चलो मेरी गुइंयाँ – रिश्ता सहेलियों का

चलो मेरी गुइंयाँ -  रिश्ता सहेलियों का



चलो मेरी गुइंया 
चलो लाल फीता बांध 
और सफेद घेर वाली फ्रॉक पहन कर 
फिर से चलें 
उसी मेले में 
जहाँ जाते थे बचपन में 
जहाँ खाते थे कंपट की खट्टी – मीठी गोलियां 
जहाँ उतरती थी परियाँ 
धरती पर 
और हम सपनों के झूलों में बैठ 
करते थे आसमान से बातें 
सुनो , 
चुपके से आना 
मत बताना किसी से 
डांटेंगी अम्माँ , बाबूजी 
फिर भी वो 
कंपट , वो परियां , वो सपनों के झूले 
संभव हैं 
आज भी 
गर तुम साथ हो तो …


चलो मेरी गुइंयाँ-खास शब्द की मिठास 

गुइंया बहुत ही प्यारा शब्द है | यह उस रिश्ते की मिठास को बताता है जो बचपन की दो सहेलियों का होता है | अब जरा समय को पीछे लेजाते हुए याद करिए अपने
बचपन के कुछ खूबसूरत पल | वो कागज़ की नाव को बरसात के पानी में तैराना , वो मिटटी
के बर्तनों में खाना बनाना ,वो गुड़ियाँ की शादी पर तैयार होना , और गुड़ियां की
विदाई पर फूट –फूट कर रोना , स्कूल का  पाठ
याद करना, एग्जाम में उत्तर न आने पर ईधर उधर ताक 
–झांक करना ,पिता की डांट से बचने के लिए मिल कर झूठे बहाने बनाना | इन सब
यादों में एक शख्स सदा आपके साथ होता है और वो है आपकी गुइंया यानि आपके बचपन की सहेली |
 




अगर आपके पास जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सहेली  है तो जिंदगी आसान हो जाती है और न हो, तो सफर तय करना और मुश्किलों का हल अकेले
ढूंढना
 बहुत मुश्किल हो
जाता है ।







 ये सच है की लड़कियों की शादी  के बाद मायका व् बचपन  की सहेलियां अक्सर पीछे छूट जाती हैं | सब अलग – अलग अपने – अपने ससुराल में रम जाती हैं |उतना मिलना नहीं हो पाता |फिर भी जब मिलते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे बचपन से मिल लिया हो | समय कितना भी आगे बढ़ जाए कोई दूरी नज़र ही नहीं आती | क्योंकि ये दोस्ती उस समय की होती है जब कोई परदे नहीं थे | ऐसी ही एक सहेली मुझे याद आती है जो २० साल बाद मुझे मिली | हम अचानक एक रेलवे स्टेशन पर मिले | फिर जो गप्पे लगी तो लगा ही नहीं हमारे बीच २० साल का फासला है | ये जानने  के बाद हम अब एक ही शहर में हैं | हमने फिर से उस रिश्ते को सहेज लिया | 




लेकिन कुछ ऐसे भी खुश किस्मत लोग होते हैं जिनकी सहेलियों का साथ कभी छूटता ही नहीं | दोनों उसी शहर में रहती हैं | जहाँ दोनों एक दूसरे के हर सुख – दुखमें साथ देती हैं | अगर आप की भी कोई सहेली अब तक आप के साथ है | तो आप खुशकिस्मत हैं |कई बार खून के रिश्ते भी उतना साथ नाहीं देते जितना सहेलियां देती हैं |


राधा और मीता ऐसी ही सहेलियां थी | बचपन से ४० की उम्र तक साथ – साथ | पर फिर उसके बाद उनकी दोस्ती में ऐसी दरार आई की वो खाई में ही बदल गयी | दरसल रिश्ता सहेलियों का या कोई और उसे सींचने की जरूरत होती है | आज मैं उन्हीं नुस्खों की बात कर रही हूँ जिन्हें अपना कर आप अपनी सहेली के साथ वैसा ही बचपन जैसा प्यार भरा रिश्ता बनाए रह सकती हैं |    


खास सहेली को ख़ास  होने का
कराये अहसास



                अक्सर हम
सोंचते हैं की जो हमारी खास सहेली है वो तो हैं ही | बाकी सब से ही वैसा ही रिश्ता
बनाने की कोशिश करें | क्योंकि दोस्त जितने  ज्यादा हो उतना ही अच्छा | बस यही हमसे चूक हो
जाती है | कहा गया है

जो सबका दोस्त होता है वो किसी का दोस्त नहीं होता |

बात सुनने में विचित्र लग सकती है पर है सही | पक्की सहेली का अर्थ
है की आप उससे कोई राज न रखे , न वो आपसे कोई राज़ रखे | ऐसा व्यक्ति कोई एक या दो
ही हो सकते हैं | जिनके ज्यादा दोस्त घनिष्ठ  होते हैं
 वो दूसरों का
राज रख नहीं पाते | जिस कारण उन्हें कोई दिल की बात बताता भी नहीं |कई बार आपकी
खास सहेली को लगता है किआप उसके साथ जितना लगाव रखते हैं उतना ही सबके साथ रखते
हैं तो वो खुद आपसे दूर हो जायेगी | याद रखिये घनिष्ठ रिश्ते खास होने का अहसास
दिलाने पर ही टिकते हैं |

सहेली के रिश्ते में बराबरी कैसी



                     सहेली
का रिश्ता पूरी जिंदगी बरक़रार रखने के लिए जरूरी है की बराबरी नहीं मिलानी चाहिए |नहीं
तो उस रिश्ते में से बचपन की मिठास चली जायेगी |  मैं उसके घर दो बार हो आई अब वोपहले आएगी तभी
मैं जाउंगी | या मैंने उसे खाना खिलाया उसने केवल चाय नाश्ता करा कर भेज दिया | अब
ये तुलना करनी शुरू कर दी तो बहुत मुश्कल हो जायेगी |हो सकता है आप की सहेली की
परिस्थितियां कहीं आने – जाने के अनुकूल न हों या आप एकल परिवार में हों वो
संयुक्त परिवार में | ऐसे में वो सबकी अनुमति ले कर ही घर से निकल पाएगी | अब अगर
आप बराबरी मिलायेंगी तो रिश्ता चलना मुश्किल है | आप के पास समय है , आप मिलना
चाहती हैं तो बेधड़क जाइए | किसने रोका है | खाने की बात पर भी सोंच लीजिये | हर
किसी को खाना बनाने का शौक नहीं होता | उसे जो शौक है वो चीज या काम वो आपके लिए
जरूर करेगी | इस बात को चाहे तो आजमा कर देख लीजिये |

सहेली की भावनाओं का करिए सम्मान


                    
सहेलियों का रिश्ता खून का रिश्ता नहीं होता | वो परस्पर प्यार और सम्मान
पर ही टिका होता है | इसलिए जरूरी है की भावनाओं का सम्मान करें | अगर उसके जीवन
में कोई दुःख चल रहा है तो उसकी इच्छा से ही उस विषय में बात करें | कई बार आप
फटाफट उस बारेमें बात करना चाह रही होंगी | पर उसे उस बारे में बात करने में संकोच
हो रहा होगा | या वो थोडा हीलिंग टाइम चाहती होगी | ऐसे समय में उसे स्पेस जरूर
दें | देखिएगा वो नार्मल होते ही सबसे पहले आप से बात करेगी |

सहेली से खुल कर बात करें

 यूँ तो
हर रिश्ते की तरह सहेली के रिश्ते में भी शब्दों की मिठास व् अपने शब्दों पर खरा
उतरना यानि की किया हुआ वायदा निभाना अहम् है पर कई बार इन सब के
बावजूद गलतफहमियां पल ही जाती हैं | उन गलतफहमियों को अपने मन
में गोल – गोल घुमाने पर वो बढती ही जाती हैं
|   बेहतर
है गलफहमी शुरू होते ही आपस में बात कर ली जाए | मुझे ऐसा लग रहा था या हो सकता है
तुम्हें ऐसा लगा हो | बात क्लीयर होते ही रिश्ते की गाडी फटाफट दौड़ने लगेगी |


                       खट्टी हो मीठी हो या तीखी
आपकी बचपन की गुइंयाँ आप की सहेली बचपन की तमाम मिठास लिए हुए है | इस रिश्ते को संभाल
कर रखिये | फिर चाहे यूँही गप्पे लगनी हो , सैर पर जाना हो, फिल्म देखने  या शॉपिंग पर जिंदगी का मजा दोगुना हो जाता है |
    

सरबानी सेनगुप्ता 

लेखिका व् कवियत्री




यह भी पढ़ें …



 आपको आपको  लेख ” चलो मेरी गुइंयाँ –  रिश्ता सहेलियों का कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |     

Leave a Comment