सबसे पीड़ादायक वो ” गुड बाय ” होते हैं जो कभी कहे नहीं जाते और न ही कभी उनकी व्याख्या की जाती है | -अज्ञात
सुख – दुःख जीवन के अभिन्न अंग हैं | परन्तु कुछ दुःख ऐसे होते हैं , जो कभी खत्म नहीं होते | ये दुःख दिल में एक घाव कर के रख देते हैं | हमें इस कभी न भरने वाले घाव के साथ जीना सीखना होता है | ये दुःख होता है अपने किसी प्रियजन को हमेशा के लिए खो देने का दुःख | जब संसार बिलकुल खाली लगने लगता है | व्यक्ति जीवन के दांव में अपना सब कुछ खो चुके एक लुटे पिटे जुआरी की तरह समाज की तरफ सहारा देने की लिए कातर दृष्टि से देखता है | परन्तु समाज का व्यवहार इस समय बिलकुल अजीब सा हो जाता है | शायद हम सांत्वना के लिए सही शब्द खोज नहीं पाते हैं और दुखी व्यक्ति का सामना करने से घबराते हैं या हम उसे जल्दी से जल्दी बाहर निकालने के लिए ढेर सारे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं | जो उस अवस्था में किसी धार्मिक ग्रन्थ के तोता रटंत से अधिक कुछ भी प्रतीत नहीं होता |
ऐसा ही अनुभव मुझे अपने
पिता की मृत्यु पर हुआ था | जब दिल्ली में हम इस घर में नए – नए शिफ्ट हुए | जल्द ही आस – पड़ोस से दोस्ती हो गयी थी | हम कुछ सामाजिक कार्यक्रमों में भी व्यस्त थे | तभी पिता जी के न रहने का दुखद समाचार मिला | अपने हर छोटे बड़े निर्णय जिस पिता का मुँह देखते थे उन का साया सर से उठ जाना ऐसा लगा जैसे दुनिया बिलकुल खाली हो गयी हैं | वो स्नेह का कोष जिससे जीवन सींचते थे | अचानक से रिक्त हो गया , अब जीवन वृक्ष कैसे आगे बढेगा | अपने अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा | परन्तु इस समय में जब मुझे अपनों की बहुत ज्यादा आवश्यकता थी | अपनों का समाज का व्यवहार बड़ा ही विचित्र लगा |
टर्मीनली इल – कुछ लम्हें जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ
पिता की मृत्यु पर हुआ था | जब दिल्ली में हम इस घर में नए – नए शिफ्ट हुए | जल्द ही आस – पड़ोस से दोस्ती हो गयी थी | हम कुछ सामाजिक कार्यक्रमों में भी व्यस्त थे | तभी पिता जी के न रहने का दुखद समाचार मिला | अपने हर छोटे बड़े निर्णय जिस पिता का मुँह देखते थे उन का साया सर से उठ जाना ऐसा लगा जैसे दुनिया बिलकुल खाली हो गयी हैं | वो स्नेह का कोष जिससे जीवन सींचते थे | अचानक से रिक्त हो गया , अब जीवन वृक्ष कैसे आगे बढेगा | अपने अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा | परन्तु इस समय में जब मुझे अपनों की बहुत ज्यादा आवश्यकता थी | अपनों का समाज का व्यवहार बड़ा ही विचित्र लगा |
टर्मीनली इल – कुछ लम्हें जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ
जहाँ मेरे निकट जन , सम्बन्धी मुझे जल्दी से जल्दी बाहर निकालने का प्रयास करने में एक हद तक मुझ पर दवाब डाल रहे थे | उनके द्वारा कही गयी ये सब बातें …अब वो बातें मत सोंचों , पार्क जाओ , घूमों फिरो , बच्चों के लिए कुछ अच्छा बनाओं , कुछ नया सामान लाओ, मुझे बेमानी लग रही थी | क्या वो मेरा दुःख नहीं समझ पा रहे है | उनकी एक्सपेक्टेशन्स इतनी बचकानी क्यों है ? मेरे हाथ में कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है की मैं पुरानी यादों को एकदम से डिलीट करके , जिंदगी को “फ़ास्ट फारवर्ड “ कर सकूँ | वही दिल्ली वापस आने पर अचानक से मेरे पड़ोसियों का व्यवहार बड़ा विचित्र हो गया | वो जैसे मुझे कन्नी काटने लगे | कभी सड़क पर अचानक से मिल जाने पर “ वेलकम स्माइल “ भी नहीं मिलती | जैसे मैं हूँ ही नहीं | पिता को खोने के गम के साथ – साथ मैं अजीब सी रिक्तता से घिरती जा रही थी | स्नेह की रिक्तता , अपने पन की रिक्तता |
जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया
जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया
हालंकि बाद में मुझे अहसास हुआ की दोनों में से कोई गलत नहीं थे | जहाँ एक और मेरे अपने येन केन प्रकारेंण मुझे सामान्य जिंदगी में देखना चाहते थे | ताकि उनकी भी जिन्दगी सामान्य हो सके | वो मेरे शुभचिंतक थे | वो मुझे इस हालत में छोड़ना नहीं कहते थे | परन्तु उनकी सामन्य जिन्दगी मेरी असमान्य जिन्दगी में अटक गयी थी | मेरे सामान्य होने पर वो अपनी सामान्य जिंदगी आसानी से जी सकते थे | शायद इसी लिए मुझे जल्दी से जल्दी सामान्य करने के लिए वो मुझ पर शब्दों की बमबारमेंट कर रहे थे | और उनके जाने के बाद मैं चीखने जैसी स्तिथि में सर पकड कर सोंचती ,” अब मत आना मुझे समझाने , ये सारा ज्ञान मेरे पास है , फिर भी मैं नहीं निकल पा रही हूँ | वहीं दूसरी ओर जैसा की एक पड़ोसन ने बताया की हमारी दोस्ती नयी थी | और उस समय मेरा चेहरा इतना दुखी दिखता था की वो ये समझते हुए भी की मैं बहुत दुखी हूँ कुछ कह नहीं पाती | सही शब्दों की तालाश में वो अपना मुँह इधर – उधर कर लेती | और मैं बेगाना सा महसूस करती रहती |
यह सही कहने का नहीं , सही करने का वक्त है
एक तरफ शब्दों की अधिकता , दूसरी तरफ शब्दों की कमी … क्या हम सब इसी के शिकार नहीं हैं ? क्या हम सब किसी दुखी व्यक्ति को सांत्वना देना कहते हुए भी दे नहीं पाते हैं | किसी को हमेशा के लिए खो देने के अलावा भी कई ऐसी परिस्तिथियाँ होती हैं | जहाँ हमें समझ नहीं आता है की हम क्या कहें | जैसे किसी का डाइवोर्स हो जाने पर , किसी की नौकरी छूट जाने पर या किसी को ठीक न होने वाले कैंसर की खबर सुन कर | अक्सर ऐसी परिस्तिथियों में हम सही शब्द नहीं खोज पाते | तब या तो जरूरत से ज्यादा बोलते हैं या जरूरत से कम | वास्तव में किसी को सांत्वना देने के लिए हमें कुछ बातों का विशेष ख़याल रखना चाहिए |
सब से पहले खुद को संभालें –
जब भी आप को अपने किसी प्रियजन या जान – पहचान वाले के जीवन में हुए किसी हादसे या दुखद घटना का पता चलता है तो जाहिर है आप को भी बहुत दुःख लगेगा | ऐसे में जब आप उससे मिलने जायेंगे तो आप उसका कितना भी भला चाहते हों आप भी तनाव में आ जायेंगे | आप के दिल की धडकन भी बढ़ जायेगी , रक्त चाप बढ़ जाएगा और एक तरह का स्ट्रेस महसूस होगा | ऐसे में आप कभी भी सही शब्द नहीं खोज पायेंगे |याद रखिये आप उसे संभालने जा रहे हैं न की उसका तनाव बढाने | इसलिए पहले खुद को संभालिये | जब आप खुद को संभालेंगे | तनाव मुक्त होंगे , तभी आप सही शब्द खोज पायेंगे और दूसरे को संभाल पायेंगे |
शब्दों की बमबारमेंट से बचिए
ये सच है की आप अपने प्रियजन को इस परिस्तिथि में देख कर असहज महसूस कर रहे हैं व् उन्हे इस से जल्दी – से जल्दी निकालना चाहते हैं | पर ये मान कर चलिए की ये घाव भरने में समय लगेगा | आप को प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी | आप चाहे जितनी भी बातें समझाए वो सिर्फ किताबी लगेंगी | आपके शब्द आप के प्रियजन का भला नहीं करते | वो सिर्फ आप की जल्दबाजी या समनुभूति का आभाव दिखाते है | और आप के जाने के बाद उसे और अकेला कर देते हैं | बेहतर है की आप शब्दों की बमबारमेंट से बचे व् उसे समय दें |
स्वीकार करिए की , “ मुझे समझ नहीं आ रहा है क्या कहना है “
रास्ते में मिल जाने पर किसी प्रियजन से कन्नी काटने या यह कहने की ,” ईश्वर की यही इच्छा थी , वक्त पर किसका जोर है, हर चीज के पीछे कोई न कोई कारण होता है | मुझे पता है तुम कैसा महसूस कर रहे हो ( क्योंकि आप नहीं जान सकते की कोई कैसा महसूस कर रहा है ) के स्थान पर आप स्वीकार करिए की आप को समझ नहीं आ रहा है की आप को क्या कहना है | चुप रह जाने के स्थान पर आप कह सकते हैं की आप को सांत्वना देने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं |
सिर्फ सुनिए
किसी को सांत्वना देने का सबसे अच्छा उपाय है की आप सिर्फ उसे सुनिए | उसका दिल में भरा सारा गुबार पूरी तरह से निकल जाने दीजिये | उसे बीच में टोंकिये नहीं | बात काट कर ये मत कहिये की मैं समझ सकता हूँ क्योंकि मेरे चाची के समधी के बेटे के साथ भी यहीं हुआ था या मैं भी पिछले साल बहुत डिस्टर्ब था क्योंकि मेरा भी पालतू जानवर मर गया था | आप सिर्फ सुनिए | एक एक घटना को पूरी आत्मीयता व् समानुभूति के साथ सुनिए | हां ! घर आकर उसकी कही बातों का मखौल न उडाये |कुछ लोग दुःख में रोते हैं , कुछ नाराज़ होते हैं कुछ किसी और विषय में बात करना पसंद करते हैं | ये हर किसी का अपने दुःख से निकलने का अलग – अलग तरीका है | इसका कोई मानक नहीं है | और न आप ऐसा मानक बनाने की कोशिश करें | वो अपनी उस मानसिक अवस्था में क्या – क्या बोल गया है उसे आपसी चर्चा का विषय न बनाए |
कहिये नहीं , करिए
जहाँ भाव बोलते हैं वहां शब्द बेमानी हैं | शब्द माँ सरस्वती का दिया हुआ वरदान जरूर हैं पर शब्दों की एक सीमा है | भाव शब्दातीत हैं | आप अपने जिस परिजन की मदद करना चाहते हैं | आप उनके लिए रसोई में जा कर कुछ पका सकते हैं | उनके बिल पे कर सकते हैं या उनके बच्चों की देखभाल कर सकते हैं | ऐसी मानसिक दशा में वो अपने काम ठीक से नहीं कर पा रहे होंगे और आप की ये मदद उन्हें बहुत राहत देगी | और अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो कम से कम उनके साथ बैठिये , बिना कुछ बोले उनके सर या हाथ पर हाथ फेरिये उन्हें अहसास दिलाइये , “ जब भी आप को जरूरत होगी मैं बस एक फोन कॉल की दूरी पर हूँ | ये भरोसा आप के शब्दों से ज्यादा हीलिंग है |
या परदे उखड फेंकिये या रिश्ते
या परदे उखड फेंकिये या रिश्ते
ये सच है की आप जो हो गया है उसे बदल नहीं सकते हैं | पर आप किसी को सच्ची संवेदनाएं दे कर उसको दुःख से निकलने में मदद जरूर कर सकते हैं |
वंदना बाजपेयी
वंदना बाजपेयी
अगला कदम के लिए आप अपनी या अपनों की रचनाए समस्याएं editor.atootbandhan@gmail.com या vandanabajpai5@gmail.com पर भेजें
#अगला_कदम के बारे में
हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “
वंदना जी, जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि हम किसी व्यक्ति से संवेदना प्रगट करना चाहते है लेकिन कर नही पाते। यदि ऐसे समय मे यही बात स्वीकार करना ज्यादा आसान रहता है। सुंदर प्रस्तुति।
dhanyvad jyoti ji