सपने देखना भी एक हुनर है

सपने देखना भी एक हुनर है

    कौन है जो सपने नहीं देखता , पर क्या हमारे सब सपने पूरे होते हैं |  कुछ लोग जीवन में आने वाली समस्याओं से विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं से घबराकर अपने ख़र्चों में कटौती करने और अपने सपनों का गला घोंटने में लग जाते हैं। क्या आप को पता है की पूरे होने वाले सपने देखने के लिए सपने देखने का हुनर सीखना भी जरूरी है |

सपने देखना भी एक हुनर है 

जो लोग बड़े सपनों से भयभीत हो उनका गला घोंटते हैं , उनके अनुसार जीवन में समस्याओं से बचने का यही एकमात्र उपाय है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत होती है। समस्याओं से बचने से न तो हमारी समस्याएँ कम होती हैं और न उनका समाधान ही हो पाता है। ये तो बिल्ली को देखकर कबूतर के आँखें मूँद लेने जैसी स्थिति है।

ऐसे लोग प्रायः कहते हैं कि हवाई किले मत बनाओ या दिन में सपने देखना छोड़ दो लेकिन आज ये बात सिद्ध हो चुकी है कि जीवन में आगे बढ़ने या कुछ पाने के लिए दिन में सपने देखना बहुत ज़रूरी है। हमारा भविष्य हमारे सपनों के अनुरूप ही आकार ग्रहण करता है।

आज दुनिया में जो लोग भी सफलता के ऊँचे पायदानों पर पहुँचे हैं वो अपने सपनों की बदौलत ही ऐसा कर पाए हैं और जो लोग किसी भी क्षेत्र में सबसे नीचे के पायदान से भी नीचे हैं वो भी अपने कमज़ोर व विकृत सपनों के कारण ही वहाँ हैं।

‘‘रिच डैड पुअर डैड’’ के अनुसार 

     ‘‘रिच डैड पुअर डैड’’ के लेखक राॅबर्ट टी. कियोसाकी कहते हैं कि हमें अपने ख़र्चों में कमी करने की बजाय अपनी आमदनी बढ़ानी चाहिए और अपने सपनों को सीमित करने की बजाय अपने साहस और विश्वास में वृद्धि करनी चाहिए। जिस किसी ने भी सही सपने चुनने और देखने की कला विकसित की है वही संसार में सबसे ऊपर पहुँच सका है। ऊपर पहुँचने का अर्थ केवल धन-दौलत कमाने तक सीमित नहीं है अपितु जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति व विकास से है।

अच्छा स्वास्थ्य तथा प्रभावशाली व आकर्षक व्यक्तित्व पाने का सपना भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता। जो लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित ऊँचाइयों तक नहीं पहुँच पाते ज़रूर उनके सपनों व उन्हें देखने के तरीक़ों में कोई कमी रही होगी।

सपना देखने के बाद उसकी देख-भाल व परवरिश करना भी अनिवार्य है ताकि वो अपने अंजाम तक पहुँच सके। प्रश्न उठता है कि सही सपनों का चुनाव कैसे करें और कैसे उन्हें देखें?

इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पश्चिमी देशों में हर साल 11 मार्च को ‘ड्रीम डे’ अथवा ‘स्वप्न दिवस’ मनाया जाता है।

खुली आँखों से देखे सपने

     वास्तविकता ये है कि हमारा मन कभी चैन से नहीं बैठता। उसमें निरंतर विचार उत्पन्न होते रहते हैं। एक विचार जाता है तो दूसरा आ जाता है। हर घंटे सैकड़ों विचार आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। ये विचार हमारी इच्छाओं के वशीभूत होकर ही उठते हैं। ये हमारे सपने ही होते हैं। सपनों का प्रारंभिक स्वरूप। हमारे अवचेतन व अचेतन मन में विचारों की कमी नहीं होती। पूरे जीवन के अच्छे व बुरे सभी अनुभव इनमें संग्रहित रहते हैं। ये अनुभव ही हमारे विचारों के मूल में होते हैं। इन असंख्य विचारों में से जो विचार जीवन या भौतिक जगत में वास्तविकता ग्रहण कर लेता है वो एक सपने की पूर्णता ही होती है। कई बार हमें अपने इस सपने की जानकारी भी नहीं होती। सपने की जानकारी न होने से सपने की जानकारी होना बेहतर ही नहीं बेहतरीन है। संभावना रहती है कि ग़लत विचार हमारा सपना बनकर हमें तबाह कर डाले। अतः नींद में नहीं अपितु खुली आँखों से सोच-समझकर सपने देखना ही श्रेयस्कर है।

सीखें सपने देखने की कला 

     अब एक और प्रश्न उठता है कि सही विचारों अथवा सपनों के चयन के लिए क्या किया जाए? सही विचारों के चयन के लिए विचारों को देखकर उनका विश्लेषण करना और उनमें से किसी अच्छे उपयोगी विचार का चयन करना अपेक्षित है। जब हम रोज़ मर्रा की सामान्य अवस्था में होते हैं तो न तो विचारों को सही-सही देखना ही संभव है और न उनका विश्लेषण करना ही। इसके लिए मस्तिष्क की शांत-स्थिर अवस्था अपेक्षित है। ध्यान द्वारा यह स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

 मस्तिष्क की चंचलता कम हो जाने पर जब हम शांत-स्थिरि हो जाते हैं तो उस अवस्था में विचारों को देखना और उनका विश्लेषण करना संभव हो जाता है। उस समय हमें चाहिए कि हम अनुपयोगी नकारात्मक विचारों पर ध्यान न देकर केवल उपयोगी सकारात्मक उदात्त विचारों पर संपूर्ण ध्यान केंद्रित कर लें।

हम जो चाहते हैं मन ही मन उसे दोहराएँ। उसी विचार के भाव को पूर्ण एकाग्रता के साथ मन में लाएँ। उस भाव को अपनी कल्पना में चित्र के रूप में देखें।

     अपने विचार, भाव या सपने को चित्र के रूप में देखना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व फलदायी होता है। हम पूरे घटनाक्रम को एक फिल्म अथवा उस सपने की परिणति को एक चित्र की तरह देखें। आपकी फिल्म अथवा चित्र जितना अधिक स्पष्ट होगा सपने की सफलता उतनी ही अधिक निश्चित हो जाएगी।

 यह पूरी प्रक्रिया हमारे मस्तिष्क को अत्यंत सक्रिय व उद्वेलित कर देती है। मस्तिष्क की कोशिकाएँ हमारे सपने के अनुरूप अपेक्षित परिस्थितियों का निर्माण करने में जुट जाती हैं और तब तक न स्वयं चैन से बैठती हैं और न हमें ही चैन से बैठने देती हैं जब तक कि वो सपना पूरा नहीं हो जाता।

बिना किसी सपने के न तो हमारा मस्तिष्क ही सक्रिय होता है और न अपेक्षित परिस्थितियों का निर्माण ही होता है। इसी से जीवन में सपनों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।

तो आप भी अपने अंदर सपने देखने का हुनर विकसित का लीजिये | बड़े सपनॉन से दरिये नहीं , उन्हें जी भर के देखिये … उन्हें सच करिए … और दोनों हाथ बढ़ा कर वो सब समेत लीजिये जिसे पाने का कभी आपने सपना देखा था | 

सीताराम गुप्ता,
दिल्ली – 110034

लेखक

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