सेंट्रल पाॅल्यूशन कंट्रोल बोर्ड आॅफ इंडिया के
फरवरी 2015 के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिदिन 1.4 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है। इस कचरे में बहुत सा
हिस्सा बोतलों, गत्ते, डिब्बे, प्लास्टिक का सामान, विभिन्न उद्योगों से निकले कबाड़ का भी होता है। शहरों में इन सबके ढेर के ढेर
लगे देखना कोई नई बात नहीं है। यह जानते हुए भी कि इस तरह हर दिन इकट्ठा होता कचरा
एक दिन हमारे घर के सामने तक पहुंच जाएगा, हम इसमें बढ़ोतरी करते जाते हैं। पर, बनारस की शिखा शाह की परवरिश
और शिक्षा कुछ ऐसी हुई कि उन्हें इस बढ़ती समस्या से अनजान बने रहना मंजूर ना हुआ
और उन्होंने एक सार्थक पहल की।
फरवरी 2015 के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिदिन 1.4 लाख टन कचरा उत्पन्न होता है। इस कचरे में बहुत सा
हिस्सा बोतलों, गत्ते, डिब्बे, प्लास्टिक का सामान, विभिन्न उद्योगों से निकले कबाड़ का भी होता है। शहरों में इन सबके ढेर के ढेर
लगे देखना कोई नई बात नहीं है। यह जानते हुए भी कि इस तरह हर दिन इकट्ठा होता कचरा
एक दिन हमारे घर के सामने तक पहुंच जाएगा, हम इसमें बढ़ोतरी करते जाते हैं। पर, बनारस की शिखा शाह की परवरिश
और शिक्षा कुछ ऐसी हुई कि उन्हें इस बढ़ती समस्या से अनजान बने रहना मंजूर ना हुआ
और उन्होंने एक सार्थक पहल की।
स्क्रैपशाला की शुरूआत
इस तरह शुरू हुआ उनका छोटा सा स्टार्टअप, जिसका नाम रखा गया
स्क्रैपशाला। शिखा की राय में लगातार बढ़ते कबाड़ से निजात तभी मिलेगी जब हम उसे कम
करने की सोचें। कचरे का दोबारा उपयोग करने के तरीके खोजने होंगे उसे रिसाइकल करना
होगा। इसके लिए वह अपने स्टार्टअप के जरिए कोशिश में लगी हैं। उनकी यह अनोखी सोच
कई लोगों के लिए प्रेरणा बनी है।
स्क्रैपशाला। शिखा की राय में लगातार बढ़ते कबाड़ से निजात तभी मिलेगी जब हम उसे कम
करने की सोचें। कचरे का दोबारा उपयोग करने के तरीके खोजने होंगे उसे रिसाइकल करना
होगा। इसके लिए वह अपने स्टार्टअप के जरिए कोशिश में लगी हैं। उनकी यह अनोखी सोच
कई लोगों के लिए प्रेरणा बनी है।
छोड़ दी कमाऊ नौकरी
पर्यावरण विज्ञान से मास्टर्स करने के बाद शिखा को
अपने प्रोजेक्ट्स और नौकरियों की वजह से गांवों की समस्याओं के बारे में करीब से
जानने का मौका मिला। आईआईटी, मद्रास में अपनी नौकरी के दौरान वह कई छोटे-बड़े उद्यमियों
से मिलीं और स्टार्टअप की चुनौतियों को समझने का मौका मिला। वहां से कुछ अपना और
सार्थक करने का विचार आया। वह नौकरी छोड़कर अपने शहर बनारस आ गई और स्क्रैपशाला
शुरू करने की योजना बनाई। शिखा बताती हैं कि बचपन से ही उन्होंने अपनी मां को
चीजों को रिसाइकल करते देखा था। वह कबाड़ कम से कम निकालने पर जोर देती थीं और कई
बार घर के पुराने हो रहे सामान को सजा-धजाकर नया कर देतीं। यह सब शिखा के लिए उनकी
स्टार्टअप की प्रेरणा बने और स्क्रैपशाला में अपसाइकलिंग का काम शुरू हुआ।
अपने प्रोजेक्ट्स और नौकरियों की वजह से गांवों की समस्याओं के बारे में करीब से
जानने का मौका मिला। आईआईटी, मद्रास में अपनी नौकरी के दौरान वह कई छोटे-बड़े उद्यमियों
से मिलीं और स्टार्टअप की चुनौतियों को समझने का मौका मिला। वहां से कुछ अपना और
सार्थक करने का विचार आया। वह नौकरी छोड़कर अपने शहर बनारस आ गई और स्क्रैपशाला
शुरू करने की योजना बनाई। शिखा बताती हैं कि बचपन से ही उन्होंने अपनी मां को
चीजों को रिसाइकल करते देखा था। वह कबाड़ कम से कम निकालने पर जोर देती थीं और कई
बार घर के पुराने हो रहे सामान को सजा-धजाकर नया कर देतीं। यह सब शिखा के लिए उनकी
स्टार्टअप की प्रेरणा बने और स्क्रैपशाला में अपसाइकलिंग का काम शुरू हुआ।
कम नहीं थी चुनौतियां
शिखा बताती हैं, ‘स्क्रैपशाला के काॅन्सेप्ट को लेकर घर में किसी ने
तुरंत हां नहीं की थी। शुरूआत में थोड़ी असहमति थी। लेकिन मां मेरे साथ आई और मेरी
सहेली भी और एक बार शुरूआत होने पर सभी का सपोर्ट मिला। पुराने सामान और कचरे को
नए रूप में लाना भी आसान काम नहीं होता। उसे साफ करना, डिजाइन करना भी एक चुनौती
होती है। कचरे को लेकर वैसे भी लोगों में एक पूर्वधारणा होती है। तैयार सामान को
लेकर लोगों में पहले डाउट था। फिर जब प्रोडक्ट्स पसंद किए गए, तो अब सबका सहयोग मिल रहा
है।’
तुरंत हां नहीं की थी। शुरूआत में थोड़ी असहमति थी। लेकिन मां मेरे साथ आई और मेरी
सहेली भी और एक बार शुरूआत होने पर सभी का सपोर्ट मिला। पुराने सामान और कचरे को
नए रूप में लाना भी आसान काम नहीं होता। उसे साफ करना, डिजाइन करना भी एक चुनौती
होती है। कचरे को लेकर वैसे भी लोगों में एक पूर्वधारणा होती है। तैयार सामान को
लेकर लोगों में पहले डाउट था। फिर जब प्रोडक्ट्स पसंद किए गए, तो अब सबका सहयोग मिल रहा
है।’
चुनौतियां और भी थीं, जैसे जगह, कारीगर और मैटीरियल। मां मधु शाह और सहेली कृति
सिंह के साथ शिखा ने अपने घर से शुरूआत की। आज उनके पास पूरी टीम है। अपसाइकलिंग
यानी पुरानी चीजों को नया रूप देने के लिए चीजें शुरूआत में उनके घर से ही मिलीं।
शिखा बताती हैं कि अब पड़ोसियों, दोस्तों और परिचितों… सबको ध्यान रहता है। शिखा कहती हैं,
‘अब तो लोग कूरियर से
भी मुझे चीजें भेज देते हैं। दोस्त कोई बेकार सामान फेंकने से पहले पूछ लेते हैं।’
सिंह के साथ शिखा ने अपने घर से शुरूआत की। आज उनके पास पूरी टीम है। अपसाइकलिंग
यानी पुरानी चीजों को नया रूप देने के लिए चीजें शुरूआत में उनके घर से ही मिलीं।
शिखा बताती हैं कि अब पड़ोसियों, दोस्तों और परिचितों… सबको ध्यान रहता है। शिखा कहती हैं,
‘अब तो लोग कूरियर से
भी मुझे चीजें भेज देते हैं। दोस्त कोई बेकार सामान फेंकने से पहले पूछ लेते हैं।’
कई लोगों के लिए गढ़ा रोजगार
शिखा की टीम में आज कई लोग हैं। हालांकि वे खुद भी
डिजाइन करती हैं, लेकिन उनकी टीम के कारीगर भी अपने तरीके से इसमें योगदान देते हैं। वे बताती
हैं, ‘अब हमारी बड़ी टीम है। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के भी लोग हैं। उन्हंे
यहां एक नियमित आय मिल रही है और सबको अपने ढंग से क्रिएटिव वर्क की पूरी छूट है।’
डिजाइन करती हैं, लेकिन उनकी टीम के कारीगर भी अपने तरीके से इसमें योगदान देते हैं। वे बताती
हैं, ‘अब हमारी बड़ी टीम है। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के भी लोग हैं। उन्हंे
यहां एक नियमित आय मिल रही है और सबको अपने ढंग से क्रिएटिव वर्क की पूरी छूट है।’
क्या हैं उत्पाद
आज शिखा की स्क्रैपशाला बनारस ही नहीं, पूरे देश में एक जाना-पहचाना
नाम है। यहां पुराने टायर से खूबसूरत फर्नीचर, चाॅकलेट-बिस्किूट के रैपर से बने खूबसूरत बैग्स,
शीशे की बोतलों से
लैंपशेड्स, प्लास्टिक की बोतलों से गमले, पुरानी केतली का सजावटी रूप और पुराने गत्ते से वाॅल
डेकोरेशन के आइटम्स जैसी कई चीजें बनाई जा रही हैं। उनके प्रोडक्ट्स आॅफलाइन और
आॅनलाइन उपलब्ध हैं। इसे और आगे ले जाने की योजना है।
नाम है। यहां पुराने टायर से खूबसूरत फर्नीचर, चाॅकलेट-बिस्किूट के रैपर से बने खूबसूरत बैग्स,
शीशे की बोतलों से
लैंपशेड्स, प्लास्टिक की बोतलों से गमले, पुरानी केतली का सजावटी रूप और पुराने गत्ते से वाॅल
डेकोरेशन के आइटम्स जैसी कई चीजें बनाई जा रही हैं। उनके प्रोडक्ट्स आॅफलाइन और
आॅनलाइन उपलब्ध हैं। इसे और आगे ले जाने की योजना है।
घर में करें यूं कबाड़ कम
शिखा बताती हैं कि उनके घर में कचरा ना के बराबर
निकलता है। इसके लिए वे कुछ टिप्स देती हैं-
निकलता है। इसके लिए वे कुछ टिप्स देती हैं-
1. प्लास्टिक की बोतलों में
पानी भरने पर अगर गर्मी हो, तो उसमें हानिकारक तत्व बनते हैं। इसलिए, घर में साॅस, शर्बत बगैरह की शीशे की बोतलें खाली हों तो उन्हें
साफ करके पानी भरकर फ्रिज में रखें।
पानी भरने पर अगर गर्मी हो, तो उसमें हानिकारक तत्व बनते हैं। इसलिए, घर में साॅस, शर्बत बगैरह की शीशे की बोतलें खाली हों तो उन्हें
साफ करके पानी भरकर फ्रिज में रखें।
2. घर में टूथब्रश प्लास्टिक के
ना लेकर आप लकड़ी के लें। ये मार्केट में उपलब्ध हैं। इससे आपको उन्हें रिसाइकल
करने में आसानी होगी।
ना लेकर आप लकड़ी के लें। ये मार्केट में उपलब्ध हैं। इससे आपको उन्हें रिसाइकल
करने में आसानी होगी।
3. साबुन, शैंपू वगैरह के रीफिल पैक
लेंगी, तो बोतलों का कचरा कम निकलेगा।
लेंगी, तो बोतलों का कचरा कम निकलेगा।
4. गीले कचरे को कंपोस्ट (खाद)
बना दें।
बना दें।
5. कबाड़ को संस्थाओं को दान कर
दें। उसे रिसाइकल कैसे करें, इसकी वर्कशाॅप में जाएं।
दें। उसे रिसाइकल कैसे करें, इसकी वर्कशाॅप में जाएं।
प्रस्तुति: प्रतिभा पाण्डेय
साभार: हिन्दुस्तान
संकलन – प्रदीप कुमार सिंह