नीम का पेड़‘

दो घरों के बीच अपनी शाखाएं फैला कर खड़ा हुआ नीम का पेड़ उन के बीच विवादों की जड़ था | शाखें भी छटवाई गयीं पर वो फिर किसी शैतान बच्चे की तरह अपनी नन्ही -नहीं टाँगे बढ़ता हुआ दो घरों के बीच की एल .ओ .सी पार कर शान से मुस्कुराने लगता | इस नीम के पेड़ की वजह से ना जाने क्या -क्या सितम हुए पर आखिरी वार इतना मारक था की …जानिये आशा सिंह जी की कहानी से  नीम का पेड़  पिता जी को उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ा, लिहाजा बाबा हम लोगों को बनारस ले आये। सरकारी बंगले में रहने वाले हम बच्चों के लिए कोठी अजूबा थी।तिमंजला भवन जिसके आगे पीछे के दरवाजे दो गलियों में खुलते थे। बनारस की गलियां चमत्कारी है, कौन सी गली कहां खुलेगी, बनारस वाले ही जाने।कहते हैं कि चौसठ योगिनियां भी गलियों के जाल में फंस गई।लार्ड हेस्टिंग्स की सेना गलियों से बाहर नहीं निकल सकी। पीछे का दरवाजे से बेनियाबाग पहुंच जाते थे सामने वाला बेहद मजबूत दरवाजा था।उसे सदर दरवाजा कहा जाता था।चोरी के भय से दादी अपने सामने बंद करवाती।बीच में बड़ा आंगन, जिसमें कथा और शादी का मंडप लगता। चारों तरफ कमरे थे। प्रथम तल पर भी इसी प्रकार कमरे बने हुए थे।तीनो ओर कमरे थे,जो स्थान खाली रखा गया था,उसे धूल कहते थे। यहां पापड़ बड़ी और अचार सुखाये जाते।धूल पर नीम के पेड़ की शाखाएं आती थीं,जो दादी को नागवार गुजरती। पेड़ पड़ोसी डा.पन्ना लाल के आंगन में लगा हुआ था।अब पेड़ को अपनी हद में कहां रहना आता है।पशु पक्षी और वृक्ष प्रकृति की उन्मुक्त रचना है। मनुष्य ही जगह जगह सीमा रेखा बनाता है। पेड़ है तो पात झड़ेंगे, पंछी बीट करेंगे। सुबह सुबह दादी का प्रवचन प्रारंभ हो जाता।महरी झाड़ू लगाते हुए हां में हां मिलाती। बाबा चुपचाप पेपर पढ़ने लगते।हम बच्चों को बहुत आनंद आता।पर महाराजिन की डांट सुनकर खाना खाकर स्कूल के लिए तैयार होना पड़ता। कभी कभी दादी के गले में लाउडस्पीकर लग जाता, उधर डाक्टराईन चाची की जबाबी कारवाही शुरू हो जाती।पर सिर फुटौव्वल नहीं हुआ।हम बच्चों को एक दाई आकर स्कूल ले जाती।यह गरीब महिला थी,जिसे कुछ मेहनताना घरों से मिल जाता।हम लड़कियों पर पुलिस कप्तान की तरह रौब गांठती।मजाल है,कोई कन्या इधर उधर ताका झांकी कर ले।डा.पन्नालाल की बेटी सावित्री हमारे साथ जाती थी।मेरी अच्छी दोस्ती हो गई।यह बंधन केवल कन्याओं के लिए था। लड़के ठाठ से स्कूल जाते।शाम को मैदान में खेलने निकल जाते। सुबह के वाक्युद्ध के कारण लौटते समय मैं और सावित्री दूरी बनाए रखते। घर पहुंच कर देखा,सारी महिलाएं गलचौरा कर रही है।उनमे दादी चाची बुआ सब शामिल है।हंसी ठठ्ठा चल रहा था। दादी अक्सर पिताजी के विवाह का किस्सा सुनाया करती। इसी बहाने एक तीर से दो को घायल करतीं।डा.पन्नालाल के पिता बटुक सिंह मेरे पिता जी की बारात में शामिल हुए थे।जेवनार के समय आम का गुरम्मा(मुरब्बा)परसा गया। मुरब्बे का कालाजाम समझ कर गप से मुंह में भर लिया। बहुत गर्म था, मुंह से मय नकली बत्तीसी के बाहर आ गया।गांव की महिलाओं को बड़ा आनंद आया, गीतों में इस बात को पिरोकर गीत गाती रहीं। दादी एक तीर से दो शिकार करतीं,पन्ना चाची और मेरी मम्मी चुटियल हो जाते। दादी कमर पर हाथ रख हमारे ननिहाल वालो पर छींटाकशी करती -अरे वे लोग क्या मिठाई खिलाना जाने। मिठाई तो बस बनारस की।बात सही थी,पर चोट गलत। खुद तो बेहद गरीब परिवार से थीं। बाबा की दूसरी पत्नी थीं। पिता जी की मां की मृत्यु के बाद विधुर बाबा जी से ब्याह हुआ था। एक दिन दादी और पन्ना चाची में भयंकर वाक्युद्ध हुआ। युद्ध का केन्द्र बिन्दु वही नीम का पेड़।इस बार गंभीर समस्या थी घर में चोरी हो गई थी। इतनी सफाई से चोर सामान लेकर निकल गए,किसी को भी पता नहीं चला।वह तो सबेरे बिखरे सामान को देख कर हल्ला मचा। नीचे के दरवाजेपर मजबूत ताले लगाकर सुरक्षित समझ लिया जाता।अब चोर महोदय आकाश मार्ग से आया,इसका अनुमान नहीं था।महाराजिन ने गूढ़ रहस्य बताया कि चोर मसान की राख छिड़क देते हैं,तभी घरवाले मुर्दयी(गहरी)नींद में सो जाते हैं।वरना बाबा उनको छोड़ते।बंदूक है, पिस्तौल है।येशंकर ही लठिया देता।शंकर सेवक थे,अपने बाहुबल पर घमंड था।महाराजजिन के कारण सब पुरुषों की जान में जान आई। मैंने डरते डरते पूछा-‘वे राख कहां से लाते हैं।‘ ‘लो बच्चा।काशी में राख की कमी।लोग दूर दूर से यहां मरने आते हैं, क्योंकि यहां मरने पर स्वर्ग मिलता है। मणिकर्णिका घाट हरिश्चंद्र घाट से लाते हैं।मुझ पर ज्ञान की बौछार कर दादी के साथ अन्वेषण मे लग गई। दादी पुलिस कप्तान की तरह निरीक्षण कर रही थी, पीछे तीनों बुआ सिपाही की तरह मार्च कर रहीं थीं। आखिर दादी का प्यारा रेडियो भी अन्य चोरी हुए सामान में शामिल था। खोज के बाद निष्कर्ष निकाला कि-‘सब डाक्टरिन का किया धरा है।नीम को छांटने नहीं देती।डंगाल हमारे छत पर आती है।उसी पर चढ़ कर चोर छत पर कूदा। आराम से चोरी करके पीछे वाले दरवाजे से बेनियाबाग निकल गया।‘शरलाक होम को भी मात कर दिया।सब लोगों ने सहमति जताई। अब दादी हाथ नचा नचा घर पन्ना की दुल्हन को कोसने लगीं।अब पन्ना चाची ने भी मोर्चा संभाला। दोनों ओर से जबरदस्त मुंहा चाई होने लगी।हम बच्चों को बार बार अंदर धकेला जाता, इस आनंद को कोई छोड़ नहीं रहा था।दादी गरजी-‘हम पेड़ कटा देब।‘ प्रत्युत्तर आया-‘हाथ लगाकर तो देख‘बस वाक्युद्ध ही चला, क्योंकि दादीजी ऊपरी तल पर थीं,चाची नीचे से गला फाड़ रही थी।अब पुरुष वर्ग मैदान में उतरा समझौता कराया गया। वृक्ष की शाखाएं काटी गई।पर जड़ गहरी थी, पुनः हरिया गया।   कुछ दिनो से सावित्री उदास रहने लगी।बताया कि अम्मा की तबियत ठीक नहीं है। घर का काम भी उसी पर पड़ गया। तभी वाक्युद्ध नहीं हो रहा।मैने दादी को बताया। सारे मतभेद भुलाकर वे देखने जाने लगीं। सावित्री का स्कूल आना कम हो गया।बड़े भाई महेंद्र पिता के औषधालय में दवा कूटने लगे।कई डाक्टरों को दिखाया गया,पर लाभ नहीं हुआ।चाची ने संसार से विदा ली।दादी ने आंसू बहाये-भागों वाली थी,पति के कंधे पर चढ़ कर चली गई।‘ मैं अपनी मां से सट गई, कैसे रहेंगे मां के बिना। छोटा भाई डेढ़ बरस का था। मां ने समझाया … Read more