आलोक कुमार सातपुते की लघुकथाएं

हिजड़ा  वह दैहिक सम्बन्धों से अनभिज्ञ एक युवक था । उसके मित्रजन उसे इन सम्बन्धों से मिलने वाली स्वार्गिक आनन्द की अनुभूति का अतिशयोक्तिपूर्ण बखान करते। उसका पुरुषसुलभ अहम् जहाँ उसे धिक्कारता, वहीं उसके संस्कार उसे इस ग़लत काम को करने से रोकते थे । इस पर हमेशा उसके अहम् और संस्कारों में युद्ध होता था । एक बार अपने अहम् से प्रेरित हो वह एक कोठे पर जा पहुँचा। वहाँ पर वह अपनी मर्दांनगी सिद्ध करने ही वाला था कि, उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया। चँूकि वह संस्कारी था, सो वह वापस आने के लिये उद्यत हो गया, इस पर उस कोठेवाली ने बुरा सा मँुह बनाया, और लगभग थूकने के भाव से बोली-साला हिजड़ा। बाहर निकलने पर उसके मित्रों ने उससे उसका अनुभव पूछा, इस पर उसने सब कुछ सच-सच बता दिया। इस पर उसके मित्रों का भी वही कथन था-साला हिजड़ा। …इतना होने पर भी वह आज संतुष्ट है, और सोचता है कि, वह हिजड़ा ही सही, है तो संस्कारी। 2वर्गभेद  किसी गांव मेें तीन व्यक्ति ‘अ’, ‘ब’, और ‘स’ रहा करते थे, जो क्रमशः उच्च वर्ग, मध्यमवर्ग, और निम्नवर्ग से थे । तीनों ने ही अलग-अलग शासकीय कर्ज ले रखा था । क़िस्तें न पटने पर  एक बार उस गांव में वसूली अधिकारियों का दौरा हुआ । सबसे पहले वे ‘अ’ के घर पहुंचे। वहां वे मुर्ग़े की टाँगें खींचते और महुए की श़्ाराब पीते हुए कहने लगे-‘दाऊजी, आपसे तो हम पैसे कभी भी ले लंेगे,…पैसे भागे थोडे़ ही जा रहे हंै। वहां से वे ‘स’ के घर पहुंचे, उसकी दयनीय स्थिति देखकर उनकी आंखें डबडर्बा आइं, और वे उससे बिना कुछ कहे ‘ब’ के घर की ओर चल दिये और वहां पहुंचकर उन्होंने उसे हड़काना शुरू कर दिया-क्यों बे ! पैसे देखकर तेरी नीयत ख़राब हो गई…। लाओ साले की ज़मीन, जो कर्ज़ लेते समय बंधक रखी थी, को नीलाम करते हंै । …और नीलामी कि प्रक्रिया शुरू हो गयी ।  3तीन ठग सैकड़ों वर्षांे की ग़्ाुलामी-तप से प्रसन्न हो कर प्रभु ने वरदान-स्वरुप भारत को एक लोकतंात्रिक कुर्सी प्रदान कर दी । चँूकि भारत की काया जीर्ण हो चली थी, इसलिये वह उसे कंधो पर बंाधे धीरे-धीरे चलने लगा, तभी सामने से आते हुए तीन ठगों की नज़रें उस कुरसी पर पड़ी । कुरसी देखकर उनके मँुह में पानी भर आया, और वे उसे हड़पने की युक्ति सोचने लगे । आख़िरकार उनके श़्ाातिर दिमाग़ में एक युक्ति आ ही गई । योजनानुसार तीनों उसी मार्ग पर अलग-अलग छिप गये । उनकी उपस्थिति से बेख़बर भारत अपनी मंद चाल से चलता रहा, तभी पहला ठग सामने आकर उससे कहने लगा-क्यूं भाई ! आप ये सम्प्रदायवाद की बेंच को कहाँ लिये फिर रहे हो ? क्रोधित हो भारत ने कहा अंधे हो क्या ? तुम्हंे ये लोकतांत्रिक कुरसी नज़र नहीं आती । ठग हँसता हुआ चला गया । कुछ आगे जाने पर दूसरा ठग सामने आकर कहने लगा-ये जातिवाद की टेबल को कहाँ लादे फिर रहे हो ? भारत ने बैाखलाकर कहा-अरे भई, ये टेबल नही, कुर्सी है । इस पर दूसरा ठग भी हँसते हुए चला गया । कुछ और आगे बढ़ने पर भारत का सामना तीसरे ठग से हो गया । तीसरा ठग ठहाका लगाकर कहने लगा-अरे यार ये क्षेत्रीयता के डबलबेड के पलंग को कहाँ ढोये जा रहे हो ?  अब भारत का आत्मविश्वास भी डगमगा गया । उसने यह सोचकर कि संप्रदायवाद, जातिवाद, और क्षेत्रीयतावाद से तो उसका अहित ही होगा, उसने कुर्सी को फेंकना चाहा । अब कुर्सी सड़क पर थी, पर भारत के कंधों का बंधन पूरी तरह खुला नहीं था, सो वह कुर्सी भारत के साथ घिसटती जा रही थी । अब बारी-बारी से तीनों ठग कूद-कूद कर उस कुरसी पर बैठने लगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला ज़ारी है ।  4अविश्वास एक घर में तीन व्यक्ति बैठे हुये हंै। पहला उस घर का मालिक, दूसरा उसका एक नज़दीकी मित्र, और तीसरा वो, जो उसके साइड वाले कमरे को किराये से पाने की उम्मीद से उसके नज़दीकी मित्र के साथ आया है। चँूकि उम्मीदवार कंुआरा है, इसलिये मकान-मालिक उसे किरायेदार नहीं बनाना चाह रहा है, पर साथ में नज़दीकी मित्र होने के कारण वह धर्मसंकट में है।  उनके बीच बातचीत का सिलसिला प्रारंभ होता है ।  मकान-मालिक -फ़िलहाल तो मकान किराये पर उठाने का हमारा कोई इरादा नहीं है।  उम्मीदवार -क्यों ?  मकान-मालिक -क्यांेकि उस कमरे की खिड़कियों में पल्ले नहीं लगे हैं, और बिजली का कनेक्शन भी पीछे पोल से है, उसे सामने पोल से लेना है ।  उम्मीदवार -मुझे कोई हर्ज़ नहीं है। मैं चाबी आपके पास ही छोड़ जाया करूँगा, फिर आप चाहे जैसे रिपेयरिंग करवाते रहिये ।  (मकान मालिक सोचने लगता है ये साला ऐसे टलने वाला नहीं,…मुझे कोई दमदार बहाना सोचना चाहिए, तभी उसे कुछ सूझता है।) मकान-मालिक -हमारे यहाँ हमारे भतीजे भी साथ में रहतेे हैं। उनकी पढ़ाई में ख़लल न पड़े, सोचकर भी हम फ़िलहाल मकान किराये से देने के पक्ष में नहीं हेैं।(इस बीच मकान-मालकिन चाय लेकर आती है) उम्मीदवार (चाय पीते-पीते)- भाईसाहब, पढ़ाई के मुआमले में तो मैं और भी संज़ीदा हूँ। मंै खुद सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रहा हँू। ये तो आपके लिये प्लस-प्वांईट होना चाहिये ।  (मकान मालिक फिर सोचने लगता है, साला है तो दिमाग़ का तेज़ पर जब मिसेज़ चाय लेकर आई थी, तो ऐसे घूर रहा था, मानों कच्चा ही चबा जायेगा…इससे स्पष्ट कहना ही ठीक रहेगा।) मकान-मालिक -यार हम लोग फ़ैेमिली वालों को ही मकान किराये से देने के पक्ष में हैं।  अब उम्मीदवार जाने के लिये निराशापूर्वक उठ खड़ा हो जाता है, क्योंकि उसे मालूम है, उसके चेहरे पर तो उसका चरित्र खुदा हुआ नहीं है, किन्तु जाते-जाते वह कहकर ही जाता है-भाईसाहब, पहले आप मुझे यह बतायें कि आपको मुझ पर भरोसा नहीं है, या अपने आप पर, या फिर अपनी पत्नी पर…। आलोक कुमार सातपुते 

शार्टकट

आलोक कुमार सातपुते         टी.वी. पर केन्दीय मंत्रिमण्डल का शपथ ग्रहण समारोह का सीधा प्रसारण चल रहा था। प्रमोद और उसकी पत्नी करूणा यह जानने को उत्सुक थे कि उनके राज्य से किसी को मंत्री बनाया जा रहा है, या नहीं। हालांकि अख़बारों में उनके राज्य से सबसे कम उम्र की महिला कमली तिवारी को महिला विकास मंत्री बनाये जाने की ख़बर पिछले कुछ दिनों से चल रही थी, पर अंतिम समय तक सब कुछ अनिश्चित ही था। उनके साथ उनकी पेईंग गेस्ट रेखा भी बडे़ ध्यान से शपथ ग्रहण समारोह देख रही थी। करूणा को इस बात की भी खुशी थी कि यदि कमली को मंत्री बनाया जाता है, तो वह सबसे कम उम्र की महिला मंत्री बनने का रिकार्ड बना लेगी। कमली तिवारी एक बेहद ही ख़ूबसूरत लड़की थी। वह किसी फिल्म की हीरोईन की तरह ही दिखती थी। पूरे राज्य में उसकी ख़़ूबसूरती के चर्चे होते रहते थे। उसके बारे में कहा जाता था कि वह एक सेलिब्रेटी लीडर है। राज्य का युवा वर्ग तो उसका दीवाना ही था। उसके संसदीय क्षेत्र मे तो युवा वर्ग ने उसकी ख़ूबसूरती को ही देखकर ही वोट दिया था। यह इस बात से प्रमाणित होता था कि उसने  पहली बार ही लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उसके प्रतिद्वंद्वी की जमानत तक जब्त हो गई थी। कमली के बारे में पढ़ने को मिलता रहता था कि वह काॅलेज़ के दिनों से ही लीडरशिप कर रही है। जो भी हो, राज्य की महिलाओं को उससे बड़ी उम्मीदें थीं कि महिला विकास मंत्री का पद मिलने के बाद वह निश्चित तौर पर महिला सशक्तिकरण की दिशा में कार्य करेगी।         शपथ ग्रहण के लिए उसका नाम पुकारा गया। उसने बडे़ ही आत्म-विश्वास के साथ अंग्रेज़ी में शपथ ली। शाम होते-होते उसका विभाग भी पता चल चुका था। आशानुरूप उसे महिला विकास मंत्रालय ही मिला था। वह राज्य मंत्री न बनाकर सीधे केबिनेट मंत्री बनाई गयी थी। यह उनके राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी। रात होते-होते अलग-अलग चैनलों में उसका अंग्रेजी में इंटरव्यू भी चलने लगा था। इन सारे कार्यक्रमों को उनकी पेईंग गेस्ट रेखा भी उनके साथ ही बड़े ध्यान से देख रही थी। रेखा एक दलित जाति की लड़की थी और एक सरकारी आॅफ़िस में क्लर्क थी। वह शहर से पांच सौ कि.मी. दूर जंगल के बीच बसे एक छोटे से कस्बे की रहने वाली थी। आमतौर पर अपने कमरे में ही घुसे रहने वाली रेखा आज दिनभर उनके साथ ही ये सारे कार्यक्रम देखती रही। आज उसने आफ़िस से छुट्टी ली हुई थी। अचानक रेखा ने करूण से कहा-दीदी ये कमली हमारे ही कस्बे की रहने वाली है।यह सुनकर पति-पत्नी दोनें को बड़ा आश्चर्य हुआ, क्यांेकि वे कमली के बारे में जितना कुछ जानते थे, उसके हिसाब से तो वह उनकेे अपने ही शहर की थी। वे तो कमली के बारे में अपने शहर की छात्र राजनीति के दौर से पढ़-सुन रहे थे। वे उसके विश्वविद्यालय प्रतिनिधि चुने जाने से लेकर उसके महापौर बन जाने और फिर इस्तीफ़ा देकर विधायक बनने और फिर तुरंत ही इस्तीफ़ा देकर लोकसभा चुनाव लड़ने तक के सारे घटनाक्रम से वाकिफ़ थे। कमली का कम उम्र में ही बड़े-बड़े पदों पर सुशोभित होना, जहाँ एक ओर महिलाओं के लिए गर्व की बात थी, तो दूसरी ओर कुछ महिलाओं को उससे ईष्र्या भी होती थी। ख़ैर रेखा के यह बताने पर कि कमली किसी छोटे से कस्बे की रहने वाली है, उन्हे यक़ीन ही नहीं हुआ और उन्होंने रेखा की बातों को कोई तवज्जो नहीं दी। फिर अचानक रेखा ने धमाका करते हुए उन्हें बताया कि कमली पहली कक्षा से लेकर काॅलेज़ के फस्र्ट ईयर तक हमारे ही कस्बे में पढ़ी है। पूरी तरह हिन्दी मीडियम की सरकारी स्कूल और काॅलेज़ में। प्रमोद को लगा कि रेखा को कोई ग़लतफ़हमी हो गई है, क्योंकि उन्हांेने तो हमेशा कमली को एक सेलीब्रेटी की तरह ही आत्मविश्वास से पूर्ण फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हुए ही सुुना था। ऐसे में यह मानना कठिन था कि वह किसी हिन्दी मीडियम की सरकारी स्कूल में पढ़ी हुई है। उसने रेखा को समझाते हुए कहा-अरे तुम्हे कोई ग़लतफ़हमी हो रही है। हम तो इसे काॅलेज़ के जमाने से जान रहे हैं, जब ये छात्र नेता हुआ करती थी। इस पर रेखा ने कहा- नहीं, मुझे कोई ग़लतफ़हमी नही् हो रही है। वह मेरे ही कस्बे के सरकारी काॅलेज़ में मेरे ही साथ फस्र्ट ईयर तक पढी़ है। हम दोनां किसी जमाने में पक्की सहेलियाँ रह चुकी हैं। अच्छा-अच्छा ठीक है कहकर उन्हांने बात ख़त्म कर दी। उन्हं रेखा की बातों पर बिल्कुल ही यकीन नहीं हुआ। करूणा सोचने लगी कि कहाँ यह रेखा, जो कि हिन्दी भी शुध्द तरीके से नहीं बोल पाती है। क्षेत्रीय बोली मिश्रित हिन्दी बोलने वाली लड़की, और कहां फर्राटेदार अंगरेज़ी बोलने वाली कमली। थोड़ी देर के बाद रेखा अपने कमरे में सोने चली गई। अगले दिन के अख़बारों में कमली के शपथ लेने से लेकर उससे संबंधित सारी ख़बरें प्रमुखता से छपी थीं। साथ ही छपा था उसका जीवन परिचय, जिसमें स्पष्ट लिखा हुआ था कि वह पहली कक्षा से लेकर काॅलेज के फस्र्ट ईयर तक एक छोटे से कस्बे में ही पढ़ी हुई है। वह रेखा का बताया हुआ कस्बा ही था। यह पढ़ने के बाद करूणा का खुशी का ठिकाना ना रहा। आज रेखा अचानक ही वीआईपी हो गई थी। वह कमली के बारे में रेखा से और ज़्यादह जानना चाहती थी। उसने रेखा के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। अलसाई हुई सी रेखा ने दरवाज़ा खोला। करूणा ने चहकते हुए कहा- अरे तू सही कह रही थी। ये कमली तो तेरे ही कस्बे की रहने वाली तेरी पक्की सहेली ही है। हां, दीदी मैंने तो आपको कल ही बताया था, रेखा ने कहा।  सुन ना, मुझे कमली के बारे में ज़्यादह से ज़्यादह जानने की उत्सुकता हो रही है।मैं यह भी जानना चाह रही थी कि कि एक छोटे से कस्बे से उसने दिल्ली तक का सफ़र कैसे पूरा किया। आ ना बैठते हंै मुझे कमली के बारे में तुझसे पूरी जानकारी चाहिये। करूणा ने उत्साहित होकर कहा। मैं तैयार होकर आती हूँ दीदी, कहकर रेखा ने … Read more

हिंजड़ा

वह दैहिक सम्बन्धों से अनभिज्ञ एक युवक था । उसके मित्रजन उसे इन सम्बन्धों से मिलने वाली स्वार्गिक आनन्द की अनुभूति का अतिशयोक्तिपूर्ण बखान करते। उसका पुरुषसुलभ अहम् जहाँ उसे धिक्कारता, वहीं उसके संस्कार उसे इस ग़लत काम को करने से रोकते थे । इस पर हमेशा उसके अहम् और संस्कारों में युद्ध होता था । एक बार अपने अहम् से प्रेरित हो वह एक कोठे पर जा पहुँचा। वहाँ पर वह अपनी मर्दांनगी सिद्ध करने ही वाला था कि, उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया। चँूकि वह संस्कारी था, सो वह वापस आने के लिये उद्यत हो गया, इस पर उस कोठेवाली ने बुरा सा मँुह बनाया, और लगभग थूकने के भाव से बोली-साला हिजड़ा। बाहर निकलने पर उसके मित्रों ने उससे उसका अनुभव पूछा, इस पर उसने सब कुछ सच-सच बता दिया। इस पर उसके मित्रों का भी वही कथन था-साला हिजड़ा। …इतना होने पर भी वह आज संतुष्ट है, और सोचता है कि, वह हिजड़ा ही सही, है तो संस्कारी। आलोक कुमार सातपुते