प्रभु राम की पत्नी माता सीता को भक्त श्रद्धा के पूजते हैं | माता सीता एक आदर्श पुत्री , पत्नी , माँ व् नारी थीं | अभी तक माता सीता के बारे में ज्यादातर जो भी लिखा गया उसमें एक आदर्श पत्नी का रूप ही हावी रहा | जिस कारण उनके तमाम गुण सामने नहीं आ पाए |
माता सीता एक कुशल यौध भी थीं | परन्तु माता सीता का योद्धा रूप कभी सामने नहीं आया | जरा सोचिये जिस शिवजी के धनुष को रावण हिला भी नहीं पाया उसे सीता माँ यूँहीं खेल खेल में उठा लेती है | इतनी शक्तिशाली सीता इतनी लाचार नहीं थी की रावण उनका आसानी से अपहरण कर लेता |
जरूर इस सुनियोजित योजना ( कूटनीति ) में श्री राम आश्वस्त थे की विपरीत परिस्तिथियों में वह स्वयं रावण का वध करने में सक्षम हैं | माता सीता ने स्वयं ही लव – कुश को शस्त्र चलाने की शिक्षा दी | और इतना पारंगत कर दिया की वो श्री राम की सेना को अकेले ही परास्त कर सके | कानपुर में बिठुर में बने वाल्मीकि आश्रम में इस बात के साक्ष्य हैं |
त्याग और प्रेम की देवी सीता जो अपने पति के कहने पर अग्नि परीक्षा देना भी स्वीकार करती हैं वहीँ वो इतनी स्वाभिमानी भी हैं की पूरी प्रजा के सामने रोने गिडगिड़ाने के स्थान पर अपने प्राण त्याग देने का निर्णय लेती है | वास्तव में सीता माता के चरित्र में इतनी योग्यताएं हैं की प्रभु राम के आगे उनका नाम लिखने मात्र चलन नहीं उन गुणों का आदर है |
बरसों पहले मैथिलीशरण गुप्त जी ने इतिहास के दो उपेक्षित किरदारों – उर्मिला व् यशोधरा के साथ न्याय किया था | उम्मीद है की माता सीता के भी तमाम गुणों के साथ कभी न्याय होगा और ” सिया राम ” ( राम के आगे सीता ) अपनी सार्थकता के साथ सिद्ध होगा |
वंदना बाजपेयी