तुम्हीं से है……..

सुमित्रा गुप्ता  तुम्हीं से है…….. कभी शिकवा शिकायत हैकभी मनुहार इबादत हैमेरे प्यारे, मेरे भगवन, मेरे बंधु,तुम्हीं से है, तुम्हीं से है पायी तेरी इनायत है करी तेरी इबादत है तू सामने हो या ना भी हो मुझे तेरी जरूरत है  मेरेे प्यारे, मेरे भगवन, मेरे बंधु तुम्हीं से है, तुम्हीं से है जग में बहुत ही नफरत है जग में बहुत ही गफलत है तेरे दर पे ही शराफत है तेरे दर पे ही नजाकत हैमेरे प्यारे, मेरे भगवन, मेरे बंधु तुम्हीं से है, तुम्हीं से है सखी’ने चाहा मुद्दत सेसखी’ ने चाहा शिद्दत सेछोड़ कर दुनियां के नातेलगायी प्रीत दिलबर सेनिभाते सभी रिश्तों कोप्रभु तुझसे ही मोहब्बत है मेरे प्यारे, मेरे भगवन, मेरे बंधुतुम्हीं से है, तुम्हीं से है……..

“एक दिन पिता के नाम “……… लेख -सुमित्रा गुप्ता

।।ॐ।।   “एक दिन पिता के नाम            नारी–पुरूष का अटूट बन्धन बँधा और मर्यादित बंधन में,अजस्र प्रेम धारा से वीर्य–रज कण से,जो नये सृजन के रूप में अपने ही रूप का विस्तार हुआ,वह रूप सन्तान कहलायी।अपने प्रेम के प्राकट्य रूप पर दोनों ही हर्षित हो गये और माता पिता का एक नया नाम पाया। माँ यदि संतानको संवारती है तो पिता दुलारता है।माँ यदि धरती सी सहनशील,क्षमाशील और ममता भरी  है,तो पिता आकाश जैसा विस्तारित, विशाल ह्रदय और पालक है।दोंनों ही जरूरी हैं,पर आज  हमें पिता की अहमियत दर्शानी है।तो सुनिये—-          घर की नींव,घर का मूल पिता रूप ही हैजिस तरह एक इमारत की मजबूती,  नींव पर दृढ़ता से टिकी रहती है,उसी तरह घर–परिवार कर्मठ पिता के कंधों पर टिका होता है।परिवार का मुखिया पिता ही होता है। हरेक की जरूरतें पूरी करते–करते उसका सारा जीवन यूँ ही बीत जाता है।कमानेवाला एक और खाने वाले अनेक।हांलाकि बाहर की भागम–भाग यदि पिता कर रहे होतें हैं,तो घर की व्यवस्था की  जद्दोजहद में माँ लगी रहती है।दोनों की ही भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।आपको बहुत सुन्दर प्रभु के फरिश्तों की कहानी सुनाती हूँ—          प्रभु ने जब अपने ‘अंश रूप जीव‘ को अपने से अलग करके पृथ्वी पर भेजना चाहा तो वह ‘जीव‘ बहुत दुखी हुआ और कहने लगा कि पृथ्वी पर मेरी रक्षा,भरण–पोषण,मेरे कार्यों में सहयोग,मेरी देखभाल कौन करेगा।मैं जब बहुत छोटा होऊँगा,तब कौन मेरे कार्य करेगा,तब भगवान बोले तेरीसहायता के लिये पृथ्वी पर मैं फरिश्ते भेज दूँगा। ‘अंश रूप जीव‘बोला, कार्य तो बहुत सारे होंगें,तो क्या इतने सारे कार्यों के सहयोग के लिये  इतने सारे फरिश्ते भेजेंगें एक जीव के लिये,तो बहुत सारे फरिश्ते हो जायेंगे दुनियाँ में।भगवान बोले नहीं,इतने कार्यों के सहयोग के लिये सिर्फ दो फरिश्ते हीकाफी हैं,  जो तेरे माता–पिता के रूप में हर तरह से तेरा सहयोग करेंगें।सो बच्चे के जनमते ही माता–पिता उसकी साफ–सफाई,भरण–पोषण और हर जरूरत को समझते हुये पूरे तन मन धन के साथ सहयोगी होते हैं।‘अंश रूप जीव‘बोला मैं उन फरिश्ते रूपी माँ–बाप का कर्ज कैसे चुकाऊँगा?तब प्रभुबोले तू उनकी आज्ञा मानना,कभी ऐसा कोई कार्य ना करना कि उनको दुःख पहुँचे,जब वे बूढ़े हो जायें,तब उनकी सेवा करना और जब तू भी बड़ा होकर माता–पिता का रूप लेगा,तो पूरा कर्ज तो नहीं,थोड़ा बहुत उतर जायेगा।माता–पिता का कर्ज तो संताने अपनी चमड़ी देकर भी नहीं उतार सकतीं।और विशेषकर माँ का। आज के परिवेश में हम सभी कितना कर्ज–फर्ज अदा कर पा रहे हैं,ये हम सभी बखूबी जानते हैं।पिता खुद जो नहीं बन पाता,आर्थिक कमियों के कारण, अपनी कठिन परिस्थियों के चलते,पर सन्तान के लिये जीवन की समस्त पूँजी दाँव पे लगाकर योग्य बनाने का  भरसक प्रयास करता रहताहै।”एक पिता ही ऐसा होता है,जो अपनी संतान को अपने से भी ज्यादा श्रेष्ठ बनाकर हारना चाहता है।‘‘पिता अपने कन्धे पे बैठाकर पुत्र को कितना ऊँचा उठा देता है यानि पिता के कंधे पर बैठी संतान की ऊँचाई बढ़ जाती है। ऐसाकरके पिता अत्यन्त खुश होता है।ये मेरा भी अनुभव है। कष्ट–पीड़ा होने पर हमारे मुख से अनायास उई माँ,ओ माँ आदि शब्द निकल जाते हैं,लेकिन सड़क पर सामने से आते हुये ट्रक को देखकर कह उठते हैं बाप–रे–बाप।आर्थिक रूप से पिता ही हर तरह से सहयोगी होता है।किसी ने पिता के विषय में क्या खूब कहा है——– वो पिता होता है-,वो पिता ही होता है जो अपने बच्चों को अच्छे विद्यालय में पढ़ाने के लिए दौड भाग करता है… वो पिता ही होता हैं ।। उधार लाकर Donation भरता है, जरूरत पड़ी तो किसी के भी हाथ पैर भी पड़ता है। वो पिता ही होता हैं ।। हर कॅालेज में साथ साथ घूमता है, बच्चे के रहने के लिए होस्टल ढूँढता है वो पिता ही होता हैं ।। स्वतः फटे–पुराने कपड़े पहनता है और बच्चे के लिए नयी जीन्स टी–शर्ट लाता है वो पिता ही होता है।। बच्चे की एक आवाज सुनने के लिए उसके फोन में पैसा भरता है वो पिता ही होता है ।। बच्चे के प्रेम विवाह के निर्णय पर वो नाराज़ होता है और गुस्से में कहता है सब ठीक से देख लिया है ना, वो पिता ही होता है ।। आपको कुछ समझता भी है?” बेटे की ऐसी फटकार पर, ह्रदय क्रंदन कर उठता है वो पिता ही होता हैं ।। बेटी की हर माँग को पूरी करता है ऊँच–नीच,अच्छा–बुरा समझाता है बुरी नज़रों से बचाता है वो पिता ही होता हैं ।। बेटी की विदाई पर, आँसू ,तो पुरूष होने के कारण नहीं बहा पाता, पर अंदर ही अंदर रोता बहुत है, वो पिता होता है–वो पिता ही होता हैं ।।   मेरी युवा पीढ़ी,पिता की अच्छाइयाँ अनन्त हैं।उनके प्रति अपने दायित्व को कभी ना भुलाना।वो हैं तो मजबूती है घर–परिवार में।किसी ने बहुत खूब कहा है–अभी तो जरूरतें पूरी होती हैं,ऐश तो बाप के राज में किया करते थे।ये लेख पिता के नाम समर्पित है।पिता मेरे प्यारे पिता।आपकी छत्र-छाया में, मैं महफूज रहूँ l आप हों तब भी और ना हों तब भी अप्रत्यक्ष रूप में। ll पितृ देवो भव–चरण वंदन ll सुमित्रा गुप्ता  अटूट बंधन ………हमारा पेज 

ॐ क्या परमात्मा निराकार निर्गुण हैं या साकार सगुण–

ॐ क्या परमात्मा निराकार निर्गुण हैं या साकार सगुण————– परमात्मा सिर्फ यदि ज्योति स्वरूप ही रहते,निर्गुण,निराकार ही होते ,तो इतने सृष्टि में जो रूप दृष्टिगोचर हो रहें हैं वे ना होते,हम सब रूप भी ना होते।क्योंकि हम सब भी तो परमात्मा के अंश ही तो हैं ।ऐसी कल्पना भी व्यर्थ की है।वो ज्योति को धारण करने के लिये कोई ना कोई आवरण,आकार तो बहुत जरूरी ही है।इसीलिये अपनी शक्ति अपने ऐश्वर्य के साथ परमात्मा सगुण रूप भी हैं और निर्गुण रूप भी हैं। ऐसे समझिये जब आपके अन्दर कोई विचार चल रहा है तो वह निराकार है,अप्रत्यक्ष है,और जब आप उस विचार के अनुसार कार्य करेंगें,तो कोई आकार,कोई आवरण ,कोई सहारा तो चाहियेगा ही।फिर उसका आकार के अनुसार नाम भी।तो ये ही रूप तो सगुण-साकार रूप हैं,जो समय-समय पर अपनी विविध-विविध शक्तियों के साथ आते रहें हैं धरा-धाम पर परमात्मा।                                            चित्र गूगल से साभार  पाॅवरहाउस की बिजली अथवा ऊर्जा का उपयोग तभी सम्भव होता है,जब तारों के द्वारा जगह-जगह आकार बनाकर खम्भों में डाली जाती है और फिर जगह-जगह वितरित की जाती है,।तरह-तरह के उपकरण बनाकर फिर संचारित की जाती है और घर-घर में भिन्न-भिन्न तरह के उपकरण जैसे—पंखा ,वल्व,फ्रिज,हीटर आदि अनेकों प्रकार के बिजली के यन्त्र हम सब प्रयोग में लाते हैं दिन-प्रतिदिन।अतः दोनो ही रूपों को मानना है और दोंनो ही रूप एक-दूसरे के पूरक हैं।पर जो प्रत्यक्ष में है,हम जिसको देख रहें हैं उससे तरह-तरह से व्यवहार भी कर सकते हैं,और उपयोग भी।इसलिये हमें तो सगुण रूप ही अति प्यारा हैं। सुमित्रा गुप्ता atoot bandhan हमारे फेस बुक पेज पर भी पधारे