आलिंगन- कविता व विस्तृत समीक्षा
आलिंगन यानि जादू की झप्पी |प्रेम में संपूर्णता से तिरोहित हो जाने का भाव | एक माँ जब अपने नन्हे शिशु को अपनी छाती से चिपकाती है वहीं से प्रेम की परिभाषा शुरू होती है | अनामिका चक्रवर्ती जी अपनी कविता “आलिंगन”में प्रेम के इसी भाव को रेखांकित करती हैं | पढिए कविता व उस पर स्वामी ध्यान कल्याण जी की विस्तृत समीक्षा आलिंगन प्रेम में गले लगने और लगाने का सुख आत्मा में प्रवेश करता है और प्रेम को प्रगाढ़ बनाता है। गले लगाने का सबब तुम तब समझोगे जब इस प्यास को अपनी छाती के भारीपन में महसूस करोगे। जैसे एक शिशु की माँ अपने छाती के भारीपन और उसमें उठ रही टीस को महसूस करती है । बच्चे को अपनी छाती से लगाकर केवल बच्चे का पेट नहीं भरती बल्कि खुद उससे कहीं अधिक उस संतुष्टि का अनुभव करती है जो बच्चे की भूख मिटाकर वह अपनी छाती के भारीपन से और उसकी टस- टस हो रही पीड़ा से मुक्ति पाकर आत्म सुख को भी अनुभव करती है। ठीक वैसे ही प्रेम के आलिंगन में प्रेम के वात्सल्य और विश्वास की भावना भी समाहित होती है । शरीर भावनाओं की भाषा की लिपि है जिसमें सम्पूर्ण शब्दकोश और मात्राएँ समाहित हैं और इसको वाचना प्रेम को स्पर्श प्रदान करता है। गले लगने को आभूषण न बनाओं उसे प्रेम हो जाने दो छाती के भारीपन को प्रेम में घुल जाने दो, उसे आलिंगन हो जाने दो उसे आत्मा में प्रवेश कर जाने दो। अनामिका चक्रवर्ती समीक्षा : स्वामी ध्यान कल्याण अनामिका जी का लेखन हमारे सामने एक सम्पूर्ण दृश्य निर्मित कर देता है अनामिका जी का यह लेखन ” आलिंगन ” हमें विशुद्ध प्रेम से हमारा परिचय कराता है। एक माँ के द्वारा अपने बच्चे के प्रति प्रेम को आधार बनाकर लिखी गयी यह कविता जिसे पढ़ते हुए प्रेममय और करुणामय हो जाना स्वाभिक है। आपके शब्दों का चयन हमें आरम्भ से अंत तक कविता में बनाये रखता है । सौभाग्य से मैं पहली बार किसी कविता पर अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहा हूँ अतः इसमें कोई भूल चूक हो तो क्षमा कीजिएगा । जब भी हम किसो को गले लगाते से हैं या कोई हमें गले से लगाता है तो उस समय में वे दोनों ही तिरोहित हो जाते हैं। दोनों के ऊर्जा क्षेत्र मिलकर एक नया ऊर्जा क्षेत्र निर्मित करते हैं और प्रेम सीधे आत्मा मैं प्रवेश कर जाता है, और हमें आत्मिक सुख का अनुभव कराते हुए प्रेम को प्रगाढ़ बनता है। कुछ पंक्तिओं से लेखिका कविता के रुख को सीधा माँ से संबद्धित करती हैं, एक खुली सामजिक चुनौती देते हुए माँ की छाती के भारीपन और उससे उठ रही टीस को महसूस कराती हैं, माँ हम सभी की जीवनदायिनी है और हमारी उत्तपत्ती में माँ की सबसे महत्तवपुर्ण भूमिका है । इसी तरह आगे की पंक्तिओं से लेखिका कविता के रुख को फिर से मोड़ देती हैं और माँ की छाती के भारीपन और उससे उठ रही टीस को आत्मिक सुख और सन्तुष्टि मैं परिवर्तित कराती हैं, और एक जीवन का भरण पोषण कर उस मासूम को भी प्रेम की अनुभूति कराती हैं, और स्वयं माँ को भी भारीपन और टस टस हो रही पीड़ा से मुक्त कराती हैं इन पंक्तिओं से लेखिका हमें कविता के शीर्षक “आलिंगन” पर ले आती हैं, प्रेम के राज्य मैं वे हो प्रवेश पा सकते हैं जो की बच्चों की भांति सरल और सहज हों, सरल और सहज होना विश्वास को भी प्रतिनिधित्व करता है । और इसी भावना से प्रेम में होने वाले आलिंगन को कलमबद्ध करती है। जो शरीर भावनाओं की भाषा लिपि है क्योंकि शरीर तो हमारी भावनावों के वश मैं सदा से ही है भावनाएं जो आदेश करती हैं शरीर उसी अनुसार व्यवहार करता है, और इस लिपि मैं सारा अस्तित्व समाया हुआ है, इसको वाचने मात्र से हम प्रेम को स्पर्श कर लेते हैं, लेखिका वाचन शब्द का उपयोग कर प्रेम को पूजा का स्थान देती हैं आलिंगन की कल्पना मात्र ही हमारी आँखों को बन्द कर, हमारे भारीपन को प्रेम मैं घोल देती है हमें भारीपन से मुक्त कर प्रेम को हमारी आत्मा मैं प्रवेश कराती है, इसीलिए लेखिका कहती हैं गले लगाने तो आभूषण न बनाओ उसे प्रेम हो जाने दो, उसे आलिंगन हो जाने दो, उसे आत्मा मैं प्रवेश करने दो। समीक्षा : स्वामी ध्यान कल्याण यह भी पढ़ें —- नए साल का स्वागत कल्पना मनोरमा की कविताएँ ऐ, सुनो ! मैं तुम्हारी तरह आपको कविता आलिंगन व उसकी समीक्षा कैसी लगी ?अपनी प्रतिक्रिया हमें अवश्य दें |अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारी साइट सबस्क्राइब करें | अटूट बंधन फेसबूक पेज लाइक करें |