नवरात्र पर विशेष – यूँ चुकाएं मातृऋण

नवरात्र पर विशेष - यूँ चुकाएं मातृऋण





नरदेहधारियों!

तुम्हें क्या पता के एक स्त्री होना.. क्या है?
तुम तो मॉं को देवी बनाकर पूजा कर देते है.., और भावुकता भरा डॉयलाग मारते हो के मातृऋण चुकाया नहीं जा सकता।

हॉं!!
तुम्हारे शास्त्र भी बहुत गुण गाते हैं स्त्री के सतीरूप के, देवीरूप के।

कहते हैं मातृऋण चुका नहीं सकते

पर.. सामान्य सी तुम्हारी मॉं कैसी स्त्री है?
जानते हो??
तुम देवी मानते हो न उसे…
देखो!
अपनी मॉं की जीवन यात्रा।
देखो!!
वो जब कोख में थी., उसके माता,पिता,सारा परिवार भ्रूणलिंग की रिपोर्ट हाथ में लिये चिंतित था.., प्लान बना रहा था, कि कैसे हत्या की जाये?




तब ऊपरी कमाई के भूखे पढ़े लिखे डॉक्टर नामक राक्षस को उसकी सुपारी दी जाती है., तुम्हारी मॉं ऐसे राक्षसों के हाथों बुरी तरह क्षतविक्षत कर दी जाती है।




न…न….न.. ये न सोचना के वो मर गई., वो बड़ी जीवट चेतना है, तुम्हें जन्म भी तो देना है, सो वो कई बार जन्ममृत्यु के दारूण दुख सहकर जन्म ले लेती है.., किसी ऐसे घर में जहॉं कन्या को मार पाना संभव नहीं होता या जहॉं लोग प्रगतिवादी विचार के स्वामी प्रभुत्व रखते हैं।




जब वो कन्या के रूप में समाज के लोगों के सामने आती है.., जीवन से भरी हुई , खिलखिलाती हुई., तो उससे कहा जाता है, ऐसे हंसने का लोग ग़लत मतलब निकाल सकते हैं।


उसे ख़ासतौर पर बताया जाता है कि लड़के कैसे कैसे होते हैं।
वो हंसी नपातुला करना सीख लेती है।
लड़कों पर फिर वो जीवनभर भरोसा नहीं कर पाती, जीवनसाथी तक पर भी।
उस पर कई नियम लादे जाते हैं, संस्कारों के नाम पर… कारण ?
स्वीकार लिया है क् पुरूषों को पैशाची संस्कार जीन से मिलते हैं, तभी तो आपस में नीचा दिखाने के मादर.. गालियां प्रचलन में हैं.,।

दिन में सज्जन, रात में गज्जन




रात होते ही वो सज्जनता का बहिष्कार कर देते हैं.. कई तो दिन में भी पैशाच को ज़िंदा रखने में सिद्ध होते हैं।
नारी …उसकी देह पुरूषों की समस्या है, कोई बहुत बड़ा धार्मिक हो तो कहता है,, कपड़े ऐसे पहनों कि हमें कुछ न दिखाई दे, हिजाब.. नक़ाब तक की नौबत आ जाती है, क्योंकि हम विचलित हो जाते हैं..,दूसरी ओर अधार्मिक राक्षस लोग कहते हैं, हमसे पैसे लेकर कपड़े इतने कम पहनों… के हमारी कंपनी का प्रोडक्ट/मूवी बिक जाये, यूं मॉडलिंग /फिल्मों की दुकान चलाते हैं।

ये दुनिया तुम्हारी मॉं बड़ी होते होते झेलती है।


रिश्तेदारों में , पड़ोस में अंकल, नीस , चचेरा भाई, स्कूल फ्रेंड किशोरावस्था को शुद्धता से पार करने में बड़ी चुनौती के रूप में उपस्थित होते हैं.,।

कोई पुरूष सहज नहीं है.,, बस में चढ़कर कंधा छुआ कर विकृत सुख ले लेंगे,घूर घूर कर ही कपड़ाफाड़ू निगाहें तुम्हारी मॉं का पीछा करती हैं।

छेड़छाड़ के विरोध पर ऐसी गालियां या जुमले सुनने को मिलते हैं कि तुम्हारी मॉं को लगता है कि चुपचाप रह जाती तो ही ठीक था., इन सब धृष्टताओं से मनोरोग सा होने लगता है.,,


ऐसे झंझावातों से पढ़ाई, नौकरी हर जगह से दो चार होते हुये जब तुम्हारे पिताजी पसंद करने आते हैं तो कई बार रिजेक्ट होने के दु:ख से घायल तुम्हारी मॉं तुम्हारे पिताजी को पसंद न करते हुये भी राजी हो जाती है, क्योंकि उसके पिता की दौलत में यही सामान मिल सकता था, पूरी मार्केट सामने होती है.. आईएएस का दाम,डॉक्टर का , इंजीनियर, प्रोफेसर ; पुलिस , बैंक कुकर्मचारी ….. सबका फिक्स दाम होता है, उसमें भी चुकाने की हैसियत होने के बाद भी ये बाज़ार अद्भुत होता है.. क्योंकि सामान (दुल्हा)के पास
अधिकार सुरक्षित होता है.,के वो ख़रीददार को पसंद करे या न करे।

आख़िरकार .. वो ख़रीद कर सामान यानी तुम्हारे पिता के घर चली जाती है,तब उसे बताया जाता है कि यहॉं पर सास/ससुर कितने पूज्य हैं, के उनकी पूज्यता के सामने देवता भी पानी भरते हैं।

सास की चुनौती रहती है कि उसका बेटा उसे कितना मानता है.., पंगा न लेना।


तुम्हारे दादी के पुराने समय की पुनरावृत्ति वो दोहराती है।




कई बार वो जानबूझकर नीचा भी दिखाती है ग़ैरों तक के सामने.., यदि त्याग; तपस्या से दिल जीतने की बात सही होती तो एकसमय था के बहुयें ही स्टोव फटने से जलती थीं।


[[ वैसे स्वेच्छा से भी कमा रही हैं मगर;आजकल नया रोग है, महिला से कमवाते भी हैं, इन्सटालमेंट ऑफ दहेज …
यदि स्त्री को कमाना पड़े या कमाये,तो कमाई की रकम यदि हो तो पति के हाथ में देनी पड़ती है]]

तुम्हारी मॉ चालाक हो तो सास के जाल को धीरे धीरे तोड़ देती है… प्रघुम्न के वाण उसके सहयोगी होते हैं।
इतने मानसिक,शारीरिक कुचलों के बाद तुम्हारे अस्तित्व को देह देकर ; तुम्हें बेटा /बेटी बनाकर लाती है, तो तुम उसे देवी बना देते हो,,, यह भी उपेक्षा है., उसका बच्चा जो मौजमस्ती करता है, उसमें देवी का प्रवेश नहीं क्योंकि उसका स्थान ऊंचा है।


तुम शास्त्र से सुनकर कह देते हो, कि मातृऋण चुक नहीं सकता।
पद्मा मनुज कहती है कि चुक सकता है।

क्या चिंतन कर सकते हो?

तो सुनो!

चुका सकते हो.,,अब रास्ते में तुम्हारी मॉं की प्रतिरूप कन्या को न घूरो.., सहज दृष्टि रखो।

विवाह करो, बिको मत।


परिवार में विशेष जगह दो .., क्योंकि वो नई आई है, घुलमिल जाये.., उसको निर्णयों में भागीदार बनाओ।
उसको सुंदर जीवन जीने में मदद करो, उसकी सैलरी पर गिद्ददृष्टि न रखो।


उसके कपड़ों पर भाषणकार मत बनो., मन स्वच्छ रखो वरना बहुत सारी पशु योनिज जीव नग्न ही रहते हैं, तब तुम सहज रहते हो क्योंकि तुम्हारी विकृति प्रकृति से नैतिकता की लाश पर पनपती है।


काम पवित्र है, कामुकता अपवित्र।


स्त्रियों का सहज ही सम्मान करो।
देखो!मातृऋण चुक जायेगा।
स्त्रियों पर पाबंदी केवल इसलिये है क्योंकि पुरूष गंदा है।
पुरूष कामुकता का कीड़ा न बने।
स्त्रियों की मानसिक पीड़ा न बने।
मातृऋण चुक जायेगा धीरे धीरे।
हास्य विनोद उपहास क्रीड़ा न बने



पद्मा मनुज

लेखिका

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