एक टीचर की डायरी – नव समाज को गढ़ते हाथों के परिश्रम के दस्तावेज
“वो सवालों के दिन वो जवाबों की रातें” …जी हाँ, अपना बचपन याद आते ही जो चीजें शुरुआत में ही स्मृतियों के अँधेरे में बिजली सी चमकती हैं उनमें से एक है स्कूल | एक सी स्कूल ड्रेस पहन कर, दो चोटी करके स्कूल जाना और फिर साथ में पढना –लिखना, लंच शेयर करना, रूठना-मनाना और खिलखिलाना | आधी छुट्टी या पूरी छुट्टी की घंटी | पूरे स्कूल जीवन के दौरान जो हमारे लिए सबसे ख़ास होते हैं वो होते हैं हमारे टीचर्स | वो हमें सिर्फ पढ़ाते ही नहीं हैं बल्कि गढ़ते भी है | टीचर का असर किसी बाल मन पर इतना होता है कि एक माँ के रूप में हम सब ने महसूस किया होगा कि बच्चों को पढ़ाते समय वो अक्सर अड़ जाते हैं, “ नहीं ये ऐसे ही होता है | हमारी टीचर ने बताया है | आप को कुछ नहीं आता |” अब आप लाख समझाती रहिये, “ऐसे भी हो सकता है” , पर बच्चे बात मानने को तैयार ही नहीं होते | एक समय था जब हमारी शिक्षा प्रणाली में गुरु का महत्व अंकित था | कहा जाता था कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े ……” गुरु का स्थान ईश्वर से भी पहले है | परन्तु धीरे –धीरे शिक्षा संस्थानों को भी बाजारवाद ने अपने में लपेटे में ले लिया | शिक्षा एक व्यवसाय में बदल गयी और शिक्षण एक प्रोफेशन में | गुरु शिष्य के रिश्तों में अंतर आया, और श्रद्धा में कमी | बात ये भी सही है कि जब हम किसी काम पर ऊँगली उठाते हैं तो इसमें वो लोग भी फँसते हैं जो पूरी श्रद्धा से अपना काम कर रहे होते हैं जैसे डॉक्टर, इंजीनीयर, सरकारी कर्मचारी और शिक्षक | क्या हम दावे से कह सकते हैं कि हमें आज तक कोई ऐसा डॉक्टर नहीं मिला , सरकारी कर्मचारी…आदि नहीं मिला जिसने नियम कानून से परे जा कर भी सहायता ना करी हो | अगर हम ऐसा कह रहे हैं तो झूठ बोल रहे हैं या कृतघ्न हैं | अगर टीचर्स के बारे में आप सोचे तो पायेंगे कि ना जाने कितनी टीचर्स आज भी आपके जेहन दर्पण में अपनी स्नेहमयी, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार छवि के रूप में प्रतिबिंबित हो रही होंगी | कितनी टीचर्स के कहे हुए वाक्य आपके जीवन सागर में लडखडाती नाव के लिए पतवार बने होंगे , तो कितने अँधेरे के दीपक | कितनी बार कोई टीचर अचनाक्ज से मिल गया होगा तो सर श्रद्धा सेझुक गया होगा | अगर हम टीचर्स की बात करें तो इससे बेहतर कोई प्रोफेशन नहीं हो सकता क्योंकि शिक्षा के २० -२२ वर्ष पूरे करते समय हर विद्यार्थी का नाता स्कूल, कॉलेज से रहता है | समय पर जाना –आना, नियम, अनुशासन यानि एक ख़ास दिनचर्या की आदत पड़ जाती है | टीचर्स को नौकरी लगते ही अपने वातावरण में कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता और ना ही नए माहौल से तारतम्य बनाने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है | सबसे खास बात जहाँ और प्रोफेशंस में बदमिजाज, बददिमाग, प्रतिस्पर्द्धी लोगों से जूझना होता है वहीँ यहाँ मासूम नवांकुरों से जिनके भोले मन ईश्वर के बैलेंसिंग एक्ट के तहत सारी दुनिया की नकारात्मकता को साध रहे होते हैं | ये तो हुई हमारी आपकी बात …एक टीचर क्या सोचता/सोचती है …जिस पर जिम्मेदारी है कच्ची मिटटी में ऐसे बीज रोपने की जो कल छायादार वृक्ष बने | उसका काम केवल बीज रोप देना ही नहीं, उसे ये सुनिश्चित भी करना है कि हर दिन उन्हें धूप , हवा, पानी सब मिले | एक शिक्षक वो कृषक है जिसके रोप बीज २० -२२ साल बाद पल्लवित, पुष्पित होते हैं | जरूरी है अथक परिश्रम, असीम धैर्य, जरूरी है मन में उपजने वाली खर-पतवार को निकालना, बाहरी दुष्प्रभावों से रक्षा करना | क्या ये केवल सम्बंधित पीरियड की घंटी बजने से दोबारा घंटी बजने तक का साथ है | नहीं …ये एक अनवरत साधना है | इस साधना को साधने वाले साधक टीचर्स के बारे में हमें पता चलता है “एक टीचर की डायरी से” प्रभात प्रकशन से प्रकाशित इस किताब में भावना जी ने अपने शिक्षक रूप में आने वाली चुनौतियों, संघर्षों, स्नेह और सम्मान सबको अंकित किया है | पन्ना –पन्ना आगे बढ़ते हुए पाठक एक नए संसार में प्रवेश करता है जहाँ कोई शिष्य नहीं बल्कि पाठक, शिक्षक की ऊँगली थाम कर कौतुहल से देखता है लगन, त्याग और कर्तव्य निष्ठा के प्रसंगों को | भावना जी को मैं एक मित्र, एक सशक्त लेखिका के रूप में जानती रही हूँ पर इस किताब को पढने के बाद उनके कर्तव्यनिष्ठ व् स्नेहमयी शिक्षक व् ईमानदार नागरिक, एक अच्छी इंसान होने के बारे में जानकार अतीव हर्ष हुआ है | कई पृष्ठों पर मैं मौन हो कर सोचती रह गयी कि उन्होंने कितने अच्छे तरीके से इस समस्या का सामाधान किया है | इस किताब ने मुझे कई जगह झकझोर दिया जहाँ माता –पिता साफ़ –साफ़ दोषी नज़र आये | जैसे की “रिजल्ट” में | बच्ची गणित में पास नहीं हुई है पर माता पिता को चिंता इस बात की है कि उन दो लाख रुपयों का क्या होगा जो उन्होंने फिटजी की कोचिंग में जमा करवाए हैं … “पर मिस्टर वर्मा ! सोनम शुरू से मैथ्स में कमजोर है, आपने सोचा कैसे कि वो आई आई टी में जायेगी ?” “ नहीं मिस वो जानती है कि उसे आई आई टी क्लीयर करना है | मैं उसे डराने के लिए धमकी दे चूका हूँ कि अगर दसवीं में ९० प्रतिशत से कम नंबर आये …तो मैं सुसाइड कर लूँगा …फिर भी ..|” हम इस विषय पर कई बार बात कर चुके हैं कि माता –पिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल रहे हैं | पर शिक्षकों को रोज ऐसे माता –पिता से दो-चार होना पड़ता होगा | उनकी काउंसिलिंग भी नहीं की जा सकती | सारे शिष्टाचार बरतते हुए उन्हें सामझाना किता दुष्कर है | “अंगूठी” एक ऐसी बच्ची का किस्सा है जो शरारती है | टीचर उसे सुधारना चाहती है पर उसकी उदंडता बढती जा रही है | और एक दिन वह अपनी सहपाठिन से ऐसा कठोर शब्द ख … Read more