गैंग रेप
सुबह-सुबह ही मंदिर की सीढ़ियों के पास एक लाश पड़ी थी,एक नवयुवती की। छोटा सा शहर था, भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। किसी ने बड़ी बेदर्दी से गले पर छुरी चलाई थी,शीघ्र ही पहचान भी हो गई,सकीना!!! कई मुँह से एक साथ निकला। सकीना के माँ बाप भी आ पहुंचे थे,और छाती पीट-पीट कर रो रहे थे। तभी भीड़ को चीरते हुए रोहन घुसा, बदहवास, मुँह पर हवाइयां उड़ रही थी। उसको देखते ही,कुछ मुस्लिम युवकों ने उसका कॉलर पकड़ चीखते हुए कहा, ये साला—-यही था कल रात सकीना के साथ,मैं चश्मदीद गवाह हूँ। मैंने इन दोनों को होटल में जाते हुए देखा था, और ये जबरन उसको खींचता हुआ ले जा रहा था। भीड़ में खुसफुसाहट बढ़ चुकी थी। रोहन पर कुकृत्य के आरोप लग चुके थे। रोहन जितनी बार मुँह खोल कुछ कहने का प्रयास करता व्यर्थ जाता। दबंग भीड़ उसको निरंतर अपने लात घूंसों पर ले चुकी थी। पिटते पिटते रोहन के अंग-प्रत्यंग से खून बह रहा था। तभी दूसरी ओर से हिन्दू सम्प्रदाय की भीड़ का प्रवेश, साथ मे सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां। जल्दी ही रोहन को जीप में डाल अस्पताल ले जाया गया। उसकी हालत नाजुक थी। बार बार आंखें खोलता और कुछ कहने का प्रयास करता और कुछ इशारा भी— पर शाम होते होते उसने दम तोड़ दिया। उसका एक हाथ उसके पैंट की जेब पर था। डॉ आरिफ ने जब उसका हाथ पैंट की जेब से हटाया तो उन्हें एक कागज दिखा, उस कागज़ को उन्होंने निकाला, पढ़ा। कोर्ट मैरिज के कागज़ात। पीछे से पढ़ रहे एक युवक ने उनके हाथ से कागज छीन उसके टुकड़े टुकड़े किये और हवा में उछाल दिया। देखते देखते, शहर में मार काट मच चुकी थी।जगह जगह फूंकी जाती गाड़ियां, कत्लेआम, —दो सम्प्रदाय आपस मे भीड़ चुके थे।चारों तरफ लाशों के अंबार। प्रशासन इस साम्प्रदायिक हिंसा को काबू में करने की भरसक कोशिश कर रहा था, पर बेकाबू हालात सुधरने का नाम नही ले रहे थे। अखबार, टी वी सनसनीखेज रूप देकर यज्ञ में आहुति डालने का काम कर रहे थे। ऐसे में ही बेरोजगार हिन्दू नवयुवकों की एक टोली, जिसके सीने में प्रतिशोध की अग्नि धधक रही थी,उनको सामने से आती नकाब पहने,दो युवतियां दिखीं। आंखों ही आंखों में इशारा हुआ, और एक गाड़ी स्टार्ट हुई। युवतियों के मुँह पर हाथ रख उनकी चीख को दबा दिया गया। काफी देर शहर में चक्कर काटने के बाद गाड़ी को एक सुनसान अंधेरे स्थान पर रोक दिया गया। युवतियां अभी भी छटपटा रही थीं सो उनके मुंह मे कपड़ा ठूंस हाथ बांध दिए गए। और सिलसिला एक अमानवीय अत्याचार का—- बेहोश पड़ी युवतियों को घायल अवस्था मे एक रेल की पटरी के पास फेंक गाड़ी फरार हो ली। सुबह के अखबारों में उन युवतियों के खुले चेहरे के फोटो छपे ,पहचान के लिए। फौरन थाने में रोती कलपती निकहत बी पहुंची, हाय अलका! सुमन! मेरी बच्चीयों, तुम को सुरक्षित मुस्लिम मोहल्ले से निकाल देने का हमारा ये प्रयास ये रंग लेगा, पता न था। हाय मेरी बच्चियां, खुदा जहन्नुम नसीब करे ऐसे आताताइयों को। उनका विलाप, करुण क्रंदन, बहते हुए आंसुओं को रोक पाने में समर्थ न था। और उन आताताइयों में से, 2 आतातायी ,उन युवतियों के चचेरे भाई सन्न से बैठे थे—– उनकी समझ मे नही आ रहा था ये हुआ क्या??———– रश्मि सिन्हा यह भी पढ़ें ………. तुम्हारे बिना काकी का करवाचौथ उसकी मौत यकीन आपको आपको कहानी “गैंग रेप “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें keywords:gang rape, crime, crime against women, victim