मतलब की समझ

मतलब की समझ

 

 
हम रोज बोलते हैं इससे , उससे, सबसे | न जाने कितने शब्दों वाक्यों का प्रयोग हम एक दिन में करते हैं | यही तो माध्यम हैं अपने मन की बात कहने का , और दूसरों के मन की बात जानने , समझने का |
पर क्या हम हर बात का मतलब समझ पाते हैं, जो हमसे कही गयी | या हम वही सुनते हैं, जो सुनना चाहते हैं | और अपने हिसाब से उसका मतलब निकाल लेते हैं | क्या अपने हिसाब से मतलब निकाल लेने के हमारे इस हुनर पर कभी समय गुज़र जाने के बाद अफ़सोस नहीं होता कि हमें इस बात का मतलब तब समझ क्यों नहीं आया | 
 

 पढ़िए मार्मिक लप्रेक – मतलब की समझ  ? 


अपना गुलाबी पर्स ले कर स्नेहा बड़बड़ाते हुए ऑफिस से निकल गयी | कितना गुस्सा भरा था स्नेहा  के मन में वरुण के लिए | आखिर वरुण ने नमिता को उसके बराबर क्यों बता दिया |


नमिता , वरुण और स्नेहा ऑफिस के एक ही प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे | ये लव ट्राई एंगल था की नहीं ये तो किसी को पता नहीं था | अलबत्ता वरुण और स्नेहा की करीबी किसी से छुपी नहीं थी |
दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे |
दोनों बहुत खुश थे | इतना साथ तो नसीब वालों को ही मिलता है ऑफिस में भी घर में भी

भविष्य के द्वार  पर सुन्दर सपनों की बंदनवार  सजने लगी थी | 


तभी नमिता ने ऑफिस ज्वाइन किया | नमिता वरुण और स्नेहा तीनों अच्छे दोस्त बन गए | नमिता  जब तब वरुण को अपनी आर्थिक दिक्कते बताती रहती |

कई बार कुछ पर्सनल बातें भी शेयर करती | स्नेहा ने शुरू में तो ध्यान नहीं दिया | पर उसे वरुण और नमिता का साथ अखरने लगा |



वो वरुण से शिकायती लहजे में कहती तो वरुण “बस अच्छे दोस्त हैं” कहकर टाल देता | वो कहता, “स्नेहा मेरे जीवन में
तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता”| तुम कभी भी इस बात की चिंता मत करना |पर अक्सर दोनों के बीच इस बात को लेकर तनातनी हो जाती |
जो बाद में प्यार के तेज  बहाव में बह भी जाती |साफ़ बहती नदी को देखने में कौन ध्यान देता है की किनारों पर रेत जमा हो रही है |उन दोनों ने भी ध्यान नहीं दिया |  


मामला तब से बिगड़ने लगा जब बॉस ने ऑफिस में एक प्रतियोगिता रख दी | पूर ऑफिस के चार ग्रुप बनाए | हर ग्रुप में चार लोग थे |सबको एक–एक प्रोजेक्ट दिया गया | जिस ग्रुप का  प्रोजेक्ट सबसे अच्छा होता उसे ग्रुप को बेस्ट ग्रुप का अवार्ड और थाईलैंड की दो दिन तीन रात की ट्रिप इनाम में मिलनी थी |


अब इसे नसीब कहे या कुछ और ?स्नेहा  के ग्रुप में वरुण , नमिता और सूर्यांश थे | तभी सूर्यांश को दूसरी कम्पनी से ऑफर मिल गया | वो कंपनी  छोड़ कर चला गया | रह गए ये तीन | स्नेहा चाहती थी की अवार्ड उसके ग्रुप  मिले तो उसे वरुण
के साथ थाईलैंड जाने का मौका मिलेगा | स्नेहा पूरी मेहनत से जुट गयी |
वरुण ने भी उसका साथ दिया |नमिता कभी साथ काम में आती कभी वरुण को कोई बहाना बता देती | काम चलता रहा | प्रोजेक्ट बहुत अच्छे तरीके से  पूरा हुआ |सभी ग्रुप्स में उन्हीं का प्रोजेक्ट सबसे बेहतर था |
 आज  अवार्ड की घोषणा होनी थी |  वरुण बहुत खुश था | उसने स्नेहा से कहा, “देखना हमें ही अवार्ड मिलेगा” | मैंने तो स्टेज के लिए पहले ही स्पीच तैयार कर ली है |
उसने स्नेहा को कागज़ का टुकड़ा दिखाया जिस पर स्पीच लिखी थी |  दिखाओं –दिखाओ कह कर स्नेहा ने कागज़ खींच लिया |
उसने पढना शुरू किया ,शुरू के धन्यवाद ज्ञापन के बाद वरुण ने लिखा था “इस अवार्ड को पाकर मैं बहुत खुश हूँ | आखिर इसमें मेरी मेरी लाइफ  और मेरी बेस्ट फ्रेंड की मेहनत जो शामिल है” 



जब आग अंदर  धधक रही होती है तो छोटी सी चिंगारी ही काफी होती है | इतना  पढ़ते ही स्नेहा का पारा गर्म हो गया | जोर से बोली तो ये स्पीच तुम दोगे | मैं तुम्हारे और नमिता के रिश्ते का मतलब समझ गयी | सबके सामने उसे और
मुझे बराबर कहोगे |क्या हम दोनों का काम और स्थान बराबर है |





अब  वो बेस्ट फ्रेंड हो गयी | अरे, वाइफ बेस्ट फ्रेंड होती है | मैं वुड बी वाइफ हूँ |मेरे सामने उसको बेस्ट फ्रेंड कहोगे |  बेस्ट फ्रेंड भी मैं ही हूँ | मेरे होते वो बेस्ट फ्रेंड हो गयी | अब मतलब समझ में आया | स्नेहा बिना रुके क्रोध के आवेश में बोले जा रही थी |
मैं … मैं जा रही हूँ वरुण , इस ऑफिस से भी और तुम्हारी जिंदगी से भी | अब लौट कर कभी नहीं आउंगी | हाँ ये कागज़ का टुकड़ा लिए जा रही हूँ, इसमें तुम्हारी बेवफाई का सबूत जो है |

स्नेहा चली गयी, उसने वरुण से सारे संपर्क काट दिए 



समय अपनी गति से चल पड़ा | करीब डेढ़ साल बाद उसे सूर्यांश दिखाई पड़ा | उसे देखते ही उसने हाथ हिलाया | प्रत्युत्तर में उसने भी हाथ हिलाया | सूर्यांश उसके पास आ गया | दो कप कॉफ़ी के साथ बाते शुरू हो  गयीं |बातों ही बातों में उसने वरुण के लिए दुःख प्रकट किया |
स्नेहा के आश्चर्य में देखने के कारण वो समझ गया की उसे पता नहीं है | एक गहरी सांस ले कर उसने बताया कि छ : महीने हो गए वरुण को गुज़रे हुए |बहुत शराब पीने लगा था | लिवर सिरोसिस हो गयी |नमिता अंत तक उसके साथ रही | उसने बहुत कोशिश की पर वो उसे बचा न सकी |


स्नेहा के आँसू जैसे जम गए |वो वहाँ  ज्यादा देर बैठ न सकी | डेढ़ साल पुराना अतीत आँखों के सामने नाचने लगा |मन रेल हो गया और अतीत वो पटरी , जिस पर अनायास ही दौड़ने लगा, बिना इंजन के बेलगाम | 
वो अतीत जिससे वो पीछा छुडाना चाहती थी | जिससे कभी आँख न मिलाने की उसने कसम खायी थी | जिसकी वजह से वो इतनी दूर आई थी |आज उसके इस तरह दूर जाने की खबर पाते ही क्यों मन इतना बेचैन हो रहा है | क्यों पलट –पलट
कर वही दौड़ रहा है | क्यों एक बार… बस एक बार वरुण को पाना चाहता है, देखना चाहता है, मिलना चाहता है |



किसी तरह से खुद को संभाल कर घर आई | पर मन में विचारों का सैलाब उमड़ रहा था | माना की वरुण दुखी था  , निराश था पर नमिता … नमिता को तो … पर उसने तो अपना मोबाइल नंबर तक बदल लिया था | अंत तक उसे वरुण का साथ मिला …. नहीं अंत तक उसने वरुण का साथ निभाया |


घंटों तकिया सर में छुपाये रोती रही  स्नेहा | वरुण के सारे गिफ्ट्स भी तो फेंक दिए थे उसने |
कितना आसान लगता है सामन फेंक कर यादों से पीछा छुडाना …पर होता नहीं है | तभी उसे याद आया वो कागज़ का टुकड़ा जो उसने अपनी पर्स में रख लिया था | वो पर्स भी उसने उस दिन के बाद इस्तेमाल नहीं की | पागलों की तरह स्नेहा  उस पर्स की ढूँढने  दौड़ी |

सारे कपडे तितर – बितर कर दिए | अलमारी में सबसे पीछे वही गुलाबी पर्स दिखा | स्नेहा ने झट से उठा लिया | तेजी से खोला | सफ़ेद से पीला हुआ वो कागज़ स्नेहा को न जाने क्यों लाल लगा |गहरा लाल …बिलकुल खून के रंग का | इसी ने तो उन दोनों के रिश्ते को खत्म कर दिया था | एक बार फिर वरुण की हैंड राइटिंग  पढने के लालच में उसने वो कागज़ का टुकड़ा
खोला … अक्षर भले ही आँसुओं के कारण गायब हो रहे थे फिर भी वो हिम्मत कर के पढ़ती  गयी |
“इस अवार्ड को पाकर मैं बहुत खुश हूँ | आखिर इसमें मेरी मेरी लाइफ  और मेरी बेस्ट फ्रेंड की मेहनत जो शामिल है |”
इसके आगे के सारे अक्षर गायब हो गए | स्नेहा  रुक गयी | एक एक शब्द वही था , सही तो लिखा था वरुण ने , मैं उसकी लाइफ जो उसे छोड़ कर गयी तो वो जी ना सका और …और नमिता बेस्ट फ्रेंड जिसने अंत तक साथ निभाया पर … लाइफ .. 





स्नेहा  जोर – जोर से रोने लगी .. सही तो लिखा था , सही तो लिखा था , वरुण ! तुमने सही तो लिखा था | पर .. पर …इसका मतलब तब क्यों नहीं समझ आया ?  

 

  वंदना बाजपेयी 


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2 thoughts on “मतलब की समझ”

  1. वंदना जी, बिल्कुल सही कहा आपने। कई बार हम सीधी बातों का भी सही मतलब नहीं समझ पाते। और बाद में पछताते हैं।

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