सावन की बुंदियां

सावन की बुंदियां

सावन के आते ही अपनी धरती ख़ुशी से झूम उठती है , किसान अच्छी फसल की उम्मीद करने लगता है और बावरा मन गा उठता है …..

सावन की बुंदियां



उमड़ – घुमड़ कर
श्याम मेघ , अम्बर छाए
संकुल नभ गलियां
रिमझिम गिरे सावन की बुंदियां

शीतल , मृदुल फुहारें गिरतीं
अमृत सम मधुमय जल झरतीं
भरतीं पोखर , झीलें , नदियां
रिमझिम गिरे सावन की बुदियां

तप्त हुई बेचैन धरा की
है जलधर ने प्यास बुझाई
कृषकों के चेहरों पर खुशियां
रिमझिम गिरे सावन की बुंदियां

अट्टालिका गगनचुंबी हित
वृक्ष कटें वन , उपवन के नित
झूला किस पर डाले मुनिया ?
रिमझिम गिरे सावन की बुंदियां


उषा अवस्थी

लेखिका -उषा अवस्थी


पढ़ें सावन पर कुछ भीगती हुई कवितायें –

सावन में लग गयी आग कि दिल मेरा (कहानी )


सावन पर किरण सिंह की कवितायें


सावन एक अट्ठारह साल की लड़की है

आपको ”  देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको अटूट बंधन  की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम अटूट बंधनकी लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |


filed under- poem in Hindi, Hindi poetry ,rain, rainy season

1 thought on “सावन की बुंदियां”

Leave a Comment