जया आनंद की लघुकथा आम्ही सक्सेसफुल आहोत 

 

सफलता की परिभाषा क्या है ? वास्तव में सफलता को किसी एक परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता |  किसी के लिए सफलता का मानक पैसा है, किसी के लिए नाम और किसी के लिए काम की संतुष्टि | हर कोई सफलता के पीछे दौड़ रहा है पर ये तय करना जरूरी है की ये परिभाषा उसकी खुद की बनाई हुई है या किसी दूसरे की | शायद इसीलिए हर कोई मृगतृष्णा में फँसा हुआ है |कब ऐसा होता है की व्यक्ति खुद को सक्सेस फुल मानता है | आइए जानते हैं जया आनंद जी की  प्रारनाडेक लघुकथा  आम्ही सक्सेसफुल आहोत से ….

आम्ही सक्सेसफुल आहोत 

 

नीरजा प्रिंसिपल के केबिन से निकलकर बहुत तनावग्रस्त थी प्रिंसिपल की अपेक्षाओं पर खरा उतरना कितना मुश्किल है  ।कितनी जी-जान से कोशिश करती है वो, चाहे  विद्यार्थियों  को  पढ़ाना हो या कॉलेज  का कोई भी साँस्कृतिक  कार्यक्रम पर फिर भी आलोचना सुननी ही पड़ जाती। 

   घर गृहस्थी के झंझावातों से निकलकर अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में नीरजा ने नासिक में  यह नौकरी की थी। उसकी डिग्री की तुलना में य़ह नौकरी उसके लिए छोटी थी पर कुछ नहीं से तो कुछ बेहतर यही सोचकर वह अपने मन को समझा लेती थी। कभी -कभी उसे लगता कि वह न तो घर गृहस्थी में पूरी तरह सफल है और न करियर में। उसके साथ  की सहेलियां डॉक्टर बन गयीं, इंजीनियर बन गयी और वह एक छोटे से कॉलेज में पढ़ा रही है…….और इस छोटे से कॉलेज में भी सुकून  नहीं। यह सब सोचते हुए हाथ में फाइल पकड़े उसके कदम स्टाफ रूम की ओर मुड़ गए। पास की कक्षा से दीपा ठाणेकर का  स्वर गूंजा।  दीपा आईटी की टीचर है,पढ़ाई में बहुत अच्छी ,छात्र बड़े ध्यान से सुनते हैं  उसे  ।

“स्टूडेंट्स आप आईटी विषय लेकर क्या करना चाहते हो  ? ” दीपा छात्रों से पूछ रही थी।

 किसी ने उत्तर दिया “आईटी प्रोफेशनल” ,” बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करना चाहता हूं” ,” फॉरेन जाकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता हूं”…. सब के अलग-अलग उत्तर आ रहे थे ।

“आप जो भी बनो उस काम को बहुत अच्छे से करने का ….चांगला काम  करनार पाहिजेत तभी आप सक्सेसफुल होंगे। मैं चाहती तो बड़ी आईटी कंपनी में नौकरी कर लाखों कमाती पर  मेरी सिचुएशन ऐसी नहीं थी ।मै  ये नौकरी  कर के खुश हूँ  ,मी मह्णते आम्ही सक्सेसफुल आहोत ” ।                 

 

      नीरजा के कानों में दीपा ठाणेकर कर का स्वर स्पष्ट सुनाई पड़ रहा था पर  नीरजा कुछ अनसुना  करते  हुए स्टाफ रूम में आकर  निढाल हो कर बैठ गयी । टेबुल  रखी पानी की बोतल से  एक  घूंट पानी पिया और मोबाइल देखने लगी। तभी मैसेंजर  पर  एक संदेश आया  ।

“हैलो  मैम मैं राजीव आपका पुराना विद्यार्थी ..”

“राजीव …… !! ” नीरजा ने  उसकी फोटो को गौर से  देखा   “…..अच्छा-  अच्छा राजीव कश्यप …कैसे  हो?”

 

   हाल- चाल लेने के बाद नीरजा ने राजीव से पूछा 

” हिन्दी पढ़ते हो या  नहीं ?”

“हाँ  मैम !पढ़ता हूँ कभी- कभी और आपको याद भी करता हूँ….सच पूछिये तो मैम !आपने जो पढ़ाया वो कभी भूला ही नहीं और इस कॉलेज से पास होने वाला हर विद्यार्थी आपको याद करता है ,आपकी पहचान तो  हम  विद्यार्थियों के दिलों में है। “

    

नीरजा की आँखों से दो बूंद मोबाइल पर ही टपक गयीं और कानो में दीपा ठाणेकर की आवाज गुंजित होने लगी 

‘आप जो भी बनो उस काम को अच्छे से करने का…..मैं ये नौकरी कर  के खुश हूँ  आम्ही सक्सेसफुल आहोत ….’

 

 नीरजा की आंखे राजीव के संदेश पर टिकी थीं और उसके मन की तरंगो पर  तरंगायित हो रहा था  आम्ही सक्सेसफुल आहोत….  हाँ मैं सफ़ल हूँ ‘

        

लेखिका 

डॉ जया आनंद 

जया आनंद

परिचय जया आनंद 

प्रवक्ता 

स्वतंत्र लेखन 

 

स्वतंत्र लेखन -विवध भारती, मुम्बई आकाशवाणी,दिल्ली आकाशवाणी, लखनऊ दूरदर्शन अहा जिंदगी, समावर्तन, पुरवाई,  अभिदेशक, रचना उत्सव , विश्वगाथा,अटूट  बंधन,अरुणोदय ,परिवर्तन, हस्ताक्षर,साहित्यिकडॉट कॉम ,matrubharti, प्रतिलिपि  ,हिंदुस्तान  टाइम्स  आदि में  रचनाओं  का प्रकाशन 

 

अनुवाद -‘तथास्तु’ पुस्तक (गांधी पर आधारित) ,संस्थापक – विहंग एक साहित्यिक उड़ान (हिंदी मराठी भाषा  संवर्धनाय)।

प्रकाशित कहानी संग्रह- पाती प्रेम की 

प्रकाशित साझा उपन्यास–  हाशिये का हक 

 प्रकाशित  साझा  कहानी संग्रह– ऑरेंज  बार पिघलती रही 

maipanchami@gmail.com 

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