सुगंध का नियम था कि वो रोज शाम को पार्क में टहलने जाती | आज मन अशांत था फिर भी नियम ना टूटे इस लिए चली गयी , पर मन टहलने में नहीं लगा | घर भी नहीं जाना चाहती थी इसलिए वक्त काटने को वहीँ बेंच पर बैठ गयी | ठंडी हवा के झोंकों ने उसके गालों को सहलाया | अंदर का ताप कुछ कम हुआ | इधर -उधर नज़र दौड़ाई | बच्चे खेल रहे थे | बच्चों के खेल में मन कुछ रमा ही था की पार्क के एक कोने की बेंच पर निगाह चली गयी | एक जोड़ा बैठा हुआ था | दुनिया से बेखबर , एक दूसरे में तल्लीन | महिला की मांग का सिंदूर उसके विवाहित होने की गवाही दे रहा था | पकड़ी ना जाये इस भय से सुगंध ने नज़रें हटा लीं | पर नज़र रह -रह कर उधर ही चली जाती | दिल में एक हूक सी उठती | काश उसका पति मनोज भी उसके साथ आया होता | पर मनोज के पास उसके लिए समय कहाँ था ?
इसी बात पर सुगंध और उसके पति मनोज में अक्सर झगड़ा होता रहता था | सुगंध को लगता कि उसका पति उससे प्यार उससे प्यार नहीं करता , उसके साथ घूमने नहीं जाता , उसका ध्यान नहीं रखता , यहाँ तक की ऑफिस ६ बजे बंद हो जाता है पर वो हर रोज ८ -९ बजे आता है | वहीँ मनोज कहता कि उससे जान से भी ज्यादा प्यार करता है | दोनों के पक्ष अलग -अलग होते |
अपना दर्द याद आते ही सुगंध की आँखें भर आयीं | पक्षियों का कलरव , बच्चों का शोर , और उस प्रेमी युगल का प्रणय दृश्य सब उसे बेमानी लगने लगे | भारी क़दमों से सुगंध घर की ओर लौट पड़ीं | घर के दरवाजे पर ही पड़ोस की भाभी जी मिल गयीं | कुछ अनमनी सी देख उन्होंने पूँछ लिया ,” क्या हुआ सुगंध , मूड इतना खराब क्यों हैं ? पहले तो सुगंध ने कुछ नहीं कहा कर बात टालने की कोशिश की , लेकिन उनके स्नेह भरे शब्दों से वो टूट गयी और फूट -फूट कर रोते हुए बोली , ” सब अपने जोड़े के साथ पार्क में जाते हैं और मैं अकेली | ये अकेलापन अब सहा नहीं जाता | थोड़ी ही देर में बात पूरे मुहल्ले में फ़ैल गयी |
जब मनोज घर लौटा तो आस -पास के लोग समझाने लगे कि भाई अपनी पत्नी का भी थोड़ा ध्यान रखा करो | मनोज उनसे हाँ -हूँ कह कर गुस्से में अपने घर गया | वहाँ वह आँसूं से तर -बतर थी | उसे उम्मीद थी कि उसका आँसुओं से भरा चेहरा देखकर मनोज उसे प्यार करेंगे | पर उसका चेहरा देख कर मनोज का तो गुस्सा बढ़ गया | वो चिल्ला कर बोला ,” तो यही नाटक दिखा रहीं थी सब को …. आखिर साबित क्या करना चाहती हो ? विपरीत अपेक्षाओं के कारण दोनों में जोर -दार झगड़ा हुआ | किसी ने खाना नहीं खाया ना ही कोई रात भर सोया |
दूसरे दिन मनोज जब ऑफिस से लौटा तो उसने २०,००० रुपये सुगंध के आगे रखकर कहा ,” लो ये रुपये , मजे नहीं कर रहा था , ओवर टाइम कर रहा था तुम्हारे लिए हीरे का हार लाने के लिए | ताकि जब तुम अपनी बहन की शादी में जाओ तो तुम्हे किसी तरह का मलाल ना रहे |
सुगंध की आँखों में आंसू थे | वो प्यार के इस रूप से अनभिज्ञ थी |
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मित्रों , बात सुगंध और मनोज की नहीं है | झगडे होते ही इस लिए हैं कि दोनों एक दूसरे को समझ नहीं पाते | दोनों में से एक टेक्निकली सही होता है दूसरा प्रक्टिकली |
टेक्निकली सुगंध सही थी | उसका पति उसे समय नहीं देता तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उसका पति उसे प्यार नहीं करता |
प्रैक्टिकली मनोज सही है | वो उसे वो उसे वो गिफ्ट देना चाहता है जो उसकी बहुत प्रिय है | उस गिफ्ट को देते समय वो उसकी आँखों में वो चमक देखना चाहता है जो हीरे की चमक को भी फीका कर दे |
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इसी सम्बन्ध में मेरी दादी एक कहानी सुनाया करती थीं |
एक अध्यापक एक बच्चे को गणित सिखा रहा था |
उसने कहा , ” रोहन मैं पहले तुम्हे दो आम दूँ , फिर दो आम और दे दूँ | अब बताओ तुम्हारे पास कितने आम होंगे ?
रोहन – पाँच
बच्चा ठीक से समझ नहीं पाया ये सोच कर अध्यापक चित्र बनाते हैं | फिर रोहन से पूंछते हैं रोहन बेटा बताओ तुम्हारे पास कितने आम हैं ?
रोहन -पाँच
अध्यापक उसे समझाने के लिए अब आम की जगह स्ट्राबेरी का उदहारण लेते हैं | रोहन , मैं पहले तुम्हे दो स्ट्राबेरी देता हूँ फिर दो और देता हूँ | अब तुम्हारे पास कितनी स्ट्राबेरी हैं |
रोहन -चार
अध्यापक खुश हो गए | उन्होंने फिर आम का उदाहरण दे कर प्रश्न पूछा , ” रोहन अब तुम्हारे पास कितने आम हैं |
रोहन – पाँच
अब तो अध्यापक को गुस्सा आ गया | उन्होंने कड़क आवाज़ में पूछा , रोहन जब दो और दो स्ट्राबेरी चार होती है तो दो और दो आम पाँच कैसे हो गए |
रोहन ने कहा , ” सर मेरे पास एक आम पहले से ही बैग में है | इसलिए जब आप मुझे दो और दो चार आम देते हैं तो मेरे पास पाँच आम हो जाते हैं | पर मेरे पास स्ट्राबेरी नहीं हैं इसलिए दो और दो स्ट्राबेरी मिलकर चार ही रहती हैं |
अब बारी अध्यापक के मुस्कुराने की थी |
टेक्निकली अध्यापक सही थे | प्रैक्टिकली रोहन सही था |
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कई बार यही होता है कि दोनों सही होते हैं पर विवाद थमता नहीं है | क्योंकि दोनों अलग तरीके से रिश्ते को देख रहे होते हैं | एक टेक्निकली सही होता है एक प्रैक्टिकली| जरूरी है कि रिश्तों में गलतफहमियाँ पालने की जगह हम एक एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें |
क्या पता छिपा हुआ आम नज़र आ जाए |
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संवादहीनता के कारण ही रिश्तों में दूरियां पैदा होती हैं। सुंदर प्रस्तूति।
अनजाना सच।
अनजाना सच