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आए दिन नारी संवेदना के स्वर गूंजते रहते हैं …..द्रवित करते रहते हैं हॄदय को ….छलक ही आते हैं आँखों से अश्रुधार ….परन्तु प्रश्न यह उठता है कि आखिर दोषी कौन है …..पुरुष या स्वयं नारी ?
कहाँ होता है महिलाओं की शोषण घर या बाहर ?
किससे करें फरियाद ……किससे माँगे अपना हक …… …. पिता से जिसे पुत्री के जन्म के साथ ही …उसकी सुरक्षा और विवाह की चिन्ता सताने लगी थी . या भाई से जिसने खेल खेल में भी अपनी बहन की सुरक्षा का ध्यान रखा….. तभी तो वो ससुराल में सबकुछ सह लेती हैं हँसते हुए कि उनके पिता और भाई के सम्मान में कोई आँच नहीं आए ! वो तो नैहर से विदा होते ही समय चावल से भरा अंजुरी पीछे बिखेरती हुई चल देती हैं कुछ यादों को अपने दिल में समेटे ससुराल को सजाने संवारने ……रोती हैं फिर सम्हल जाती हैं क्यों कि बचपन से ही सुनती जो आई हैं कि बेटियाँ दूसरे घर की अमानत हैं !
छोड़ आती हैं वो अपने घर का आँगन …लीप देती हैं अपने सेवा और प्रेम से पिया का आँगन….. रहता है उन्हें अपने कर्तव्यों का भान ….दहेज के साथ संस्कार जो साथ लेकर आती हैं ……किन्तु क्या उनकी खुशियों का खयाल इमानदारी से रखा जाता है ससुराल में……. उनकी भावनाओं का कद्र किया जाता है ? यह प्रश्न विचारणीय है !
बहुत से लोग इसका उत्तर देंगे कि मैं तो अपनी बेटी से भी अधिक बहू को मानता हूँ या मानती हूँ……आदि आदि….. कुछ लोग हैं भी ऐसे परन्तु गीने चुनें ही …अधिकांशतः वो लोग जिनके बेटे बहू बाहर नौकरी करते हैं !
शायद इसीलिए आजकल नौकरी वाले दूल्हे का मांग ज्यादा है जहां महिलाओं को…नहीं रहना पड़ता ससुराल कैदख़ाने में ……सुरक्षित रहतीं है उनकी आजादी…..
मायके और ससुराल के चक्की के मध्य ?
कौन सा है उसका घर मायका या ससुराल ?
और यदि ससुराल तो क्यों ताने दिये जाते हैं मायके को ?
कबतक होती रहेगी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार
? क्यों नहीं सुनाई देता है सास बनते ही नारी को नारी की संवेदना के स्वर ?
जागो नारी जागो ….सोंचो , समझो और सुनों नारी की संवेदना के स्वर !
जब तक तुम नारी नारी की शत्रु बनी रहेगी तबतक होती रहेगी बेवस महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार !
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