अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे

हम जंग न होने देंगे 
विश्व शांति के साधक हैं, जंग न होने देंगे !
 भारत -पकिस्तान पड़ोसी साथ -साथ रहना है 
प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है, 
तीन बार कर चुके लड़ाई , कितना महंगा सौदा ,
रूसी बम हो या अमरीकी, खून एक बहना है|
जो हम पर गुजरी, बच्चों के संग ना होने देंगे |
जंग ना होने देंगे |

            विश्व शांति
के हम साधक हैं
जंग होने देंगे,
युद्धविहीन विश्व का
सपना भंग होने
देंगे। हम जंग
होने देंगे..’ इस युगानुकूल
गीत द्वारा महान युग
तथा भविष्य दृष्टा कवि
अटल जी ने सारी
मानव जाति को सन्देश
दिया था कि विश्व
को युद्धों से नहीं
वरन् विश्व शांति के
विचारों से चलाने में
ही मानवता की भलाई
है। इस विश्वात्मा
के लिए हृदय से
बरबस यह वाक्य निकलता
है
जहाँ पहुँचे रवि,
वहाँ पहुँचे कवि। विश्व
शान्ति के महान विचार
के अनुरूप अपना सारा
जीवन विश्व मानवता के
कल्याण के लिए समर्पित
करने वाले वह अत्यन्त
ही सरल, विनोदप्रिय
एवं मिलनसार व्यक्ति थे।
सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न
से सम्मानित श्री अटल
बिहारी वाजपेयी जी एक
कुशल राजनीतिज्ञ होने के
साथसाथ
एक अच्छे वक्ता भी
थे।

अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे


            भले ही
16
अगस्त
2018
में अटल जी इस
नाशवान तथा स्थूल देह
को छोड़कर विश्वात्मा
बनकर परमात्मा में विलीन
हो गये। लेकिन उनकी
ओजस्वी वाणी तथा महान
व्यक्तित्व भारतवासियों
सहित विश्ववासियों को युगोंयुगों
तक सत्य के मार्ग
पर एक अटल खोजी
की तरह चलते रहो,
चलते रहो की निरन्तर
प्रेरणा देता रहेगा। चाहे
एक विपक्षी नेता की
भूमिका हो या चाहे
प्रधानमंत्री की भूमिका
हो दोनों ही भूमिकाओं
में उन्होंने भारतीय राजनीति
को परम सर्वोच्चता
पर स्थापित किया। संसार
में बिरले ही राजनेता
ऐसी मिसाल प्रस्तुत
कर पाते हैं। जीवन
भर अविवाहित रहकर मानवता
की सेवा ही उनका
एकमात्र ध्येय तथा धर्म
था।

            अटल जी
पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी
देसाई की सरकार में
1977
से
1979
तक विदेश मंत्री रहे।
इस दौरान वर्ष 1977 में
संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में
उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी
दृष्टिकोण से ओतप्रोत
भाषण दिया था। अटल
जी ही पहले विदेश
मंत्री थे जिन्होंने
संयुक्त राष्ट्र संघ में
हिन्दी में भाषण देकर
भारत को गौरवान्वित
किया था। इस भाषण
कुछ अंश इस प्रकार
थे
अध्यक्ष महोदय, भारत की
वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना
बहुत पुरानी है। हमारा
इस धारणा में विश्वास
रहा है कि सारा
संसार एक परिवार है।
मैं भारत की ओर
से इस महासभा को
आश्वासन देना चाहता हूं
कि हम एक विश्व
के आदर्शों की प्राप्ति
और मानव कल्याण तथा
उसके गौरव के लिए
त्याग और बलिदान की
बेला में कभी पीछे
नहीं रहेंगे। अटल जी
ने अपने भाषण की
समाप्ति
‘‘
जय जगत’’
के जयघोष से की
थी। इस विश्वात्मा
ने
‘‘
जय जगत’’
से अपने भाषण की
समाप्ति करके दुनिया को
सुखद अहसास कराया कि
भारत चाहता है, किसी
एक देश की नहीं
वरन् सारे विश्व की
जीत हो। दुनिया को
अटल जी के अंदर
भारत की विश्वात्मा
के दर्शन हुए थे।

            अटल जी
के इस भाषण में
भी उनके विश्व शांति
का साधक होने का
पता चलता हैं। संयुक्त
राष्ट्र में अटल बिहारी
वाजपेयी का हिंदी में
दिया भाषण उस वक्त
काफी लोकप्रिय हुआ था।
यह पहला मौका था
जब संयुक्त राष्ट्र जैसे
शान्ति के सबसे बड़े
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर
भारत कीविश्व गुरू की गरिमा
का बोध सारे विश्व
को हुआ था। संयुक्त
राष्ट्र में उस समय
उपस्थित विश्व के 193 सदस्य
देशों के प्रतिनिधियों
को इतना पसंद आया
कि उन्होंने देर तक
खड़े होकर भारत की
महान संस्कृति के सम्मान
में जोरदार तालियां बजाकर
अपनी हार्दिक प्रसन्नता
प्रकट की थी। इस
विहंगम तथा मनोहारी दृश्य
ने महात्मा गांधी के
इस विचार की सच्चाई
को महसूस कराया था
कि एक दिन ऐसा
अवश्य आयेगा जब दिशा
से भटकी मानव जाति
सही मार्गदर्शन के लिए
भारत की ओर रूख
करेगी।

            ब्रिटिश शासकों
ने जोरजबरदस्ती
से विश्व के 54 देशों
में अपने उपनिवेशवाद
का विस्तार किया था।
मेरे विचार से आधुनिक
लोकतंत्र का विचार उसी
काल में अस्तित्व
में आया तथा विकसित
हुआ था। अटल जी
लोकतंत्र के प्रहरी थे
जब कभी लोकतंत्र
की मर्यादा पर आँच
आई तो अटल जी
ने उसका डटकर मुकाबला
किया। इसके साथ ही
उन्होंने कभी भी राजनीतिक
और व्यक्तिगत संबंधों को
मिलाया नहीं। 21वीं सदी
में इस विश्वात्मा
के दिखाये मार्ग में
आगे बढ़ते हुए हमें
लोकतंत्र को देश की
सीमाओं से निकालकर वैश्विक
लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व
संसद)
का स्वरूप प्रदान करना
चाहिए। लोकतंत्र की स्थापना
मानवता की रक्षा के
लिए ही की गयी
थी। अतः राज्य, देश
तथा विश्व से मानवता
सबसे ऊपर है।

            यूरोप के
27
देश जो कभी आपस
में युद्धांे की विभीषका
में बुरी तरह से
फंसे थे। उन्होंने
लोकतंत्र को देश की
सीमाओं से निकालकर लोकतांत्रिक
यूरोपिन यूनियन की स्थापना
कर ली है। इसके
अन्तर्गत इन देशों ने
मिलकर अपनी एक यूरोपियन
संसद,
नियमकानून,
यूरो मुद्रा, वीजा से
मुक्ति आदि कल्याणकारी
कदम उठाकर अपनेअपने
देश के नागरिकों
को आजादी, समृद्धि तथा
सुरक्षा का वास्तविक
अनुभव कराया है। साथ
ही दकियानुसी विचारकों
की इस शंका को
झूठा साबित कर दिया
कि यूरोप के 27 देशों
में आनेजाने के
लिए वीजा से मुक्ति
देने से यूरोप के
अधिकांश लोग लंदन तथा
पेरिस जैसे विकसित महानगरों
की ओर भागेगे जिससे
भारी अराजकता तथा अफरातफरी
मच जायेगी।

            अटल जी
सर्वाधिक नौ बार सांसद
चुने गए थे। वे
सबसे लम्बे समय तक
सांसद रहे थे और
श्री जवाहरलाल नेहरू
श्रीमती इंदिरा गांधी के
बाद सबसे लम्बे समय
तक गैर कांग्रेसी
प्रधानमंत्री भी। अटल
जी विश्व शांति के
पुजारी के रूप में
भी जाने जाते हैं।
उनके द्वारा सारी दुनिया
में शांति की स्थापना
हेतु कई कदम उठाये
गये। अत्यन्त ही सरल
स्वभाव वाले अटल जी
को
17
अगस्त
1994
को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ
सांसद के सम्मान से
सम्मानित किया गया। उस
अवसर पर अटल जी
ने अपने भाषण में
कहा था किमैं
आप सबको हृदय से
धन्यवाद देता हूं। मैं
प्रयत्न करूगा कि इस
सम्मान के लायक अपने
आचरण को बनाये रख
सकूं। जब कभी मेरे
पैर डगमगायें तब ये
सम्मान मुझे चेतावनी देता
रहे कि इस रास्ते
पर डांवाडोल होने की
गलती नहीं कर सकते।’’

            25 दिसंबर 1924 को
मध्य प्रदेश के ग्वालियर
में जन्में अटल जी
ने राजनीति में अपना
पहला कदम 1942 में रखा
था जबभारत छोड़ो
आन्दोलन
के दौरान उन्हें
उनके बड़े भाई प्रेम
जी को 23 दिन के
लिए गिरफ्तार किया गया
था। अटल जी के
नेतृत्व क्षमता का अंदाजा
इसी बात से लगाया
जा सकता है कि
वह एनडीए सरकार के
पहले ऐसे गैर कांग्रेसी
प्रधानमंत्री थे जिन्होंने
बिना किसी समस्या के
5
साल तक प्रधानमंत्री
पद का दायित्व बहुत
ही कुशलता के साथ
निभाया।

            उनकी प्रसिद्ध
कविताओं की कुछ पंक्तियाँ
इस प्रकार हैंबाधाएँ
आती हैं आएँ, घिरें
प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि
ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसतेहँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।, हार नहीं
मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा, काल
के कपाल पे लिखता
मिटाता हूं गीत नया
गाता हूं, मैं जी
भर जिया, मैं मन
से मरूं, लौटकर आऊंगा,
कूच से क्यों डरूं?,
हे प्रभु! मुझे इतनी
ऊँचाई कभी मत देना,
गैरों को गले
लगा सकूँ, इतनी रूखाई
कभी मत देना से उनकी
अटूट संकल्प शक्ति तथा
मानवीय उच्च मूल्यों का
पता चलता है।

            अटल जी
सदैव दल से ऊपर
उठकर देशहित के बारे
में सोचते, लिखते और
बोलते थे। उनकी व्यक्तित्व
इस प्रकार का था
कि उनकी एक आवाज
पर सभी देशवासी एक
जुट होकर देशहित के
लिये कार्य करने के
लिये सदैव उत्साहित
रहते थे। उनके भाषण
किसी चुम्बक के समान
होते थे, जिसको सुनने
के लिये लोगों का
हुजूम बरबस ही उनकी
तरफ खिंचा आता था।
विरोधी पक्ष भी अटल
जी के धारा प्रवाह
और तेजस्वी भाषण का
कायल रहा है। अटल
जी के भाषण, शालीनता
और शब्दों की गरिमा
का अद्भुत मिश्रण था।

            अटल व्यक्तित्व
वाले हमारे पूर्व प्रधानमंत्री
भारत रत्न अटल जी
हमेशा अपने देशवासियों
के साथ ही सारे
विश्व के लोगों के
हृदय एवं उनकी यादों
में सदैव अमर रहेंगे।
हमारा मानना है कि
अपने जीवन द्वारा सारे
विश्व में अटल जी
एक कुशल राजनीतिज्ञ

श्रेष्ठ वक्ता के साथ
ही विश्व मानवता के
सबसे बड़े पुजारी के
रूप में अपनी छाप
छोड़ने में सफल रहे
हैं। अपने देश की
भाषा,
अपने देश कीवसुधैव
कुटुम्बकम्
की महान संस्कृति
पर गर्व करने वाले
विश्व शांति के साधक
माननीय अटल जी के
प्रति हम अपनी हार्दिक
श्रद्धा एवं सुमन उनकी
प्रिय कविता ‘‘विश्व शांति
के हम साधक हैं,
जंग होने देंगे’’ के द्वारा
सादर अर्पित करते हैं:-

            हम जंग

होने देंगे! विश्व शांति
के हम साधक हैं,
जंग होने देंगे!
कभी खेतों में
फिर खूनी खाद फलेगी,
खलिहानों में नहीं मौत
की फसल खिलेगी, आसमान
फिर कभी अंगारे
उगलेगा,
एटम से नागासाकी
फिर नहीं जलेगी, युद्धविहीन
विश्व का सपना भंग

होने देंगे। जंग
होने देंगे। हथियारों
के ढेरों पर जिनका
है डेरा, मुँह में
शांति,
बगल में बम, धोखे
का फेरा, कफन बेचने
वालों से कह दो
चिल्लाकर,
दुनिया जान गई है
उनका असली चेहरा, कामयाब
हो उनकी चालें, ढंग

होने देंगे। जंग
होने देंगे।

            हमें चाहिए
शांति,
जिंदगी हमको प्यारी, हमें
चाहिए शांति, सृजन की
है तैयारी, हमने छेड़ी
जंग भूख से, बीमारी
से,
आगे आकर हाथ बटाए
दुनिया सारी। हरीभरी
धरती को खूनी रंग

लेने देंगे, जंग
होने देंगे। भारतपाकिस्तान
पड़ोसी,
साथसाथ
रहना है, प्यार करें
या वार करें, दोनों
को ही सहना है,
तीन बार लड़ चुके
लड़ाई,
कितना महँगा सौदा, रूसी
बम हो या अमेरिकी,
खून एक बहना है।
जो हम पर गुजरी,
बच्चों के संग
होने देंगे। जंग
होने देंगे।

            वर्तमान में
विश्व की दयनीय सच्चाई
यह है कि विश्व
न्यायालय के तराजू के
एक पलड़े में सुरक्षा
के नाम पर देशों
द्वारा बनाये गये हजारों
की संख्या में घातक
तथा मानव संहारक परमाणु
बमों का भारी जखीरा
रखा है तो दूसरे
पलड़े में विश्व भर
के ढाई अरब बच्चों
को सुरक्षित भविष्य है।
मानव जाति को तय
करना है कि आखिर
हमारे शक्तिशाली देशों के
माननीय राष्ट्राध्यक्ष विश्व को
किस दिशा में ले
जाना चाहते हैं? क्या
उन्हें मानव सम्यता की
यात्रा की अगली मंजिल
ठीकठीक
पता है? इस महाप्रश्न
को संसार के प्रत्येक
जागरूक नागरिक को समय
रहते मानवीय ढंग से
बहुत सोच समझकर हल
करना है! एक भारतीय
तथा विश्व नागरिक होने
के नाते मेरे विचार
से मानव जाति की
अन्तिम आशा विश्व संसद
तथा उसके प्रभावशाली
विश्व न्यायालय के गठन
पर टिकी है। किसी
महापुरूष ने कहा है
कि अभी नहीं तो
फिर कभी नहीं!!! 

– प्रदीप कुमार सिंहलखनऊ
पताबी-901, आशीर्वाद,
उद्यान-2,
एल्डिको,
रायबरेली रोड,
लखनऊ-226025 मो0 9839423719

लेखक -प्रदीप कुमार सिंह

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