हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा
फोटो क्रेडिट -http://naqeebnews.com ये उन दिनों की बात है जब बाज़ार में तरह -तरह के शर्बत व्ग कोल्ड ड्रिंक नहीं आये थे ….तब गर्मी दूर भगाने का एक ही तरीका था …रूह अफजा शर्बत , गर्मी शुरू और रूह अफजा की मांग शुरू | ठंडे पेयों के फैलते जाल के बीच भी इसकी मांग कम ना होने पायी और अभी भी अपनी युवा पीढ़ी के साथ माल में शान से खड़ा रहता है … परन्तु कवि की कल्पना ये तो कुछ और ही कह रही है …. हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा तू मेरी, शरीक-ऐ-हयात है, कि—- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये तेरी—- नर्म-नाजूक सी कलाई की छुअन, हाय !! तू मह़ज़ गिलास है ,या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये शर्म से झुकी नज़र, उसपे सुर्खी ,तेरे गाल की, बता तू ,गुलाब है, कि—- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये हवा की शरारत , ये उड़ती तेरी जुल्फें, हाय !! तू खुबसूरत ढ़लती शाम है,या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. टहलना —- तेरा हौले-हौले यूं छत पे और मेरा देखना तुमको , तू मेरी मुमताज़ है, या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. @@ रंगनाथ द्विवेदी जजकालोनी, मियांपुर जिला-जौनपुर 222002 (U.P.) यह भी पढ़ें …. मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको “हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, rooh afza