संकलन – प्रदीप कुमार सिंह
मैं 2012 से दिल्ली की सड़कों पर आॅटो चला रहा हूं। शुरू से
गर्मी के दिनों में, खासकर जब तेज लू चल रही होती है, तब सड़कों पर आॅटो चलाना मेरे लिए काफी कठिन होता
था। मैंने देखा, इस मौसम में कई आॅटो वाले पेड़ों की घनी छाया में आॅटो खड़े कर सो जाते थे। मैं
चूंकि किसी मजबूरी में ही इस पेशे में आया, लिहाजा मेरे लिए ऐसा करना संभव नहीं था। लेकिन जब
मैंने चिलचिलाती धूप में रेड लाइट पर सामान बेचने वाले लोगों और खासकर बच्चों की
परेशानियां देखीं, तब मेरा दिमाग घूम गया।
गर्मी के दिनों में, खासकर जब तेज लू चल रही होती है, तब सड़कों पर आॅटो चलाना मेरे लिए काफी कठिन होता
था। मैंने देखा, इस मौसम में कई आॅटो वाले पेड़ों की घनी छाया में आॅटो खड़े कर सो जाते थे। मैं
चूंकि किसी मजबूरी में ही इस पेशे में आया, लिहाजा मेरे लिए ऐसा करना संभव नहीं था। लेकिन जब
मैंने चिलचिलाती धूप में रेड लाइट पर सामान बेचने वाले लोगों और खासकर बच्चों की
परेशानियां देखीं, तब मेरा दिमाग घूम गया।
आॅटो चलाते हुए तो फिर भी हमारे सिर पर छत होती है,
लेकिन लालबत्ती के
आसपास मंडराने वाले लोगों और बच्चों की हालत की सहज ही कल्पना की जा सकती है। कुछ
समय वे इधर-उधर पेड़ की छांव में भले गुजार लें, लेकिन बत्ती लाल होते ही वे खिलौने, किताबें और कार पोंछने के
कपड़े आदि बेचने पहुंच जाते हैं। उनकी हालत पर तरस खाना तो दूर, गाड़ियों में बैठे लोग उन्हें
दुत्कारते हैं। धूप में पसीना बहाकर रोजी-रोटी कमाने वालों को वे चोर या उठाईगीर
समझते हैं।
लेकिन लालबत्ती के
आसपास मंडराने वाले लोगों और बच्चों की हालत की सहज ही कल्पना की जा सकती है। कुछ
समय वे इधर-उधर पेड़ की छांव में भले गुजार लें, लेकिन बत्ती लाल होते ही वे खिलौने, किताबें और कार पोंछने के
कपड़े आदि बेचने पहुंच जाते हैं। उनकी हालत पर तरस खाना तो दूर, गाड़ियों में बैठे लोग उन्हें
दुत्कारते हैं। धूप में पसीना बहाकर रोजी-रोटी कमाने वालों को वे चोर या उठाईगीर
समझते हैं।
आॅटो चलाते हुए मैंने कई बार देखा कि हाॅकरों को
लोग बुरी तरह दुत्कारते है। मैं एक समान्य आदमी हूं। इसके बावजूद मैंने सोचा कि
मुुझे इन हाॅकरों के लिए कुछ करना चाहिए। मैं यही कर सकता था कि उन्हें पानी
पिलाकर थोड़ी राहत दे सकता था। फिर सोचा, पानी के साथ कुछ खाने को भी दिया जाए, तो अच्छा रहेगा। इसी भावना
के तहत गर्मी के दिनों में मैं अपने आॅटो में स्नैक्स के कुछ पैकेट और एक कार्टन
में पानी की बोतलें लेकर निकलने लगा। रास्ते में पड़ने वाली हर रेड लाइट पर मैं
सामान बेचने वालों को स्नैक्स और पानी देता तथा उनसे बात भी करता, उनके हाल-चाल पूछता। यह काम
तेजी से करना होता है, क्योंकि टैªफिक लाइट के ग्रीन होते ही मुझे झट से अपना आॅटो स्टार्ट कर देना पड़ता है,
नहीं तो पीछे कतार
में खड़ी गाड़ियों में बैठे लोग चिल्लाने लगते हैं।
लोग बुरी तरह दुत्कारते है। मैं एक समान्य आदमी हूं। इसके बावजूद मैंने सोचा कि
मुुझे इन हाॅकरों के लिए कुछ करना चाहिए। मैं यही कर सकता था कि उन्हें पानी
पिलाकर थोड़ी राहत दे सकता था। फिर सोचा, पानी के साथ कुछ खाने को भी दिया जाए, तो अच्छा रहेगा। इसी भावना
के तहत गर्मी के दिनों में मैं अपने आॅटो में स्नैक्स के कुछ पैकेट और एक कार्टन
में पानी की बोतलें लेकर निकलने लगा। रास्ते में पड़ने वाली हर रेड लाइट पर मैं
सामान बेचने वालों को स्नैक्स और पानी देता तथा उनसे बात भी करता, उनके हाल-चाल पूछता। यह काम
तेजी से करना होता है, क्योंकि टैªफिक लाइट के ग्रीन होते ही मुझे झट से अपना आॅटो स्टार्ट कर देना पड़ता है,
नहीं तो पीछे कतार
में खड़ी गाड़ियों में बैठे लोग चिल्लाने लगते हैं।
कुछ दिन इसी तरह बीते, तो कुछ लोगों ने मेरे काम की
तारीफ की और कहा कि भलाई के इस काम में वे भी कुछ सहयोग करना चाहते हैं। उस समय तो
मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा, लेकिन अगले दिन मेरे आॅटो में स्नैक्स और पानी की बोतलों के साथ डोनेशन बाॅक्स
भी था। लोगों ने मेरी मदद करनी शुरू की तो मेरे लिए यह काम और आसान हो गया। चूंकि
लोग मुझे पहचानने लगे और मेरे पास थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद भी आने लगी, तो मैंने सोचा कि मुझे
जरूरतमंद लोगों की मदद का दायरा और बढ़ाना चाहिए। फिर मैं गरीब मरीजों को मुफ्त में
अस्पताल ले जाने और उन्हें घर तक छोड़ने का काम भी करने लगा।
तारीफ की और कहा कि भलाई के इस काम में वे भी कुछ सहयोग करना चाहते हैं। उस समय तो
मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा, लेकिन अगले दिन मेरे आॅटो में स्नैक्स और पानी की बोतलों के साथ डोनेशन बाॅक्स
भी था। लोगों ने मेरी मदद करनी शुरू की तो मेरे लिए यह काम और आसान हो गया। चूंकि
लोग मुझे पहचानने लगे और मेरे पास थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद भी आने लगी, तो मैंने सोचा कि मुझे
जरूरतमंद लोगों की मदद का दायरा और बढ़ाना चाहिए। फिर मैं गरीब मरीजों को मुफ्त में
अस्पताल ले जाने और उन्हें घर तक छोड़ने का काम भी करने लगा।
दरअसल जल्दी ही मैं आॅटो की जगह टेक्सी चलाऊंगा।
मैंने कार लोन के लिए एप्लाई किया था और लोना मंजूर हो गया है। इसी महीने मुझे
टैक्सी मिल जाएगी। टैक्सी से फायदा यह होगा कि स्नैक्स और पानी की बोतलें रखने के
लिए ज्यादा जगह मिलेगी। इससे मैं ज्यादा लोगों की मदद कर पाऊंगा। मेरे मददगारों
में अनेक लोग ऐसे हैं, जो मेरी ही रूट पर अपनी कारों से आते-जाते हैं। मैं वह सब गरीब, लाचार और धूप में पसीना
बहाकर कमाने वालों के लिए खर्च करता हूं। मेरी सिर्फ एक ही इच्छा है कि जीवन भर
लोगों की इसी तरह सेवा करता रहूं।
मैंने कार लोन के लिए एप्लाई किया था और लोना मंजूर हो गया है। इसी महीने मुझे
टैक्सी मिल जाएगी। टैक्सी से फायदा यह होगा कि स्नैक्स और पानी की बोतलें रखने के
लिए ज्यादा जगह मिलेगी। इससे मैं ज्यादा लोगों की मदद कर पाऊंगा। मेरे मददगारों
में अनेक लोग ऐसे हैं, जो मेरी ही रूट पर अपनी कारों से आते-जाते हैं। मैं वह सब गरीब, लाचार और धूप में पसीना
बहाकर कमाने वालों के लिए खर्च करता हूं। मेरी सिर्फ एक ही इच्छा है कि जीवन भर
लोगों की इसी तरह सेवा करता रहूं।
विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
साभार – अमर उजाला
बहुत ही बढ़िया कार्य। ऐसे लोगो से प्रेरणा मिलती है कुछ अच्छा करने की।
जी ज्योति जी सही कहा … धन्यवाद