हमारे देश में बड़ी -बड़ी बातों को लोक कथाओं के माध्यम से समझाया गया है | आज ऐसी ही एक लोक कथा पर नज़र पड़ी | जो एक बहुत खूबसूरत सन्देश दे रही थी | तो आज ये छोटी सी लोक कथा आप सब के लिए …
एक छोटी सी कोशिश
एक नन्हीं चिड़िया थी | वो जंगल में रहती थी | रोज सुबह वो दाना ढूँढने
निकलती | उसके रास्ते में एक ऋषि का आश्रम पड़ता था | वहां पेड़ पर बैठ वो थोड़ी देर
सुस्ताती | इसी बीच ऋषि के प्रवचन उसके कान में पड़ जाते |धीरे –धीरे उसको उन
प्रवचनों में आनंद आना लगा और वो ध्यान से सुनने लगी | जिससे उसके व्यवहार में
परिवर्तन आने लगा | एक दिन जंगल में आग लग गयी | सभी जानवर इधर उधर भागने लगे |
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करा जाए | तब वो नन्हीं चिड़िया उस जंगल के
सरोवर से अपनी चोंच में पानी भरभर के लाने लगीऔर आग पर डालने लगी | उसे देखकर अन्य
चिड़ियों ने उसे समझाया, “ यहाँ क्यों समय बर्बाद कर रही हो | उड़ जाओ, शायद
तुम्हारा जीवन बच जाए | वैसे भी तुम्हारे इन प्रयासों से ये आग तो बुझेगी नहीं |
तब चिड़िया ने कहा,
निकलती | उसके रास्ते में एक ऋषि का आश्रम पड़ता था | वहां पेड़ पर बैठ वो थोड़ी देर
सुस्ताती | इसी बीच ऋषि के प्रवचन उसके कान में पड़ जाते |धीरे –धीरे उसको उन
प्रवचनों में आनंद आना लगा और वो ध्यान से सुनने लगी | जिससे उसके व्यवहार में
परिवर्तन आने लगा | एक दिन जंगल में आग लग गयी | सभी जानवर इधर उधर भागने लगे |
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करा जाए | तब वो नन्हीं चिड़िया उस जंगल के
सरोवर से अपनी चोंच में पानी भरभर के लाने लगीऔर आग पर डालने लगी | उसे देखकर अन्य
चिड़ियों ने उसे समझाया, “ यहाँ क्यों समय बर्बाद कर रही हो | उड़ जाओ, शायद
तुम्हारा जीवन बच जाए | वैसे भी तुम्हारे इन प्रयासों से ये आग तो बुझेगी नहीं |
तब चिड़िया ने कहा,
“ आप ठीक कहती हैं पर मैं चाहती हूँ कि जब इतिहास लिखा जाए तो
मेरा नाम मदद करने वालों में लिखा जाए तमाशा देखने वालों में नहीं |”
मेरा नाम मदद करने वालों में लिखा जाए तमाशा देखने वालों में नहीं |”
यूँ तो ये कहानी बहुत छोटी सी है पर बात बहुत गहरी है | जब भी कोई
विपत्ति या समस्या आती है, तो हमें लगता है, हमारी क्षमता तो बहुत कम है | हम तो
अकेले हैं | ऐसे में हम क्या मदद कर सकते हैं | कई बार किसी एक्सीडेंट के होने पर हम सब भीड़ में खड़े होकर शोर तो मचाते हैं पर
सोचते हैं मदद के लिए शायद कोई दूसरा हाथ आगे आये | कई बार अपनी क्षमता पर संदेह
भी होता है कि क्या हम कर पायेंगे | साइकोलॉजी की भाषा में इसे bystander effect कहते
हैं | जब किसी घटना या दुर्घटना में बहुत सारी भीड़ इकट्ठी हो जाती है पर हर किसी को
लगता है कि वो अकेले कोई क्या कर पायेगा, मदद कोई दूसरा करे | ऐसे में जितनी
ज्यादा भीड़ होती है, ये भावना उतनी ही प्रबल होती है | कई बार इस कारण जरूरतमंद को
मदद मिल ही नहीं पाती |
विपत्ति या समस्या आती है, तो हमें लगता है, हमारी क्षमता तो बहुत कम है | हम तो
अकेले हैं | ऐसे में हम क्या मदद कर सकते हैं | कई बार किसी एक्सीडेंट के होने पर हम सब भीड़ में खड़े होकर शोर तो मचाते हैं पर
सोचते हैं मदद के लिए शायद कोई दूसरा हाथ आगे आये | कई बार अपनी क्षमता पर संदेह
भी होता है कि क्या हम कर पायेंगे | साइकोलॉजी की भाषा में इसे bystander effect कहते
हैं | जब किसी घटना या दुर्घटना में बहुत सारी भीड़ इकट्ठी हो जाती है पर हर किसी को
लगता है कि वो अकेले कोई क्या कर पायेगा, मदद कोई दूसरा करे | ऐसे में जितनी
ज्यादा भीड़ होती है, ये भावना उतनी ही प्रबल होती है | कई बार इस कारण जरूरतमंद को
मदद मिल ही नहीं पाती |
लेकिन हर एक व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारी होती है ….
1)
पर्यावरण बिगड़ रहा है पर एक मेरे पौधा ना लगाने
से क्या होगा ?
पर्यावरण बिगड़ रहा है पर एक मेरे पौधा ना लगाने
से क्या होगा ?
2)
खाली मैं पॉलीथीन बैग ले भी जाऊ तो क्या होगा ?
खाली मैं पॉलीथीन बैग ले भी जाऊ तो क्या होगा ?
3)
आखिर मेरे कार रोज धो लेने से कितना पानी खर्च
होगा ?
आखिर मेरे कार रोज धो लेने से कितना पानी खर्च
होगा ?
4)
सड़क पर सिर्फ मेरे कूड़ा फेंक देने से पूरी सड़क
थोड़ी ही न गन्दी हो जायेगी ?
सड़क पर सिर्फ मेरे कूड़ा फेंक देने से पूरी सड़क
थोड़ी ही न गन्दी हो जायेगी ?
5)
अगर मैं दुर्घटना के समय वीडियो बना रहा था तो
क्या हुआ , दूसरे तो थे मदद करने को ?
अगर मैं दुर्घटना के समय वीडियो बना रहा था तो
क्या हुआ , दूसरे तो थे मदद करने को ?
6)
अगर मैंने आज कश्मीर की लड़कियों का मजाक बना दिया
तो क्या हुआ इतने लोग तो है जो उन्हें इज्जत दे रहे हैं ?
अगर मैंने आज कश्मीर की लड़कियों का मजाक बना दिया
तो क्या हुआ इतने लोग तो है जो उन्हें इज्जत दे रहे हैं ?
7)
धारा 370 हटने पर मैं बहुत खुश हूँ पर ये सिर्फ
मेरी जिम्मेदारी नहीं है कि कश्मीरियों का दिल जीतने या उनके साथ अच्छे रिश्ते
बनाने की पहल करूँ ?
धारा 370 हटने पर मैं बहुत खुश हूँ पर ये सिर्फ
मेरी जिम्मेदारी नहीं है कि कश्मीरियों का दिल जीतने या उनके साथ अच्छे रिश्ते
बनाने की पहल करूँ ?
किसी बात, नियम व्यवस्था पर खुश होना और
जिम्मेदार होना दो अलग बातें हैं हमें तय करना होगा कि हम क्या चाहते हैं जब
इतिहास लिखा जाए तो हमारा नाम तमाशा देखने
वालों में दर्ज हो या मदद करने वालों में ?
जिम्मेदार होना दो अलग बातें हैं हमें तय करना होगा कि हम क्या चाहते हैं जब
इतिहास लिखा जाए तो हमारा नाम तमाशा देखने
वालों में दर्ज हो या मदद करने वालों में ?
हमें भीड़ के bystander effect को समझना होगा |
भीड़ में हमारी ही तरह बहुत से लोग अपने को छोटा और कमजोर समझ कर पहल नहीं करते |
पर भीड़ का हिस्सा होते हुए भी हम सब का अलग –अलग बहुत महत्व है |
भीड़ में हमारी ही तरह बहुत से लोग अपने को छोटा और कमजोर समझ कर पहल नहीं करते |
पर भीड़ का हिस्सा होते हुए भी हम सब का अलग –अलग बहुत महत्व है |
जरूरत है बस अपने हिस्से भर की छोटी सी कोशिश
करने की …
करने की …
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keywords:bystander effect, personal role, effort, effect of cumulative efforts
प्रेरणादायक कहानी।