कविता मानस पर उगे भाव पुष्प है | मानव हृदय की भावनाएं अपने उच्चतम बिंदु पर जा कर कब कैसे कविता का रूप ले लेती हैं ये स्वयं कवि भी नहीं जानता|भाव जितने ही गहरे होंगे पुष्प उतना ही पल्लवित होगा | आज हम पाठकों के लिए यामिनी नयन गुप्ता की कुछ ऐसी ही कुछ कवितायें लायें हैं जो भिन्न भिन्न भावों के पुष्पमाला की तरह है |आइये पढ़ते हैं …प्रणय के रक्तिम पलाश
फिर वही फुर्सत के पल
फिर वही इंतजार ,
खिलना चाहते हैं हरसिंगार
अब मैंने जाना ___क्यों तुम्हारी
हर आहट पर मन हो जाता है सप्तरंग ;
मैं लौट जाना चाहती हूं
अपनी पुरानी दुनिया में
देह से परे ___
प्रकृति की उस दुनिया में
फूल हैं ,गंध है , फुहार है, रंग हैं ,
बार-बार तुम्हारा आकर कह देना
यूं ही __ मन की बात
बेकाबू जज़्बात ,
मेरे शब्दों में जो खुशबू है
तुम्हारी अतृप्त बाहों की गंध है ,
इन चटकीले रंगों में नेह के बंध हैं
इंद्रधनुषीय रंग में रंगे हुए
मेरी तन्मयता के गहरे पल हैं ,
बदल सा गया हर मंजर
यह भी रहा ना याद
बह गया है वक्त ____
लेकर मेरे हिस्से के पलाश
हां ____
मेरे रक्तिम पलाश ।
यामिनी नयन गुप्ता
2 .
मां के आंगन का बसंत
मां के आंगन का
वृक्ष था वह हरा-भरा
छितराया मन भर हरसिंगार
इतना महका एक बार कि
पीछे बाग को जाती पगडंडी छुप गई थी
मां बोली ” जा बिटिया ‼️
बीनकर ले आ कुछ हरसिंगार
अपनी बिटिया
और उसकी गुड़िया के लिए
मैं बनाऊंगी छोटे-छोटे गजरे “
मैं जाकर झट से चुन लायी मन भर हरसिंगार
अपनी फ्रॉक के सीमित वितान में।
जिस सुबह एक बार जागकर
पुनः चिर निद्रा में लीन हो गई थीं मां
रोया नहीं था वो वृक्ष
हरियाले तने हो गए थे काजल से स्याह
खिलखिलाते पत्ते हो गए धूल-धूसरित
निर्जीव हो गयीं
सफेद फूलों की नारंगी डंडियां ,
शायद अब कभी लौट कर नहीं आएगा
इस आंगन में बसंत ।
मुक्ति द्वार में जाते समय भी
मां को याद रहा होगा
पिता का अकेलापन ;
या कि मेरे बचपन की यादें
या कि मां को भी याद आया होगा
अपनी मां का चेहरा ,
मेरे शब्दों में रहती हैं वो
कविता का नेपथ्य बनकर
मां मैं होना चाहती हूं
तेरी रोशनाई ।
यामिनी नयन गुप्ता
3 .
एक बसंत अपना भी ___
जब एक पुरूष लगाता है
स्त्री पर आक्षेप ,
अपनी श्रेष्ठता का सिद्ध करने के लिए
करता है स्त्री अस्मिता का हनन ,
प्रथम दृष्ट्या प्रतिक्रिया स्वरुप
काठ हो जाती है औरत
नजर नीची किए
साड़ी के पल्ले को घुमाती है उंगलियों की चारों तरफ
और याद करती है सप्तपदी के वचन
मन से भी तेज गति होती है अपमान की ,
वो हो जाती है अवाक् , निर्वाक्
और तुम समझते हो __ विजयी हो गए ?
जब तुम कहते हो ,
” मूर्ख स्त्री !! तुम चुप नहीं रह सकतीं ?”
यह महज़ एक तिरस्कार नहीं है
उपेक्षा नहीं हैं
यह है एक स्त्री को उसकी औकात बताने का उपक्रम
स्त्री भला कब अपनी तरह से जीने को हुई स्वतंत्र
एक स्वाभिमानी स्त्री को नीचा दिखाने का है यह षड्यंत्र;
जिस घर में होता है स्त्रियों का रुदन
वह दहलीज हो जाती है बांझ
श्मशान हो जाता है आंगन
उस घर की बगिया से बारहोमास का हो जाता है
पतझड़ का लगन ;
बुरे से बुरे अपशब्दों का
समाज कर देता है सामान्यीकरण
अरे !! कुल्टा !! कुलक्ष्नी कह दिया तो क्या हुआ
है तो भरतार ही ,
और एक दिन भर जाता है घडा़ अपमान का
लबलबाकर उफन जाती है नदी वेदना की
खंडित स्वाभिमान की चीखों से
मौन हो जाता है भस्म ,
उधड़ चुकी मन की भीतरी सीवन से
झर-झर जाती हैं निष्ठाएं ,
रेशे-रेशे जोडी़ महीन बुनावट के
ढीले पड़ जाते हैं बंधन
पीले पड़ते पत्तों का कोरस ही नहीं हैं
ये खांटी औरतें
इनके जीवन में भी एक दिन आएगा
अपना एक बसंत ।
यामिनी नयन गुप्ता
नाम : यामिनी नयन गुप्ता
जन्मतिथि : 28/04/1972
जन्मस्थान : कोलकाता
शिक्षा : स्नातकोत्तर ( अर्थशास्त्र )
लेखन विधा : कविताएं , हास्य-व्यंग्य , लघुकथाएं
काव्य संकलन : आज के हिंदी कवि (खण्ड१)
दिल्ली पुस्तक सदन द्वारा
तेरे मेरे शब्द ( साझा)
शब्दों का कारवां ( साझा)
मेरे हिस्से की धूप ( साझा )
काव्य किरण (साझा )
चाटुकार कलवा 2020
व्यंग्य संग्रह ( साझा )
एकल काव्य संग्रह ( अस्तित्व बोध)
संप्रति : व्यवसायिक प्रतिष्ठान में कार्यरत
सम्मान : काव्य संपर्क सम्मान
नवकिरण सृजन सम्मान
पाखी में प्रकाशित हुई हैं कविताएं एवं कथाक्रम में कहानी “कस्तूरी “
4th अगस्त समाचार पत्र जनसत्ता रविवारीय एवं जून की यथावत् में प्रकाशित हुई हैं कविताएं।
प्रतिष्ठित साहित्यिक समाचार पत्र जनसत्ता ,अमर उजाला एवं साहित्यिक पत्रिका आलोक पर्व , कथाक्रम सेतु ,मरू नवकिरण, अवधदूत , दैनिक युगपक्ष , ककसाड़ , सरिता , वनिता ,रूपायन व अन्य राष्ट्रीय स्तर के पत्र- पत्रिकाओं में कविताएं , लघुकथाएं , हास्य-व्यंग्य प्रकाशित ।
विषय : नारी व्यथा ,विरह ,प्रेम..पर मैं लिखती हूं।साथ ही
वर्तमान परिपेक्ष्य में स्री् कशमकश ,जिजीविषा और
मनोभावों को कविता में उकेरने का प्रयास रहता है ।
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