अभियान रहा है मानव मन की निराशाओं , कुंठाओं , अवसाद और तमाम ग्रंथियों के खिलाफ युद्ध
का, साथ ही सकारात्मक और अच्छे विचारों के प्रचार – प्रसार का , एक नए स्वस्थ
आशा से भरे समाज के निर्माण का | जीवन है तो दुःख है , हार है ,निराशा है , तकलीफे हैं | ये
सार्वभौमिक है |जीवन में कई अवसर ऐसे आते हैं जब हम पर सकारात्मक विचार कोई असर नहीं करते | ” अच्छा सोंचो , अच्छा सोंचों का प्रयास हमें और दर्द से भर देता है | ये बिलकुल वैसा ही है जैसे कई दिनों से भूंख से बिलखते किसी बच्चे के आगे रोटी के स्थान पर कोई महंगा खिलौना रख दिया जाए | वो क्या करेगा | उसे फेंक देगा | ऐसे समय में जरूरत होती है एक ऐसे हमदर्द की जो हमें समझ सके , सुन सके और निकलने में मदद करें |
देखा जाए तो हम सब चाय काफ़ी पीते हुए , शॉपिंग करते हुए , कॉमेडी शो देखते हुए
भी कहीं न कहीं एक घाव अपने दिल में पाले होते हैं जो जरा सा कुरेदने पर बिलकुल
हरा हो जाता है | उतना ही ताजा जैसे कल की
बात हो | मैं नहीं मानती की समय सब घाव भर देता है | हां ! इतना जरूर है की हम गुज़रते समय के साथ
अपने घाव के साथ जीना सीख जाते हैं |पर उस समय की अपनी ही एक टाइम लाइन होती है |
युद्ध इसी के विरुद्ध है | और हम स्वयं भी इससे परे नहीं हैं | हम लड्खडायेंगे ,
गिरेंगें , फिर उठेंगे , डगमगायेंगे और चलेंगे | हर वो अच्छा काम जो आर्थिक
उद्देश्य से ऊपर समाज हित के लिए किया जाता है | उसमें अडचने ज्यादा आती हैं |जैसे ईश्वर आप की परीक्षा ले रहा हो | साथ ही जब आप किसी अपने के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो आप एक साथ दो भावनाओं से गुजरते हैं तो एक साथ दो भावनाओं से गुज़रते हैं | पहली संतोष की ,की हम अपने प्रियजन के लिए कुछ कर पा रहे है , दूसरी असीम वेदना की , की जिसके लिए कर रहे हैं वो कभी देखेगा नहीं | ऐसे में एक – एक पग आगे बढ़ना कठिन होता है | अटूट बंधन के संस्थापक ” ओमकार मणि त्रिपाठी “जी को खोकर पूरा अटूट बंधन परिवार गहरे अवसाद में है | पर मुझे विश्वास है की वो हमें राह दिखाएँगे | हम हताश है पर इससे न ही निराशा के खिलाफ हमारा युद्ध रुकेगा | न ही सकारात्मकता के प्रचार –
प्रसार का हमारा सिलसिला |
जैसा की ” अटूट बंधन ” के संस्थापक व् पत्रिका के प्रधान संपादक ” ओमकार मणि त्रिपाठी ” जी कहा करते थे की व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है | महत्वपूर्ण हैं विचार | व्यक्ति नश्वर है | वो अपने जीवन काल में ही लोगों का भला कर सकता है | परन्तु विचार अमर हैं वो युगों – युगों तक बिना किसी भेद – भाव के निराशा के क्षणों में हर किसी की सहायता कर सकते है | सुकरात जब ” आई एम स्टिल अलाइव ” कहकर विष का प्याला पीते हैं | तो वो जानते थे की मृत्यु केवल व्यक्ति की होती है | विचारों की नहीं |
रहेगा |