कहानी संग्रह -मुट्ठी भर धूप(दस कहानियाँ


                              आज आप के सामने प्रस्तुत है    कहानी संग्रह ( ई -बुक ) मुट्ठी भर धूप | इसमें हम अटूट बंधन ब्लॉग में प्रकाशित १० श्रेष्ठ कहानियों को ( पाठकों द्वारा पढ़े जाने के आधार पर )  एक ई -बुक के रूप आप के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं | इसमें से हर कहानी किसी समस्या को उठती व् उसका समाधान खोजती हुई समाज को दिशा देने वाली है | इसमें आप पढेंगे | शशि श्रीवास्तव , वंदना  बाजपेयी , उपासना सियाग , वंदना गुप्ता , विनीता शुक्ला , शिवानी कोहली , कुसुम पालीवाल ,स्वेता मिश्रा ,सपना मांगलिक व् रोचिका शर्मा की कहानियाँ
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मेरा लड़की होना ..…. शशि श्रीवास्तव 

एक अंश …
बात उन दिनों की है जब मैंने जवान होते हुए जीवन के बहुमूल्य क्षणों को जीना शुरू किया था। मेरे माता-पिता जितने पुराने विचारों के थेमैं उतनी ही आधुनिक विचारों की महत्वाकांक्षी लड़की थी। माता-पिता कहीं कोई ऊंच-नीच न हो जाये इस कारण हम सभी बहनों पर कड़ी नज़र रखते थे। मेरे पापा मुझे पढ़ाना चाहते थे परन्तु माँ कहती, ‘इसकी शादी कर दोअपने सुसराल जाकर पढ़ लेगी।
इन सब बातों से कभी मेरी माँ से कुछ कहा-सुनी भी हो जाती। पापा से कभी कुछ कहने की मेरी हिम्मत नहीं होती थी। मुझे पेंटिंग का बहुत शौक था।        एक दिन मैंने अपनी माँ से कहा- ‘ मेरी छुट्टियां शुरू हो रही हैंआप मुझे पेंटिंग या सिलाई आदि कुछ सिखा दीजिए।’ 
        इस पर माँ बोली, ‘शादी हो जाने दे फिर जो जी में आए करती रहना।
माँ की इस बात पर मुझे बहुत गुस्सा आया। 

चूड़ियाँ ….. वंदना बाजपेयी 

एक अंश …
शादी हुई रिया ससुराल पहुँच गयी  …  पति के घर में भी उसकी चूड़ी प्रेम की चर्चा होने लगी । पति उससे बहुत प्रेम करते थे । दो हंसो का जोड़ा था उनका फिर कैसे न जानते उसके दिल की बात …… उसे तरह-तरह की चूड़ियाँ ला कर देते । लाल पीली हरी ,नीली , लाख की कटाव दार फ्रेंच डिजाईन मोती जड़ी ,कामदार कभी कभी स्पेशल आर्डर दे कर मंगाते । चूड़ी से उसके दोनों हाथ भर जाते ।देवरानी जेठानी सब छेड़ती” लो एक और तुलसीदास।”  जब यह बात उसने मुझे पत्र में लिखी थी तो मुझे दूर से ही सही पर उसकी शरमाई आँखों और लजाते होठ जैसे साफ़ -साफ़ दिख रहे थे।  रिया माँ बनी इतना तक तो मुझे पता चला पर उसके बाद अचानक उसका चिट्ठी आना बंद हो गया.  . मैंने बहुत चिट्ठियां लिखी पर उधर से कोई जवाब नहीं आया।  वो मेरे मायके के शहर में नहीं थी उसकी शादी कही अन्यत्र हो चुकी थी ,अब उसका हाल जानने का मेरे पास कोई जरिया नहीं थामैं केवल उसके पत्र की प्रतीक्षा कर सकती थी और वो मैं करती रहीदिनों ,महीनों सालों पर पत्र नहीं आया   तो नहीं आया।
नसीब ..उपासना सियाग 

एक अंश ….

कॉलेज में छुट्टी की घंटी बजते ही अलका की नज़र घड़ी पर पड़ी। उसने भी अपने कागज़ फ़ाइल में समेट अपना मेज़ व्यवस्थित कर कुर्सी से उठने को ही थी कि जानकी बाई अंदर आ कर बोली , ” प्रिंसिपल मेडम जी कोई महिला आपसे मिलने आयी है।”
” नहीं जानकी बाई अब मैं किसी से नहीं मिलूंगी बहुत थक गयी हूँ …उनसे बोलो कल आकर मिल लेगी।”
” मैंने कहा था कि अब मेडम जी की छुट्टी का समय हो गया है लेकिन वो मानी नहीं कहा रही है के जरुरी काम है।” जानकी बाई ने कहा।

ब्याह ..….वंदना गुप्ता 

एक अंश …..
हाय हाय ! जीजी ये क्या कह दिया ? जो कह रही हो सोचा कभी तुम भी वो ही कर रही हो वो ही जुबान बोल रही हो   जीजी कोई औरत कब खुशी से दोबारा सेज सजाती है , जाने क्या मजबूरी रही होगी , कभी इस तरह भी सोचा करो  औरत की तो बिछावन और जलावन दोनो ही कब किसी के काम आयी हैं , वो तो हमेशा निरीह पशु सी हाँकी गयी है , कभी इस देश कभी उस देश , एक साँस लेने के गुनाह की इतनी बडी सजा तो सिर्फ़ एक औरत को ही मिला करती है , दुनिया भला कब बर्तन में झाँका करती है बस कडछी के खडकने से अंदाज़े लगाती है कि बर्तन में तरकारी बची है या नहीं  और आज तुम भी यही कर रही हो बिना सोचे समझे जाने आखिर क्यों ये नौबत आयी ? आखिर क्यों औरत के सिर्फ़ हाड माँस का ही हमेशा सौदा होता रहा बिना उसकी इजाज़त के बिना उसके मन के 

दो चोर ……विनीता शुक्ला 

एक अंश ….
गीतांजलि एक्सप्रेस  धीरे धीरे पटरियों पर सरकने लगी थी। देखते ही रंजन अपने फटीचर सूटकेस के संग दौड़ पड़ा। दौड़ते भागते किसी तरह वह अपने कम्पार्टमेंट में घुस ही गया। हावड़ा स्टेशन पर भीड़ का जमावड़ा इतना ज्यादा था कि इस काम के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी उसे। पसीने पसीने होकर हांफता हुआ जब वह अपनी सीट तक पहुँचा तो सामने बैठे भद्र पुरुष ने अखबार से मुँह निकाला और एक प्रश्नवाचक  दृष्टि से उसे देखा। “जैसे तैसे ट्रेन पकड़ पाया हूँ।” अपने स्थान पर बैठते हुए उसने खिसियाहट भरे स्वर में उन सज्जन को बताया। “तो ये आपकी ही सीट है?” उन साहब ने उससे सहानुभूति जताने के बजाय फट से सवाल दाग दिया था। “जी?” उसने इस विचित्र प्रश्न  को सुनकर आश्चर्य से पूछा। “नहीं नहीं कुछ नहीं।” कहकर वे महानुभाव फिर से अखबार में गुम हो गये।
भावनाओ का अंतराल ही अंतराल ….शिवानी कोहली 

एक अंश …. 2007, चंडीगढ़ की उम्दा खिलाड़ी. “बेस्ट प्लेयर” का खिताब मिला उसे. माता-पिता, एक छोटा भाई. यही परिवार था उसका. खेलने की शौकीन और हर काम में प्रशस्त. 2006 में वो पंजाब विश्व विद्यालय के खेल विभाग में दाखिला लेने के लिए आई. उसका नाम योग्यता सूची में सबसे ऊपर था….

मेरी उससे मुलाकात 2006 की जुलाई में हुई थी शायद. तारीख तो याद नही पर इतना ज़रूर स्मरण है कि मुझे अपने छात्रावास के कमरे का कुछ पता नही चल रहा था. नयी थी. तो कुछ ने मुझे उल्लू बना कर मेरा लुतफ भी उठाया.
“सुनो, तुम्हारा कमरा चौथी मंज़िल पर है.”

भीखू ….कुसुम पालीवाल 

एक अंश ….
        ललिया..ओ..ललिया…….कहाँ मर गये सब …..किसी को चिंता नहीं है मेरी  , अरे कहाँ हो तुम सब……..मरा जा रहा हूँ सारा कलेजा जल रहा है….. ,।भीखू की आवाज जैसे ही धनिया ने सुनी….., दौडी-दौडी भीखू के पास आई ….., क्यों चिल्लाबत हो …….., ठौरे ही तो बइठे हतै………ललिया नाही है घरै मा ….काम पर गई है बोलो …….का भवा…..।
       अरी …थोडी दारू दे… दै…मर जाऊंगा , नहीं पीऊंगा  तो …………तू  क्या ये ही चाहे है …..। अब
धनिया तो मानों …..फट पडी भीखू पर ……., हाँ ….हाँ , हम सब यही चाहें. ……..तभी तो ललिया काम धन्धे पर जात है , तुमका.. का पडी……कहाँ जात है…..का करत है…….., तुम्हे तो मुंह जरी जे …… दारू ही  चाहे 

एक प्यार ऐसा भी ..…… स्वेता मिश्रा 

एक अंश …..

आप बहुत निष्ठुर हैं’…अवि ने चारू से कहा …….
चारू हैरत भरी निगाहों से अवि का चेहरा देखने लगी ….. .
और दिल ही दिल में सोचने लगी की ऐसा क्या किया उसने जो अवि ने उसे ‘निष्ठुर’ कहा …. .
अवि को अपने पेरेंट्स के साथ आये अभी दो दिन ही हुए हैं और घर भी उसका अभी ठीक से सेटल नहीं हो पाया है .फिर उसने किस बात को लेकर ये बात कही ..वो समझ नहीं सकी !
शाम को चारू कॉरिडोर में अपनी स्टडी में बिजी थी तभी वहां अवि आ पंहुचा और उसने चारू से कहा की आप ‘बहुत बहुत निष्ठुर हैं’ .तो चारू ने उससे पूछा की वो उसे ऐसा क्यों कह रहा है , उसने ऐसा क्या कर दिया ……
अवि बोला आप कितनी भोली हैं .आपके इसी भोलेपन पर तो मैं मरता हूँ .आप मेरी जिंदगी का पहला प्यार  हो मैं आपको कभी नहीं भूल सकता …..
चारू के तो पैर के निचे से मानो ज़मीन ही खिसक गई हो …

अहम् .सपना मांगलिक 

एक अंश ….
आज फिर वही मियां बीवी की तू तडाक और तेरी मेरी से घर गूँज उठा था .विनय बाबू बैचैनी से लॉन में टहल रहे थे ,उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का क्या हल निकालें .आस पडो स के घरों की खिड़कियाँ भी खुली हुईं थीं शायद पडोसी भी विनय बाबू की तरह ही या तो वाकई मामले की तह में जाना चाहते थे या फिर यूँ ही फ्री  की फिल्म देखकर वाद विवाद और हास परिहास की सामग्री जुटाना चाहते थे .खैर जो भी हो मगर जबसे यह नए किरायेदार आये हैं इन्होने जीना हरम करके रक्खा हुआ है कभी पति गुस्से में पत्नी को लताडता तो कभी पत्नी अपनी कर्कशता दिखाती .मानो आंधी और सुनामी एक साथ इस घर पर कहर बरसाने के लिए उपरवाले ने भेज दीये  हों .कल ही की बात है पत्नी चाय मेज पर पटकते हुए चिल्लाई –“लो सुडको चाय आते ही आदेश देने शुरू कर दिए ,मैं तो दिन भर पलंग तोडती हूँ मेरा काम किसी को नहीं दीखता सुबह पांच बजे से बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करो ,खाना बनाओ सफाई करो यह करो वो करो (
डर .…रोचिका शर्मा 


एक अंश …

रीना एक पढ़ी-लिखी एवं समझदार लड़की थी । जैसे ही उसके रिश्ते  की बातें घर में होने लगीं उसके मन में एक डर घर करने लगा वह था ससुराल का डर। वह तो अरेंज्ड मॅरेज के नाम से पहले से ही डरती थी । फिर भी कुँवारी तो नहीं रह सकती थी । दुनिया की प्रथा है विवाह ! निभानी तो पड़ेगी । यह सोच उसने अपने पिताजी को बता दिया कैसा लड़का चाहिए । फिर क्या था पिताजी ढूँढने लगे पढ़ा-लिखा एवं खुले विचारों वाला लड़का । बड़ी लाडली थी वह अपने पिता की । एक दिन लड़का व उसके परिवार वाले उसे देखने आए । गोरा रंगसुन्दर कद-काठी एवं रहन-सहन देख लड़का तो जैसे उस पर मोहित हो गया ।

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