन
की
पत्नी
की
तस्वीर
नाचने
लगती
थी| डोमन
चाचा
ने
किस
तरह
चाची
को
सुबहसुबह
पीटते
थे| जबरदस्ती
मजदूरी
करने
के
लिए
घर
से
डाँटडपट
कर
भेज
दिया
करते
थे
और
खुद
दिनभर
ताश
खेला
करते
थे| इतना
ही
नहीं, शानोशौकत
के
साथ
कहते
भी
थे
देखो, मैं
कितना
भाग्यशाली
हूँ|”
सच
में
भारत
देश
ही
ऐसा
है, जहाँ
कुत्तों
के
साथ
मनुष्य
को
भी
बिना
कुछ
किए
भी
पेट
भरता
है
और
सोने
की
चिड़िया
वाली
कहावत

होके
चरितार्थ
करती
है|




रामवती समय
देख
लुटन
को
भी
समझाती
थी| कई
बार
सोचने
लगती
कि
कितना
कष्ट
उठाई, इसकी
शादी
के
लिए| सिर
पर
हाथ
रख
सोचती
तो
क्षण
भर
में
ही
याद

जाती
थीमछली
सिर्फ
मारने
से
नहीं
होताउसे
संभाल
कररखने
से
होता
है| वरना, फिर
वही
नदीतालाब
में
चली
जाती
है, जहाँ
आजादी
हो| फिर
सोचती
आज
के
जमाने
में
वैसा
भी
नहीं
कि
गाय
को
जिस
खूटे
में
बाँध
दी
जाए
और
भूखी
प्यासी
बंधी
रहे| अचानक
सोमर
तांती
की
बीती
कहानी
याद

गई
जो
पिछले
दो
वर्ष
पहले
की
ही
बात
थी| शादी
के
ठीक
पखवाड़ा
बाद
ही
उसकी
पुतोहू
गायब
हो
गई
थी| काफी
खोजबीन
भी
किया
था
लेकिन
वर्षों
बाद
पता
चला
कि
उसे
टीपटॉप
वाला
लड़का
चाहिये
था| मोटर
गाड़ी
पर
घूमना
चाहती
थी
जो
भविष्य
में
भी
यहाँ
नहीं
देख…. किसी
लफुए
के
साथ
भाग
गई| यह
बात
चैन
छीन
लेता
और
गंभीर
हो
लुटन
को
समझाने
लगती
लुटन, मैं
मानती
हूँ
कि
तुम
कभी
नहीं
कहा
कि
शादीबियाह
हो
जाए, लेकिन
मातापिता
का
भी
तो
दायित्व
है
…. कजरी
कितनी
सुशील
लड़की
है| तुम
साथ
रहते
हो, भलीभाँति
समझते
भी
होगे| दूसरे
घर
की
बेटी
को
सम्मान
देना
चाहिये…. आखिर

बेचारी
किसके
सहारे
रहेगी? पतिपरमेश्वर
होता
है, बेटा? उसका
ख्याल
रखना
हम
घर
वालों
का
ही
काम
है| उसके
लिए
तो
सब
कुछ
यही
घरपरिवार
है
?”


लुटन तुनक
पड़ा
और
बोलने
लगा
मैं बोल
रहा
था

कि
पहले
छोटका
का
बियाह
कर
दो| घर
में
दुल्हन
चाहिये
थी
,
जाती| मेरे
ही
गले
में
घंटी
क्यों? लफंगा
की
तरह
उसकी
आदत
थी
…. मेरी
तो
शिकायत
नहींमैं
यूँ
ही
जिन्दगी
काट
लेता|”

अचानक लुटन
की
आवाज
बंद
हो
गई| सामने
से
कजरी
जो

रही
थी| माँबेटा
की
बातें
सुन
कजरी
उल्टे
पाँव
लौट
गई| माँ
की
अपनत्व
वाली
बातें
सुन, चुप्पी
को
ताकत
मान
ली
थी
और
इसी
के
सहारे
महीना
वर्षों
में
बीतता
गया|

लगभग चारपाँच
वर्षों
तक
कजरी
चुपचाप
किनारे
की
आस
में
लगी
रही| आखिर
लज्जा
की
देवी
का
उपमा
जो
जन्मजात
हासिल
कर
चुकी
थी|

रामवती हमेशा
कचोटती
रहती
थी| उस
समय
तो
और
अधिक
जब
पड़ोसी
के
यहाँ
सालभर
के
अंदर
ही
बच्चों
की
किलकारियाँ
सुनने
को
मिलती| कजरी
के
कानों
तक
अपनी
आवाज
पहुँचाती
हुई
बोलती
थी
आजकल के
नैयका
विचार
गजबे
है, अप्पन
शौक
के
खातिर
वंश
भी
रोके
रहल| भला

कोए
शौक
भेयल|”
कजरी
माँ
की
बात
सुन
कभी
मुस्कुराती
हुई
तो
कभी
मायुसी
लिए
घर
अंदर
चली
जाती
थी|
धीरेधीरे
चहारदीवारी
के
अंदर
से
निकल, पड़ोसी
की
गलियों
से
होते
हुए
सगासंबंधों
तक
बातें
आग
की
तरह
फैलने
लगी
कि
लुटना की
मेहरारु
बाँझ
है|”


जहाँ कहीं
भी
दोचार
औरतों
की
झुंड
होती, वहाँ
हरेक
घर
की
कहानी
सुनीसुनाई
जाती
थी| उन
औरतों
में
उदाहरण
भी
गजब
जो
अकाट्य
हो|एक
महिला
बोल
रही
थी,
वंश के
खातिर
दोसर
बियाह
करै
में
कि
दिक्कत? राजा
दशरथ
जैयसन
आदमी
तीनतीन
बियाह
कैलखीन…. भला

लड़की
नैय
चाहतैय
कि
वंश
बढ़ैय? लुटना
के
मायबाप
के
भी
सोचैय
के
चाहीवंश
बढ़ावो| खाली
सिनुर
देला
से
घौर
थोड़े
बसैय
छैयनाकमुँह
सिकोड़तैय


जानैय?”
इस
तरह
अनेको
मुँह
अपनीअपनी
बातों
से
लोककथाओं
को
समृद्ध
करती
रहती
थी| पुतोहू
को
तो
कोसना
दिनचर्या
में
शामिल
हो
चुका
था|


रामवती भी
बीचबीच
में
कई
रूपों
में
कजरी
को
कोसने
में
तनिक
भी
नहीं
सकुचाती
थी| खुलकर
तो
नहीं
बोलती
लेकिन
ऊपरझापड़
में
बातें
बज्र
की
तरह
होती
थी| घर
से
निकली
चिनगारी
को
आसपड़ोस
के
लड़कों
ने
भी
अलाव
का
रूप
दे
दिया
ताकि
कभीकभी
गर्माहट
महसूस
हो| राह
चलती
कजरी
के
कानों
तक
आवाज
आती,
अरे! उधारपैचा
भी
तो
चलता
ही
है, नाम
भी
उसी
का
होगा
और
मनोकामना
भी
पूरी
हो
जाएगी|”

कजरी चुप्पी
को
प्रतिष्ठा
मान
घुटती
रही| लड़कों
के
द्वारा
चुभते
फव्वारे
को
भी
नजर
अंदाज
करती
रही|
लुटन भी
घर
वालों
के
साथसाथ
बाहर
वालों
का
भी
उलाहने
सहता
रहा| जहर
के
समान
चाटूकारिता
को
भी
पीना
मुनासिव
समझ
बैठा
और
पीता
रहा| वर्षों
बीत
जाने
के
बाद
कजरी
बाहर
के
काम
में
भीहाथ
बंटाने
लगी
थी| एक
दिन
ज्योंही
घर
से
बाहर
निकली
ही
थी
कि
गली
में
बैठी
महिलाओं
की
झुंड
अपनीअपनी
पुतोहू
को
छुप
जाने
का
इशारा
किया
और
कुंवारी
बेटी
को
अपने
पीछे
बैठा
ली
ताकि
एक
बाँझ
की
नजर

लग
जाए| सभी
महिलाएँ
कजरी
को
अपशकून
मान
आँखे
चुड़ाने
लगी
थी| और
गाँव
के
मर्द
से
लेकर
लड़का
तक
कोसांढ़मानने
में
तनिक
भी
कोताही
नहीं
करती|


रामवती दुत्कार
भरी
आवाज
को
कानों
तक
ही
रहने
देती
थी| मनमस्तिष्क
तक
पहुंचने
से
मना
करती
रही| कई
बार
सोचने
भी
लगती
कि
मातापिता
होने
के
नाते
बियाह
तो
करवा
दिया
लेकिन
बालबच्चा
तो
संभव
नहीं….! इसके
लिए
तो
ऊपर
वालों
के
द्वारा
निमित
कार्य
से
ही
संभव
है|रामवती
खुलकर
कजरी
को
ताने
भी
नहीं
मार
सकती
थी
और

ही
जबरदस्ती
एक
दूसरे
से…..| दिमाग
पर
जोर
देने
लगी, आखिर
दोष
किसका…. ऐसा
तो
नहीं
कि

लुटन
अभी
तक
आनवान
में
जी
रहा
है, किरया
खा
लिया
हो
कि
कजरी
में
सटना
ही
नहीं
है| बियाह
जो
उसकी
मर्जी
के
बिना
हुई
थी| कुछ
दिनों
तक
पुख्ता
सबूत
की
टोह
में
लगी
रही| एक
रात
खुद
में
हिम्मत
बना
ली
और
सोची
कि
पापिन
ही
सही
लेकिन
समझ
के
रहूंगी
कि
मामला
क्या
है| दोतीन
रातें
ईहोरनिहोर
करती
रही| कजरी
और
लुटन
में
बातें
भी
होती
हुई
सुनती
थी| लेकिन
पतिपत्नी
का
जो
शारीरिक
दायित्व
होता
है…. उससे
काफी
दूर
ही
रही
रामवती| यह
देख
कभी
लुटन
पर
तो
कभी
कजरी
पर
शक
गहराता
गया| चौधरी
की
पुतोहू
वाली
कहानी
याद
कर
और
कुंठित
हो
जाती…. मन
मसोसती
हुई
सोचती
कि
अगर
जानवर
होता
तो
जबरदस्ती
किसी
खूटे
में
बाँध
साथ
मिलवा
देती|


अचानक एक
रात
हँसीठिठोली
देख
रामवती
को
सुकून
महसूस
हुई| शारीरिक
समागम
की
आभास
सुन
मनप्रफ्फुलित
हो
गया
लेकिन
लुटन
के
द्वारा
निकली
बातें
सोच
में
डाल
दिया
था| लुटन
कजरी
से
बोल
रहा
था
काजो, मैं
बदनसीब
हूँमेरी
वजह
से, उसकी
मृत्यु
हो
गई| काश! मैं
उसे
बचा
पाता?”
फिर क्या
बातें
हुईरामवती
को
मालूम
नहीं| लुटन
की
बातें
सुन
रामवती
अवाक
रह
गई
थी| कई
तरह
की
बातें
हिलोरे
मारने
लगी| फिर
सोची, चलो
बेटा
है| ऐसा
होता
है| महीनों
बाद
कजरी
की
शारीरिक
बदलाव

देख
चुप
रहने
लगी| अब
सबूत
को
पर्याप्त
मान
समझ
गई
कि
लुटन
में
ही
कमी
है…. वरना,
आठ
साल
में
एगो
बच्चा
नहीं
होता, जब
दो
जबान
एक
साथ
हजारों
रात
बीता
चुका
हो?


कजरी पर
अंदरूनी
कानाफूसी
और
बाहरी
ताने
कम
होने
का
नाम
ही
नहीं
ले
रहा
था| भभकती
चिनगारी
संपूर्ण
शरीर
में
जलन
पैदा
किए
जा
रही
थी| कजरी
अब
ढ़ीठ
बन
चुकी
थी…….लेकिन
फुहड़ता
में
कोई
कमी
नहीं| मानो, सावन
माह
में
बूँदाबूँदी
होना
बादलों
की
नियति
में
हो|

एक दिन
घर
में
शोरशराबा
सुन
पड़ोस
की
महिलाएँ

पुरुषों
की
भीड़
लग
गई| आँखें
के
साथ
बातों
की
जोड़ी
बनी
थी| यही
सोचकर
कि
खुल्लमखुल्ला
कर
इस
बाँझ
को
गाँव
से
दूर
फेंक
दें|
विवाद में
निकली
बातों
से
मरद
लोग
तृप्त
हुए
जा
रहे
थे
और
उन
लोगों
की
मेहरारु
तानेपेताने
मारे
जा
रही
थी
अरे!

लुटना
जैयसन
आदमी
है
जो, इस
बाँझ
को
खिलाखिला
कर
लठैत
बना
रखा
है| वरना, इसकी
जगह
मैं
रहती
तो
कबके
सोमरा
के
बाप
लाठी
मारमार
के
भगा
देता|”
वह
औरत
कुछ
देर
सिर
पर
हाथ
रखी
रही
फिर
बोलने
लगी
भगवान एक
बाँझ
को
भी
कितना
सुविधा
दे
रखा
है?”

रामवती की
चुप्पी
ने
साबित
कर
दिया
कि
वह
भी
यही
चाहती
है| किसी
के
कंधे
पर
बंदूक
चला
चाटूकारिता
के
साथ
दुस्साहस
भी
समझ
बैठी| वे
चुपचाप
और
भी
बातें
सुनने
को
तरस
रही
थी|


बाँझपन वाली
पीड़ा
से
कजरी
ऊब
चुकी
थी| टिस
कम
करने
के
लिए
मवाद
का
बाहर
होना
जरूरी
था, ताकि
पीड़ा
शांत
हो| कजरी
की
जुबान
खुल
गई
और
बनके
लगी
गाँव
में
कोए
मरद
नाहीं….. तब
तो
बियाह
के
आठ
साल
बाद
भी
एगो
कैलेंडर
जारी
नहीं
कर
पाया…. भतार
के
नाम
पर
फूटल
ढोल
दे
दिया
आर
रंडीछिनाल
कहकहके
ताल
ठोके
जा
रहा
है| अरे!
औरत
का
देह
है…. इसीलिए
? आर, हाँ!
सिर्फ
हमरी
बात
नाहीं…. सड़क
पर
भी
छिनड़पन
की
धुन
जगजाहिर
है| याद
रख, हम
जन्मा
के
भी
दिखा
देयब, आर

तोरा
नियर
तार
गाछ
वाला
दिखावा
भी
नाहीं…. ओकरा
में
लालपियर
रंग
भी
भर
देयब…. भूलना
मत|”

कजरी की
बात
सुन
तो
मर्द
लोग
देखते
ही
रह
गए| सामने
खड़ी
महिलाएँ
भी
अवाक
रह
गईं| लुटन
की
माँ
तो
कुछ
देर
तक
स्टेचु
बन
ताकती
रही, फिर
मुँह
पर
आँचल
रख, घर
के
अंदर
प्रवेश
कर
गई| आपस
में
फुसुरफुसुर
करती
महिलाएँ
आँगन
छोड़ती
चली
जा
रही
थी| निकलती
हुई
रंडीछिनाल
से
परिष्कृत
भी
करती
गई| लुटन
अपने
कमरे
में
यूँ
ही
पड़ा
रहा|

पड़ोसियों के
बीच
मनमाफिक
काम
हुआ
और
क्षण
भर
में
ही
आग
की
लपटे
विकराल
रूप
धारण
कर
लिया|
रामवती की
पीड़ा
बढ़ती
चली
गई| पिता
की
भी
आँखे
लाललाल| वे
कजरी
पर
टूट
पड़े| गाँव
वालों
की
उल्टीपुल्टी
बातों
ने
इज्जत
पर
सवाल
खड़ा
कर
दिया| कुछ
औरतें
रामवती
को
भी
उकसाने
में
लगी
रहीं| एक
औरत
तो
बोल
रही
थी
दीदी, ऐयसन
औरत
के
घौर
में
रखला
से
कोए
फायदा
नैय…. कभियो
नाक
कटाए
देतौअ….केकरो
पर
नजर
गड़ाय
के
देख
लेतैय


बेचारी
भी
बाँझ
होए
जैतैय……फेर
दोसरो
के
जिनगी
में………?”


लुटन से
सहा
नहीं
गया| वह
घर
से
बाहर
निकल
आया| उसे
देखते
ही
सभी
महिलाएँ
ताव
कसने
लगी
लुटन, तोरा
में
कि
कमी
छौअदोसर
बियाह
कैर
लैय….. ऐयसन
मेहरारु
से
छुट्टी
लै
लैय…. एकरा
में
कि
रखल
छैय?”
लुटन कुछ
देर
के
लिए
चुप्पी
साधे
रहा, लेकिन
उन
लोगों
की
बातें
कजरी
पर
दोष
साबित
करने
के
लिए
उफान
पर
था| आखिर
कर
लुटन
की
आवाज
निकल
आई
इसमें कजरी
की
क्या
गलती
है? यह
तो
निर्दोष
के
साथ
पवित्र
भी
है| चरित्र
भी
शिखर
के
समान…. मैं
नहीं
चाहता
कि
अपने
में
समाहि
दुर्गुण
को
किसी
के
रग
में
उड़ेल
दूँ
और
आने
वाली
पीढ़ी
भी
दुष्चरित्र
होने
से
बचने
का
उपाय
ढूँढता
फिरे?”

घर वालों
के
साथ
जमा
भीड़
की
निगाहें
भी
लुटन
की
जम
गई, कान
भी
सुनने
को
और
बेताव|

फिर लुटन
ने
कहना
शुरू
किया
वर्षों पहले
मेरा
मित्र
सड़क
दुर्घटना
में
घायल
हो
गया
था| डॉक्टर
ने
खून
की
जरूरत
बताया
और
मैं
तैयार
हो
गया
था| कुछ
ही
मिनटों
बाद
जाँच
रिपोर्ट
आने
के
बाद
डॉक्टर
ने
कहा, ‘आप
किसी
और
आदमी
को
लाएँ| आपका
खून
काम
नहीं
आएगा|’ उस
समय
तो
कुछ
भी
नहीं
समझ
पाया| जब
तक
उसके
घर
वालों
की
उपस्थिति
हुई, तब
तक
में
मित्र
को
मृत्यु
ने
गले
लगा
लिया| तब
जाकर
मैं
डॉक्टर
से
उलझ
गया| डॉक्टर
ने
समझाया
कि
आप
किसी
की
जान
बचाने
लायक
नहीं
हैं| आपसे
औरों
की
जान
छिन
सकती
है|”
लुटन कुछ
देर
चुप
रहा
और
आँखों
से
आँसू
को
पोछते
हुए
कहने
लगा-“मैं
एड्स
जैसी
बीमारी
से
ग्रसित
हूँऔर
जीवन
का
नाम
बच्चा
पैदा
करना
या
सिर्फ
शारीरिक
संबंध
बनाना
मात्र
नहीं|”

घर वाले
अवाक
रह
गए| लगी
भीड़
गली
की
ओर
निहारने
लगी| कजरी
लुटन
को
सुने
जा
रही
थी
जो
आज
आठ
वर्षों
से
ललायित
थी| चेहरे
को
छुपाना
चाहा
लेकिन
कजरी
लपक
कर
लुटन
से
लिपटती
हुई
आँचल
से
आँसू
पोछने
लगी|

संजय कुमार 

लेखक

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यकीन

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4 thoughts on “लुटन की मेहरारु”

  1. बेहद मर्मस्पर्शी कहानी,बहुत सुंदर बुना है आपने पात्रों को..बहुत अच्छी लगी👌

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