होली का त्यौहार यानि रंगों का त्यौहार , ये रंग हैं ख़ुशी के आल्हाद
के , जीवंतता के , “बुरा न मानों होली है”के उद्घोष के साथ जीवन को सहजता से लेने
के इन्हीं रंगों से तो रंग है हमारा जीवन , ऐसे ही विविध रंगों को सहेजते हुए हम
आपके लिए लाये हैं कुछ ख़ास कवितायें –
के , जीवंतता के , “बुरा न मानों होली है”के उद्घोष के साथ जीवन को सहजता से लेने
के इन्हीं रंगों से तो रंग है हमारा जीवन , ऐसे ही विविध रंगों को सहेजते हुए हम
आपके लिए लाये हैं कुछ ख़ास कवितायें –
होली के रंग कविताओं के संग
१—होली में
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होली में
उड़े रे गुलाल
आओ रंगे तन मन हम!
बच्चों ने
थामी पिचकारी
भिगोने चले धम-धम!
बड़े चले
सब मिल कर
रंगे पुते जाने किधर!
स्त्रियों ने
छेड़ी मीठी तान
नाचे गाएँ झूम झूम कर!
बच्चे बूढ़े
खाएँ मन भर
गुझिया मठरी ले ले थाल
कैसे कहें
रंगों ने जोड़े
दिल के टूटे हुए तार
होली आई
मस्ती भरी आज
करे मन वीणा झंकार।।
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२—होली पर
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दूर कहीं
सोच रही बिटिया
लेने आएगा भाई मुझे आज
सोचें देवर
पहली होली भाभी की
कैसे कैसे रंगना उन्हें आज
सरहद पर
सैनिक सपना देखे
अगली होली जाऊँगा मैं घर
मस्ती भरी होली
जैसी इस बार आई
ऐसी फिर आए सबके घर
खुशियों के रंग
मीठी गुझिया के संग
सबको बुलाए होली अगले वर्ष
सिंधारा देकर
भेज रही बेटे को आज
बिटिया के ससुराल में माँ।
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३—पहली होली
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तेरी
पहली होली
संग पिया परिवार के
खिलें
रंगों के इंद्रधनुष
तेरे घर-आँगन-द्वार में
महके
सुगंध पकवानों की
चतुर्दिक दिशाओं में
उड़ें
खुशियों के गुलाल
जहाँ-जहाँ तक दृष्टि जाए
दिखें
दूर-दूर तक चलती
मस्ती भरी हवाएँ फागुन की
रंगे
तन-मन तेरा
गाढ़े प्रेम रंग में
लाए
होली हर बार
नव उपहार आँचल में
हो सरल
हर कठिन परिस्थिति
हमारा आशीर्वाद होली में।
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४—रंग होली के
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रंग
होली के
तन से अधिक
रंगे मन को
गहनता से
प्रेम में
गहरा हो
विश्वास तो
जन्मती है कल्पना
मन की आवाज़
करती उसे
साकार
तो चुन
रंग कुछ ऐसे
बने आवाज़ मन की
रंग जाएँ रिश्ते भी
निर्भय बन
जीवन में
हर रंग
कहता सबसे
सुनो मेरी कहानी
बदलते हैं जीवन
सही रंग से
चलो
कुछ रंग लेकर
रंगे वो जिंदगियाँ
लूट गए रंग जिनके
उन्हें रंग आएँ
अपनेपन में
होली
कहे अब
दिखावा न हो
हों मन कर्म भाव सच्चे
तो खिले हर रंग
आँगन में।
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५—-होली
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होली
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होली
बरसाना की हो
मथुरा वृंदावन की हो
शांतिनिकेतन की
गाँव शहर की हो
कहीं की भी हो
खेले जाते जिसमें
रंग फूलों के
अबीर गुलाल के
सच्चाई और विश्वास के
तभी खिलते
बिखरते सर्वत्र
रंग उमंग उल्लास के
ख़ुशियों से सराबोर
जीवन में
पर
सिर उठाती विकृतियाँ
लील रही
रंग होली के
अब होली
नहीं जगाती उमंग
मन में रंगों से खेलने की
जिनकी आड़ में
विकृत मानसिकता
करती बेरंग
चेहरों को
आइए
खेलें होली
शुचिता लिए रंगों से
पकवानों की
सुगंध के साथ
पर खेलें न कभी
किसी की
जिंदगी के साथ।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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होली की सभी कविताएँ एक से बढ़कर एक. सभी को हैप्पी होली
धन्यवाद
Bohat acchi kavita hai.