आजएक बार फिर हम सब दोस्त सोहन के घर एकत्रित हुये थे – मयपान के लिये नहीं अपितु उसकी
शव-यात्रा में शामिल होकर उससे अंतिम विदा लेने के लिये!
उसके घर
के बाहर गली में शोक सभा के लिये लगाये गयेशामियाने के नीचे एक तरफ गली-मोहल्ले व
रिश्ते की औरतें ‘स्यापा‘ कररही थीं और दूसरी तरफ कुछ शोकग्रस्त मर्द बैठे थे जिनमें से कुछ
तोबिल्कुल ख़ामोश थे तो कुछ आपस में वार्तालाप कर रहे थे। हम चारों दोस्तभी अपने
सिर झुकाये इस शोक सभा में शामिल थे!
के बाहर गली में शोक सभा के लिये लगाये गयेशामियाने के नीचे एक तरफ गली-मोहल्ले व
रिश्ते की औरतें ‘स्यापा‘ कररही थीं और दूसरी तरफ कुछ शोकग्रस्त मर्द बैठे थे जिनमें से कुछ
तोबिल्कुल ख़ामोश थे तो कुछ आपस में वार्तालाप कर रहे थे। हम चारों दोस्तभी अपने
सिर झुकाये इस शोक सभा में शामिल थे!
सहसा, सभा में मौजूद एक सज्जन ने मौत का कारण
जानतेहुये भी अपने पास बैठे दूसरे सज्जन से औपचारिकतावश अपनी सहानुभूतिदर्शाते
हुये वार्तालाप शुरू किया, “वाकई ही बड़ा ज़ुल्म हुआ है
भाईसाहिब, इस परिवार के साथ… बेचारे के दो छोटे-छोटे बच्चे
हैं, बड़ाशायद लड़का है और दूसरा बच्चा लड़की है, सोहन की उम्र भी कोई ख़ास नहींथी, यही कोई
बत्तीस-पैंतीस साल मुश्किल से …पिछले हफ्ते ही मैं ख़ुदअपने सैक्टर की मार्किट
में उनसे मिला हूँ, शाम का ‘टाइम‘
था … कोनेमें सब्जी वाले की दुकान के साथ वाली पान-सिगरेट की
दुकान पर खड़े थे, शायद पान तैयार होने की इंतज़ार में थे…
पान खाने का उन्हें बड़ा शौकथा …मैं ज़रा जल्दी में था, उनसे
कोई ज़्यादा गल-बात तो नहीं कर पाया, पर मुझे क्या पता था कि
यह मेरी अंतिम मुलाक़ात होगी… क्या भरोसा हैज़िंदगी का? है
कोई, भला …?” अविश्वास की
मुद्रा में अपना सिर हिलाते हुए उन्होंने कहा।
जानतेहुये भी अपने पास बैठे दूसरे सज्जन से औपचारिकतावश अपनी सहानुभूतिदर्शाते
हुये वार्तालाप शुरू किया, “वाकई ही बड़ा ज़ुल्म हुआ है
भाईसाहिब, इस परिवार के साथ… बेचारे के दो छोटे-छोटे बच्चे
हैं, बड़ाशायद लड़का है और दूसरा बच्चा लड़की है, सोहन की उम्र भी कोई ख़ास नहींथी, यही कोई
बत्तीस-पैंतीस साल मुश्किल से …पिछले हफ्ते ही मैं ख़ुदअपने सैक्टर की मार्किट
में उनसे मिला हूँ, शाम का ‘टाइम‘
था … कोनेमें सब्जी वाले की दुकान के साथ वाली पान-सिगरेट की
दुकान पर खड़े थे, शायद पान तैयार होने की इंतज़ार में थे…
पान खाने का उन्हें बड़ा शौकथा …मैं ज़रा जल्दी में था, उनसे
कोई ज़्यादा गल-बात तो नहीं कर पाया, पर मुझे क्या पता था कि
यह मेरी अंतिम मुलाक़ात होगी… क्या भरोसा हैज़िंदगी का? है
कोई, भला …?” अविश्वास की
मुद्रा में अपना सिर हिलाते हुए उन्होंने कहा।
उनके
प्रत्युतर में वार्तालाप में उनके साथ लिप्त सज्जन जो रिश्ते में शायद सोहन के काफी
नज़दीकी थे, आखिर फफक ही पड़े,
“यही सुना है, कल रात अपने दोस्तों के
साथ खाने-पीने के बाद अपने घरस्कूटर पर रवाना हुये हैं कि उस रिक्शे वाले चौंक पर,
एक ‘थ्री-व्हीलर‘ वाले
के साथ टकराकर सिर के भार सड़क पे गिरे हैं कि बस वहीं पर दम तोड़दिया …!”
प्रत्युतर में वार्तालाप में उनके साथ लिप्त सज्जन जो रिश्ते में शायद सोहन के काफी
नज़दीकी थे, आखिर फफक ही पड़े,
“यही सुना है, कल रात अपने दोस्तों के
साथ खाने-पीने के बाद अपने घरस्कूटर पर रवाना हुये हैं कि उस रिक्शे वाले चौंक पर,
एक ‘थ्री-व्हीलर‘ वाले
के साथ टकराकर सिर के भार सड़क पे गिरे हैं कि बस वहीं पर दम तोड़दिया …!”
“हेल्मेट नहीं था डाला हुआ सोहन लाल जी ने …?”
“ओह जी, यह सब बातें हैं …हेल्मेट भी डाला हुआ था,
पर सड़क पर गिरने के बाद हेल्मेट किधर का किधर जा गिरा, सर जाके उधरकंक्रीट से टकराया…बस जी…. बुरी घड़ी आई हुई थी…होनी को
कौन टालसकता है…?”
पर सड़क पर गिरने के बाद हेल्मेट किधर का किधर जा गिरा, सर जाके उधरकंक्रीट से टकराया…बस जी…. बुरी घड़ी आई हुई थी…होनी को
कौन टालसकता है…?”
वार्तालाप
को सुनकर हमें लगा जैसे हम चारों दोस्त हीअपने दोस्त की मौत के ज़िम्मेवार हैं और
लोग हमें ही कोस रहे हैंक्योंकि घटना की शाम हर रोज़ की तरह हम सभी दोस्त मिलकर जशन
मना रहे थे।उस दिन सोहन ने कुछ ज़्यादा ही पी ली थी और फिर वह नशे की हालत में
घरजाने का हठ करने लगा था। उसकी हालत को देखकर हम सभी दोस्तों ने उसेस्कूटर चला कर
घर न जाने का आग्रह भी किया था, लेकिन वह हमारी बात कबमाना था।
को सुनकर हमें लगा जैसे हम चारों दोस्त हीअपने दोस्त की मौत के ज़िम्मेवार हैं और
लोग हमें ही कोस रहे हैंक्योंकि घटना की शाम हर रोज़ की तरह हम सभी दोस्त मिलकर जशन
मना रहे थे।उस दिन सोहन ने कुछ ज़्यादा ही पी ली थी और फिर वह नशे की हालत में
घरजाने का हठ करने लगा था। उसकी हालत को देखकर हम सभी दोस्तों ने उसेस्कूटर चला कर
घर न जाने का आग्रह भी किया था, लेकिन वह हमारी बात कबमाना था।
ऐसा
पहली बार नहीं हुआ था, इससे
पूर्व भी तो हममें से कोई न कोई नशे की हालत में घर जाता रहा था। ख़ुशक़िस्मती से
हममें से किसी के साथ कोई बुरी घटना नहीं घटी थी। हमारे बीच ऐसी पार्टियाँ
अक्सर होती रहती थीं, कभी सोहन के घर, कभी
मोहन के घर, कभी मेरे यहाँ तो कभी हम किसी क्लब में जा धमकते
थे। अब तो हम सब को मय की लत ऐसी लगी थी कि पीने के लिये हमें कोई बहाना भी नहीं
चाहिए होता था, बस ऑफिस में ही तयहो जाता था कि कब और कहाँ
शाम को मिल रहे हैं। ऑफिस में एक-दूसरे केसाथ काम करने के इलावा हम चारों-पाँचों
दोस्त लगभग एक उम्र के भी थे।ताश खेलने बैठते तो घर-वर सब भूल जाते।
पहली बार नहीं हुआ था, इससे
पूर्व भी तो हममें से कोई न कोई नशे की हालत में घर जाता रहा था। ख़ुशक़िस्मती से
हममें से किसी के साथ कोई बुरी घटना नहीं घटी थी। हमारे बीच ऐसी पार्टियाँ
अक्सर होती रहती थीं, कभी सोहन के घर, कभी
मोहन के घर, कभी मेरे यहाँ तो कभी हम किसी क्लब में जा धमकते
थे। अब तो हम सब को मय की लत ऐसी लगी थी कि पीने के लिये हमें कोई बहाना भी नहीं
चाहिए होता था, बस ऑफिस में ही तयहो जाता था कि कब और कहाँ
शाम को मिल रहे हैं। ऑफिस में एक-दूसरे केसाथ काम करने के इलावा हम चारों-पाँचों
दोस्त लगभग एक उम्र के भी थे।ताश खेलने बैठते तो घर-वर सब भूल जाते।
पढ़िए –एक लेखक की दास्तान
लेकिन
सोहन की अचानक मौत हम सबके लिये एक बहुत बड़ासदमा थी। इस हादसे से सबक लेकर या फिर
इसके डर से कुछ दिन तो हममें सेकिसी ने भी पीने का नाम नहीं लिया लेकिन पीने की यह
लत अगर किसी को अगरएक बार लग जाये तो मय पीने वाले इन्सानों को अंत में बिना पिये
कबछोड़ती है! हमारी यह लत “मैं कम्बल तो छोड़ता हूँ मगर कम्बल मुझे
नहींछोड़ता” कहावत जैसी कटु सच थी!
सोहन की अचानक मौत हम सबके लिये एक बहुत बड़ासदमा थी। इस हादसे से सबक लेकर या फिर
इसके डर से कुछ दिन तो हममें सेकिसी ने भी पीने का नाम नहीं लिया लेकिन पीने की यह
लत अगर किसी को अगरएक बार लग जाये तो मय पीने वाले इन्सानों को अंत में बिना पिये
कबछोड़ती है! हमारी यह लत “मैं कम्बल तो छोड़ता हूँ मगर कम्बल मुझे
नहींछोड़ता” कहावत जैसी कटु सच थी!
सोहन
को छोडकर आज सभी दोस्त एक बार फिर पीने के लिये मोहन के घर एकत्रित हुए थे। सब कुछ
वही था, मय की बोतल, पुराने दोस्तऔर खाने का सामान जो हमारे सामने ‘टेबल‘
पर रखा था। अगर किसी चीज़ की कमी थी तो वह थी – हमारे दोस्त सोहन की!
सोहन की अनुपस्थिति हम सबको बार-बार झँझोड़ रही थी, उसकी मौत
रह-रहकर हमारी आत्मा को कचोट रही थी।आज फिर हमने पीने की कोशिश की मगर लाख यत्न
करने के बाद भी पी न सकेथे।
को छोडकर आज सभी दोस्त एक बार फिर पीने के लिये मोहन के घर एकत्रित हुए थे। सब कुछ
वही था, मय की बोतल, पुराने दोस्तऔर खाने का सामान जो हमारे सामने ‘टेबल‘
पर रखा था। अगर किसी चीज़ की कमी थी तो वह थी – हमारे दोस्त सोहन की!
सोहन की अनुपस्थिति हम सबको बार-बार झँझोड़ रही थी, उसकी मौत
रह-रहकर हमारी आत्मा को कचोट रही थी।आज फिर हमने पीने की कोशिश की मगर लाख यत्न
करने के बाद भी पी न सकेथे।
कहतेहैं – सुबह का भूलाअगर शाम को घर लौटआये तो उसे भूला नहीं कहते,हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही थी।क्या ग़लत हैऔर क्या ठीक है, संगत में रहकर हम शायद यह भूले हुये थे और भटक भी गए थे, लेकिन उसकी मौत ने हमारीआँखें खोलदी थीं!
अशोक परूथी “मतवाला”
पढ़िए अशोक परूथी की दो प्रकाशित पुस्तकों की समीक्षा
Thank you, Thank you and Thank you, Vandana ji and Atoot Bandhan!
आंखों को खोलने वाला करीने से लिखा
Aabhar Smita Shree ji